चौफला नृत्य Date : 01-Jun-2024 उत्तराखण्ड के परिप्रेक्ष्य में चर्चा की जाए तो यहाँ के निवासी संगीतप्रिय माने जाते हैं। यहाँ के लोक जीवन में संगीत रचा-बसा है। यह संगीत नृत्य तथा गीतों की विभिन्न शैलियों के रूप में प्रस्फुटित हुआ है। उत्तराखण्ड के विभिन्न लोकनृत्यों में एक है:- चौफला नृत्य (चमफुली नृत्य) 'चौ' का अर्थ होता है 'चारों ओर' तथा 'फुला' का अर्थ होता है 'प्रसन्न होना'। ऐसी मान्यता है कि इस नृत्य को माँ पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गढ़वाल की एक पर्वत श्रृंखला पर चौरी (चौपाल) बनाकर अपनी सहेलियों के साथ किया था और इस नृत्य से उस चौरी के चारों ओर फूल खिल गये थे। भगवान शिव माँ पार्वती से प्रसन्न हुए थे और उन्होने माँ पार्वती से विवाह किया था। इसी प्रसंग से चौफुला नृत्य प्रसिद्ध हो गया। गढ़वाल क्षेत्र में यह नृत्य स्त्री-पुरूष द्वारा एक साथ या अलग-अलग टोली बनाकर किया जाता है। यह नृत्य एक श्रृंगार नृत्य है। इसमें किसी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है, अपितु हाथों की ताली, पैरों की थाप, झांझ की झंकार, कंगन, पाजेब तथा अन्य आभूषणों की ध्वनियां इस नृत्य के दौरान मादकता प्रदान करती हैं। चौफला की तुलना गुजरात के गरबा नृत्य से की जा सकती है। थड़या नृत्य की भांति यह भी खुले मैदान में किया जाता है, किंतु इसमें महिलाओं के साथ-साथ पुरूष भी भाग ले सकते हैं। डॉ० शिवानंद नौटियाल लिखते हैं कि इसकी शैलियों की परम्परा बहुत बड़ी है। एक शैली का नाम 'खड़ा चौफला' है। द्रुतगति से अत्यंत मोहक - ठुमकों के साथ किया जाने वाला एक गति में जो नृत्य चलता है, वह खड़ा चौफला कहलाता है। चौंफला की एक और नृत्यशैली का नाम लालुड़ी चौंफला है। लालुड़ी में नर्तक और नर्तकिया गोल घेरे में दो दल बना लेते हैं। गीत मध्य लय में चलता रहता है।