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महाराष्ट्र की जीवंत संस्कृति

Date : 16-Mar-2024

 महाराष्ट्र अपनी पुरोगामी संस्कृति (आगे की संस्कृति) के लिए जाना जाता है | 'महा' का अर्थ है बड़ा और 'राष्ट्र' का अर्थ है राष्ट्र| वास्तव में अपने आकार, जनसंख्या और संस्कृति में महान है | महाराष्ट्र की संस्कृति  प्रभावशाली और गौरवमय है और यहाँ की प्राचीन विरासत ने इसे ऐतिहासिक महत्ता प्रदान की है. इस राज्य के क्षेत्रफल के आधार पर यह भारत में तीसरे स्थान पर है और जनसंख्या के आधार पर दूसरे स्थान पर है. महाराष्ट्र ने पूरे विश्व में संतों की भूमि के रूप में विख्याति प्राप्त की है. यहाँ पर संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, चोखामेला, एकनाथ जैसे अनेक संत हुए और उन्होंने वारकरी संप्रदाय की नींव रखी, जिसका प्रभाव आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देता है.

16वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने महाराष्ट्र में स्वराज्य की स्थापना की, जिससे इस भूमि को छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य की भूमि के रूप में जाना जाता है. मराठों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाते हुए इस राज्य की सीमा का विस्तार करते हुए बाहरी क्षेत्रों को भी स्वराज्य में शामिल कर लिया. इस राज्य की भूमि पर कई वर्षों तक मराठों का अधिकार रहा.

महाराष्ट्र में कई जातियों और धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं. मुख्य रूप से मराठी, बौद्ध, मुस्लिम, ईसाई, सिख लोग बड़ी संख्या में यहाँ रहते हैं. इस राज्य मे हिंदू और अन्य धर्मों के त्योहार बड़े पैमाने पर मनाए जाते हैं. गणपति, शिव जयंती, दिवाली, होली जैसे त्योहार यहाँ पर जोर-शोर से मनाए जाते हैं. यहा अनेक प्राचीन और आधुनिक मंदिर हैं, जिनमें पंढरपुर के विट्ठल, जेजुरी के खंडोबा, महालक्ष्मी, ज्योतिबा, शिरडी के साईं बाबा आदि शामिल हैं | 

महाराष्ट्र की भाषा 

महाराष्ट्र के लोग मुख्यतः मराठी भाषी हैं, लेकिन यहाँ पर कई जातियां, धर्म और बहुभाषी लोग लंबे समय से निवास कर रहे हैं, जिस कारण हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी और अन्य भाषाएँ भी उपयोग में आती हैं.

लोग विभिन्न जातियों और धर्मों से संबंधित होने के कारण, वे अपनी मूल भाषा में ही दूसरों के साथ संवाद करते हैं.

वेशभूषा 

महाराष्ट्र के नागरिकों की पुरानी पोशाक की खासियत यह थी की पुरुष धोती और सूती कुर्ता पहनते थे, साथ ही सिर पर टोपी और पैरों में कोल्हापुरी चप्पल होती थी. महिलाएं अपनी पोशाक में नौवारी पहनेमे खासी रूचि रखती थीं, उनकी नाक में नथ और पैरों में बुगड़ी होती थी.

लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, लोगों की पोशाकों में भी बदलाव आया. अब लोग पारंपरिक पोशाक की बजाय पश्चिमी संस्कृति की नकल कर रहे हैं. इसके परिणामस्वरूप, पारंपरिक पोशाकों का प्रयोग अधिकतर त्योहारों पर ही सीमित रह गया है.

खानपान 

महाराष्ट्र में पहले लोग अधिकतर शाकाहारी थे. यहां चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा, दालें और विभिन्न पत्तेदार सब्जियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती थीं. केवल समुद्री क्षेत्र में रहने वाले लोग ही मांस खाते थे, लेकिन हाल ही में मांस खाने वालों की मात्रा बढ़ गई है.

वड़ापाव और मिसळ महाराष्ट्र का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है. शाकाहारी भोजन में, पूरनपोली को सारण के साथ सेवित किया जाता है इसके अलावा श्रीखंड भी यहां की खाद्य संस्कृति का विशेष आकर्षण है | 

लोकनृत्य और संगीत 

महाराष्ट्र में लोक नृत्य और संगीत की एक विशेष परंपरा है. यहाँ पोवाड़ा, लावणी, नाटक, शास्त्रीय संगीत, भजन, और कोली गीतों में अपनी विशिष्टता बरकरार रखी गई है.

‘लावणी’ नृत्य शैली ने महाराष्ट्र को सात समंदर पार पहचान दिलाई है और “पोवाड़ा” छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से “शाहिरी” नाम का एक रूप था.

महाराष्ट्र की कला 

महाराष्ट्र के लोगों ने अब तक महाराष्ट्र की पारंपरिक कलाओं को संरक्षित रखा है. हर क्षेत्र में आपको विभिन्न कलाएं देखने को मिलेंगी.

छत्रपति संभाजीनगर की कपास और रेशम, मशरू और हिमरू की बुनाई विश्व प्रसिद्ध है. इसके अलावा, कोल्हापुर में उत्पादित कोल्हापुरी चप्पल, पैठण में उत्पादित विश्व प्रसिद्ध पैठणी साड़ी, और ठाणे और पालघर जिले में आदिवासियों द्वारा बनाई गई वारली कला प्रसिद्ध है और रायगढ़ जिले में स्थित पेन में बनाई गई गणपतियों की मूर्तियाँ दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं | 

 
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