प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज तमिलनाडु के प्रतिष्ठित गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती और आदि तिरुवथिरई महोत्सव के अवसर पर आयोजित समारोह में भाग लेंगे। यह आयोजन भारत के महानतम सम्राटों में से एक राजेंद्र चोल प्रथम के सम्मान में आयोजित किया गया है, जिन्होंने चोल साम्राज्य को दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक शक्तिशाली समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित किया।
समारोह के दौरान प्रधानमंत्री मोदी राजेंद्र चोल प्रथम के सम्मान में एक विशेष स्मारक सिक्का भी जारी करेंगे। यह अवसर न केवल सम्राट के 1,000 वर्ष पूर्व हुए ऐतिहासिक दक्षिण-पूर्व एशियाई समुद्री अभियान की स्मृति को ताज़ा करता है, बल्कि गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर के निर्माण की शुरुआत को भी रेखांकित करता है — जो चोल वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है।
राजेंद्र चोल प्रथम (1014–1044 ई.) ने अपने शासनकाल में चोल साम्राज्य की सीमाओं को श्रीलंका, मलाया, सुमात्रा और दक्षिण भारत तक फैलाया। उनकी विजयों के बाद, उन्होंने गंगईकोंडा चोलपुरम को राजधानी बनाया और वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो आज भी शैव भक्ति, चोल कला और प्रशासनिक विरासत का प्रतीक है।
यह मंदिर अब यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो अपनी जटिल शिल्पकला, चोल युग की कांस्य मूर्तियों और ऐतिहासिक शिलालेखों के लिए प्रसिद्ध है।
इस अवसर पर मनाया जा रहा आदि तिरुवथिरई उत्सव तमिल शैव भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जिसे चोल शासकों ने संरक्षण और प्रोत्साहन दिया था। यह परंपरा तमिल नयनमार संतों द्वारा रचित भक्ति साहित्य के माध्यम से आज भी जीवित है।