केरल की कला और संस्कृति | The Voice TV

Quote :

" सुशासन प्रशासन और जनता दोनों की जिम्मेदारी लेने की क्षमता पर निर्भर करता है " - नरेंद्र मोदी

Travel & Culture

केरल की कला और संस्कृति

Date : 09-Dec-2022

 वास्तव में 'भारतीय संस्कृति' का अभिन्न हिस्सा है। भारतीय उपमहाद्वीप की तरह केरल की संस्कृति का भी एक पुरातन इतिहास है, जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण होने का दावा करता है। केरल की संस्कृति भी एक समग्र और महानगरीय संस्कृति है, जिसमें कई लोगों और जातियों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। केरल के लोगों के बीच समग्र और विविधतावादी सहिष्णुता और दृष्टिकोण की उदारता की भावना का उद्वव अभी है, जिससे नेतृत्व संस्कृति का विकास लगातार जारी है। केरल का इतिहास सांस्कृतिक और सामाजिक संष्लेषण की एक अनोखी प्रक्रिया की रोमांटिक और आकर्षण कहानी कहता है। केरल ने हर चुनौती का माक़ूल जवाब देते हुए प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का बेहतर प्रदर्शन किया है और साथ ही पुरानी परंपराओं और नए मूल्यों का मानवीय तथ्यों से संलयन किया है।

केरल की संस्कृति अपनी पुरातनता, एकता, निरंतरता और सार्वभौमिकता की प्रकृति के कारण उम्र के हिसाब से माध्यम बनाए हुए है। इसके व्यापक अर्थ में यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य की आत्मा की सर्वोच्च उपलब्धियों को गले लगाती है। कुल मिलाकर यह धर्म और दर्शन, भाषा और साहित्य, कला और स्थापत्य कला, शिक्षा और सीखना और आर्थिक और सामाजिक संगठन के क्षेत्र में लोगों की समग्र उपलब्धियों का प्रतिनिधित्व करती है।

केरल के त्योहार

केरल में अनेक रंगारंग त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से अधिकतर त्योहार धार्मिक हैं जो हिन्दू पुराणों से प्रेरित हैं।

ओणम केरल का विशिष् त्योहार है, जो फ़सल कटाई के मौसम में मनाया जाता है। यह त्योहार खगोलशास्त्रीय नववर्ष के अवसर पर आयोजित किया जाता है।

केरल में नवरात्रि पर्व सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि का त्योहार पेरियार नदी के तट पर भव्य तरीके से मनाया जाता है और इसकी तुलना कुम्भ मेला से की जाती है। सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में इसी दौरान मकरविलक्कु भी आयोजित होता है। 41 दिन के इस उत्सव में देश-विदेश के लाखों लोग सम्मिलित होते हैं।

वलमकली या नौका दौड़ केरल का अपने ढंग का अनोखा आयोजन है। पुन्नमदा झील में आयोजित होने वाली नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़ को छोड़कर शेष सभी नौका दौड़ उत्सवों का कोई कोई धार्मिक महत् है।

त्रिसूर के वडक्कुमनाथ मंदिर में हर वर्ष अप्रैल में पूरम त्योहार मनाया जाता है, जिसमें सजे-धजे हाथियों की भव् शोभायात्रा निकलती है और आतिशबाजी का प्रदर्शन किया जाता हैं।

क्रिसमस और ईस्टर ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार हैं। पुम्बा नदी के तट पर हर वर्ष मरामोन सम्मेलन होता है, जहां एशिया में ईसाइयों  का सबसे बड़ा जमावड़ा लगता है।

मुसलमान मिलादे शरीफरमज़ान रोज़ेबकरीद और ईद-उल-फितर का त्योहार मनाते हैं।

कला

केरल की कला और यहाँ की सांस्कृतिक परम्पराएँ कई शताब्दी पुरानी हैं। केरल के सांस्कृतिक जीवन में महत्त्वपूर्ण योग देने वाले कलारूपों में लोक कलाओं, अनुष्ठान कलाओं और मंदिर कलाओं से लेकर आधुनिक कलारूपों तक की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। केरल की कलाओं को सामान्यतः दो वर्गों विभाजित किया जा सकता है- एक 'दृश्य कला' और दूसरी 'श्रव्य कला', जिनमें दृश्य कला के अन्तर्गत रंगकलाएँ, अनुष्ठान कलाएँ, चित्र कलाएँ और सिनेमा शामिल हैं।

रंग कलाएँ

केरलीय रंग कलाओं को धार्मिक, विनोदपरक, सामाजिक, कायिक आदि भागों में विभक्त किया जा सकता है। धार्मिक कलाओं में मंदिर कलाएँ और अनुष्ठान कलाएँ सम्मिलित होती हैं। मन्दिर कलाओं की सूची अपेक्षाकृत अधिक लम्बी है, जैसे- कूत्तु, कूडियाट्टम, कथकलि, तिटम्बु नृत्तम, अय्यप्पन कूत्तु, अर्जुन नृत्य, आण्डियाट्टम, पाठकम्, कृष्णनाट्टम, कावडियाट्टम आदि। इनमें 'मोहिनिअट्टम' जैसा लास्य नृत्य भी आता है। अनुष्ठान कलाएँ भी अनेक हैं, जैसे- तेय्यम, तिरा, पूरक्कलि, तीयाट्टु, मुडियेट्टु, कालियूट्टु, परणेट्टु, तूक्कम्, पडयणि, कलम पाट्ट, केन्द्रोन पाट्ट, गन्धर्वन, बलिक्कळा, सर्पप्पाट्टु, मलयन केट्टु आदि। अनुष्ठान कलाओं से जुड़ा अनुष्ठान कला साहित्य भी इसमें सम्मिलित है।

सामाजिक कलाओं में यात्रक्कलि, एषामुत्तिक्कलि, मार्गम कलि, ओप्पना आदि आती हैं, तथा कायिक कलाओं में ओणत्तल्लु, परिचमुट्टुकलि, कलरिप्पयट्टु आदि आती हैं। केवल मनोविनोद को लक्ष्य मानकर जो कलाएँ प्रस्तुत की जाती हैं, वे हैं- काक्कारिश्शि नाटक, पोराट्टुकलि, तोलप्पावक्कूत्तु, ञाणिन्मेल्कळि आदि। इन सबके अतिरिक्त आधुनिक जनप्रिय कलाओं का भी विकास हुआ है. जैसे- आधुनिक नाट्यमंच, चलचित्र, कथाप्रसंगम् (कथा कथन एवं गायन), गानोत्सव, मिमिक्रि आदि।

अनुष्ठान कलाओं में कई तो नाटक हैं। ऐसे लोक नाटक भी हैं, जो अनुष्ठानपरक होकर केवल मनोविनोद के लिए हैं। उदाहरण के लिए- रत्तियाट्टम, पोराट्टुनाटक, काक्कारिश्शि नाटक, पोराट्टु के ही भेद हैं, पान्कलि, आर्यम्माला आदि। वैसे ही मुटियेट्टु, अय्यप्पनकूत्तु, तेय्यम आदि अनुष्ठानपरक लोकनाट्य हैं। कोतामूरियाट्टम नाटक में अनुष्ठान कला का अंश बहुत ही थोड़ी मात्रा होता है।

उत्तरी केरल के गिरिवर्गों में प्रचलित सीतक्कलि, पत्तनंतिट्टा के मलवेटर के पोरामाटि, वयनाड के आदिवासी वर्गों के गद्दिका, कुल्लियाट्टु, वेल्लाट्टु आदि मांत्रिक कर्म एक प्रकार के लोकनाट्य हैं। इन्हीं के अन्तर्गत आने वाले दूसरे लोकनाट्य हैं- कण्यार कलि, पूतमकलि, कुम्माट्टि, ऐवरनाटक, कुतिरक्कलि, वण्णानकूत्तु, मलयिक्कूत्तु आदि।

केरल की भाषा

केरल की भाषा मलयालम है। भारत की राजभाषाओं में मलयालम भाषा सम्मिलित है। इसके अलाबा यहाँ अंग्रेजी भाषा को भी प्राथमिकता दी जाती है।

केरल का पहनावा 

केरल की वेशभूषा की बात की जाय यह दक्षिण भारत के अन्य राज्यों से मिलता जुलता है। केरल राज्य की पारंपरिक पोशाक को मंडू कहा जाता है।

केरल की महिलायें साड़ी पहनती है जिसे मुंडम नेरियथम के नाम से जाना जाता है। केरल के लोग धोती पहनते हैं, केरल में इसे मंडू कहा जाता है जो कमर के नीचे पहना जाता है।

वे शरीर के ऊपर कंधे पर तौलिया की तरह एक चादर रखते हैं। लेकिन आजकल का युवा वर्ग शर्ट, पेंट और जींस पहनना ज्यादा पसंद करते हैं।

केरल के प्रसिद्ध भोजन 

केरल का खाना की बात की जाय तो यहाँ धान की खेती बहुत उपज होती है। इस कारण केरल के लोगों का मुख्य भोजन चावल है। इसके तटीय इलाके में मछली भी प्रिय भोजन है।

यहाँ के प्रिय भोजन में नादान कोझी वरुथु का नाम भी आता है।

केरल का रहन सहन

केरल के लोग बड़े ही नेक दिल इंसान होते हैं। केरल के लोगों का रहन सहन भारत के अन्य राज्यों से थोड़ा भिन्न है। यहाँ के लोग पक्के मकानों में रहते हैं। लोगों के आय का मुख्य स्रोत खेती है।

यहाँ मसालो की खेती, चाय, नारियल, रबड़ और समुन्द्र से मछली पकड़ना प्रमुख व्यवसाय है। साथ ही इस राज्य के बड़ी संख्या में लोग विदेशों में भी काम करते हैं।

केरल के लोक नृत्य

केरल राज्य का पारंपारिक नृत्य कथकली है। इस नृत्य की उद्भव पुराने समय में राज दरवार से मानी जाती है। इसके अलावा इस राज्य के लोग गीत और  संगीत में भी समृद्ध माने जाते हैं।

केरल सिनेमा के क्षेत्र में भी हमेशा गुणवत्तापूर्ण फिल्म प्रदान करता रहा है। केरल की कथकली एक शैलीबद्ध शास्त्रीय भारतीय नृत्य है। जो अपनी एक पहचान रखती है।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement