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छत्तीसगढ़ का अनोखा शिल्प ढ़ोकरा

Date : 17-Mar-2024

 बेलमेटल शिल्‍प ढ़ोकरा शिल्‍प के नाम से भी जाना जाता है । यह शिल्‍प प्रदेश की प्राचीन शिल्‍पों में एक है। ढ़ोकरा शिल्‍प बस्‍तर क्षेत्र की एक पहचान है जो न केवल राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बल्कि अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी जाना जाता है । प्रदेश के दो जिले के सैक‍ड़ों परिवार इसे अपना मूल व्‍यवासय बनाकर अपना जीविकोर्पजन कर रहे हैं जिनमें एक बस्‍तर क्षेत्र का कोण्‍डागांव तथा दूसरा रायगढ़ जिला है । ग्राम एकताल रायगढ़ शहर से 18 किमी की दूरी पर ओडिशा राज्‍य की सीमा पर स्थित है, यहां के कई शिल्‍पी परिवार जो झारा जाति के है ने इस शिल्‍प को राष्‍ट्रीय एवं अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की पहचान दिलायी है । एकताल (रायगढ़) एवं कोण्‍डागांव जिले के बेलमेटल शिल्‍प के कई कलाकारों को राज्‍य स्‍तर एवं राष्‍ट्रीय स्‍तर के हस्‍तशिल्‍प पुरूस्‍कार से नवाजा गया है । प्रदेश में करीब 2000 परिवार ढ़ोकरा शिल्‍प से जुड़े है।

बेलमेटल शिल्‍प मुख्‍यत: कांसा एवं पीतल को मिलाकर आग की भट्ठी में गला कर बनाया जाता है । सर्वप्रथम भूसा युक्‍त मिट्टी से मूर्ति को आकार दिया जाता है फिर रेतमाल पेपर से चिकना किया जाता है फिर पुन: मिट्टी से लेप किया जाता है तत्‍पश्‍चात मोम से बने धागे से मूर्ति पर डिजाइन बनाई जाती है तथा शेष स्‍थानों को सादे मोम से भरा जाता है फिर पुन: मिट्टी से लेप करके सुखाया जाता है । सूखने के बाद उस मूर्ति के बने मॉडल के एक छिद्र से गलाया हुआ पीतल डाला जाता है, गरम पिघला पीतल जहां जहां पडता है वहां के मोम पिघलाकर पीतल अपनी आकृति ले लेता है अंत में जब कलाकृति ठंडा हो जाता है तो उसे तोड़कर मिट्टी को अलग कर साफ करके लोहे के ब्रश से घिसाई कर अन्तिम रूप दिय जाता है । इन सब में करीब 10-12 तरह की प्रकिया अपनायी जाती है तब जाकर बेलमेटल (ढ़ोकरा शिल्‍प) की मूर्ति तैयार होती है ।

 

 

 
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