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भारत की प्राचीन परम्परा के अनुरूप धार्मिक और सांस्कृतिक समागम-सिमरिया कुंभ

Date : 27-Oct-2023

भारत के कोने-कोने में प्रभु की कृपा बरसती है। कहीं पहाड़ों पर भगवान विराजते हैं, तो कहीं नदियां ईश्वरीय अनुभूति कराती है। तभी तो पूरा विश्व भारत को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गुरू के रूप में जानता-मानता है। युगों-युगों से भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और आर्थिक गतिविधियों का समागम भी ईश्वरीय आशीष माना जाता है।

धार्मिक कुंभ मेला को दुनिया में आस्था के सबसे बड़े आयोजन के रूप में देखा जाता है। अगर देखें तो वैदिक साहित्य में देश में चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक में कुंभ के आयोजन की बात कही गई है। सबको पता है कि इन स्थानों पर नियमित अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है। कहा जाता है कि वैदिक काल में देश के 12 स्थानों पर कुंभ लगता था। लेकिन इनमें से चार स्थानों में ही जागृत रहा। बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया में 2011 से आयोजित कुंभ को लुप्त हो चुके आठ कुंभ पर्वों को फिर से पुनर्स्थापित करने की शुरुआत है।

हरिद्वार का संबंध मेष राशि से है। कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। प्रयाग कुंभ का विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि यह 12 वर्षो के बाद गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ का आयोजन प्रयाग में किया जाता है। अन्य मान्यता के अनुसार मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर कुंभ प्रयाग में होता है।

एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है। 12 वर्षों में एक बार सिंहस्थ कुंभ मेला नासिक एवं त्रयम्बकेश्वर में आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्षदायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।

तुला राशि में सूर्य, चंद्र और गुरू का योग बनने पर बिहार के सिमरिया में कुंभ का संयोग होता है। कार्तिक माह में मां गंगा की उत्तरवाहिनी धारा को स्पर्श करते विशाल तट पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है। पांचवें कुंभ स्थल के रूप में स्थापित हो रहे सिमरिया में 2011 में कुंभ, 2017 में महाकुंभ का आयोजन किया गया। अब 2023 में 25 अक्टूबर से कुंभ लग गया है। कुंभ का यह आयोजन वस्तुत: भारत की प्राचीन परंपरा के अनुरूप ही सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समागम होगा। सिमरिया और मिथिलांचल ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण बिहार के लिए यह गौरव है।

अद्भुत आध्यात्मिक प्रारंभ और फिर परम्परा के रूप में सतत निर्वहन का पथ सरल नहीं होता। दृढ़ संकल्प, मजबूत ईच्छा शक्ति, धैर्य और धार्मिक आध्यात्मिक मीमांसा के बगैर यह असंभव है। धार्मिक पौराणिक साहित्य और वेद ग्रंथों के ज्ञाता स्वामी चिदात्मन जी के साथ विद्वतजनों एवं साधु-संतों के गंभीर चिंतन और विमर्श के बाद मां गंगा की उत्तर वाहिनी धारा के तट पर सिमरिया में कुंभ के शुरूआत की सोच बनी। 2011 में पहला अर्द्ध कुंभ लगा। सिमरिया तट पर पहले अर्द्ध कुंभ में देश भर के साधु-संतों और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था।

कुंभ सेवा समिति के महासचिव एवं भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय मंत्री रजनीश कुमार कहते हैं कि मां गंगा की उत्तरवाहिनी धवल धारा की कलकल करती मधुर धुन के बीच मनोहारी तपोभूमि का अहसास कराती प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरे अति विशाल तटीय क्षेत्र सिमरिया की पौराणिकता एवं अलौकिकता की कथा अनंत है। वैदिक पौराणिक ग्रंथों एवं ऐतिहासिक तथ्यों में आदि कुंभ स्थली सिमरिया धाम का साफ संकेत है। चिन्हित स्थल पर इसी निगम-आगम आधारित अनादिकाल से चली आ रही कल्पवास की लंबी परंपरा रही है। स्वामी चिदात्मन जी की आध्यात्मिक पहल और भारत के महान साधु-संतों के मार्गदर्शन में सिमरिया में कुंभ शुरू हुआ।

सिमरिया कुंभ सेवा समिति का मानना है कि बिहार राज्य के मध्य में अवस्थित बेगूसराय जिला अपने गौरवशाली संस्कृति, आध्यात्मिक चेतना एवं समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के लिए देश भर में प्रसिद्ध रहा है। यहां के लोगों ने अपने बौद्धिक एवं श्रम कौशल की बदौलत बेगूसराय को बिहार की आर्थिक एवं सांस्कृतिक राजधानी बनाया है। बेगूसराय में प्रवाहित होने वाली पतित पावनी मां गंगा का पवित्र तट सिमरिया धाम ना केवल बेगूसराय, बल्कि मिथिला, मगध और अंग सहित संपूर्ण देश के लिए आध्यात्मिक, आस्था का केन्द्र है।

उपाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह अमर कहते हैं कि गंगा के प्रमुख तीर्थ-तटों में प्रयाग और सिमरिया धाम का विशेष महत्व होने के कारण इन्हीं दो जगहों पर कल्पवास का आयोजन होता है। सदियों से सिमरिया गंगा तट पर कार्तिक मास में हजारों कल्पवासी गंगा सेवन करते हैं। 2011 में देश के साधु-संत, ऋषि-महर्षि, ज्योतिषाचार्य एवं सनातन धर्मावलंबियों ने सिमरिया धाम में आदि कुंभ स्थली होने का ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय प्रमाण प्रस्तुत कर सनातन के पांचवें कुंभ स्थली के रूप में जगत जननी मां जानकी के मिथिला के इस पवित्र गंगा तट सिमरिया को प्रतिष्ठित किया।

सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ आयोजन ''कुंभ'' जब संतो के द्वारा सिमरिया में आहूत हुआ तो बेगूसराय के जनप्रतिनिधि, राजनेता, चिकित्सक, शिक्षाविद, समाजसेवी, अधिवक्ता, व्यवसायी एवं आमजन ने मिलकर कुंभ सेवा समिति का गठन किया एवं कुंभ के आयोजन को सफल बनाने में अपना तन-मन-धन समर्पित कर दिया। 2011 के इस कुंभ में संपूर्ण बिहार एवं देश-विदेश के लाखों सनातन धर्मावलंबियों ने शाही पर्व स्नान के अवसर पर गंगा में डुबकी लगाकर इसे ''आस्था का कुंभ'' साबित किया।

अब 28 नवम्बर 2023 तक सिमरिया धाम के पवित्र गंगा तट पर देश विदेश के साधु-संत, महात्माओं के साथ-साथ लाखो सनातन धर्मियों की आस्था का सैलाब कुंभ स्नान के लिए जुटेगा तो बेगूसराय और बिहार के इतिहास के पृष्ठ पर एक स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाएगा। आने वाले समय में हमारी नई पीढ़ी जब उन पृष्ठों का अवलोकन करेगी तब निश्चित रूप से उसे अपने अतीत पर गौरव होगा। मिथिला की ज्ञान परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए इस बार भी देश और समाज से जुड़े महत्त्वपूर्ण विषयों को लेकर ''शास्त्र मंथन'' किया जाएगा।

 
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