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भारत के 4 प्राचीन सूर्य मंदिर

Date : 29-Apr-2023

भारत एक ऐसी भूमि है जहा रहस्य के साथ लोगों की श्रद्धा और आस्था भी जुडी है। मंदिरों की भूमि भारत में सूर्य मंदिर सूर्य देव को समर्पित करता है। प्राचीन मंदिरों की अधिक रुचि जो प्राचीन भारतीय राज्यों के शासकों द्वारा सदियों पहले बनाए गए थे। इसीलिए यह प्राचीन सूर्य मंदिर केवल इसकी महिमा को बढ़ाते ही नहीं बल्कि भारत के सदियों से सनातनी रूढ़िवादी होने का प्रमाण भी दिलाते है।

प्राचीन भारत में और बाकि दुनिया के प्राचीन सभ्यताओं में सूर्य देवता को काफी पूजा जाता था। आप प्राचीन सभ्यताओं में ग्रीक की सभ्यता यूनानियों के अपोलो में , रोमन सभ्यता के सोल इनविक्टस में और प्राचीन मिस्र के ‘रा’ में सूर्य देव प्रमुख भगवान हुआ करते थे। और भारत के हिंदू धर्म में भी सूर्य देव सूर्य या आदित्य का प्रमुख स्थान है।

प्राचीन सभ्यताओं के विपरीत आज भी सूर्य मंदिर का विशेष महत्त्व है। लोग श्रद्धा से सूर्य मदिरों में जाते है और पूजा करते है। उनसे जुड़े पवित्र तालाबों में इस विश्वास के साथ डुबकी लगाते हैं कि यह उन्हें कुष्ठ, अंधापन, त्वचा रोग आदि का इलाज करेगा। रविवार सूर्य भगवान् का विशेष दिन और इन मंदिरों में उन दिनों की तुलना में अधिक भीड़ होती है।

जानते है भारत के प्राचीन मंदिरों में चार महत्वपूर्ण मंदिर

 मोढेरा सूर्य मंदिर

मोढेरा सूर्य मंदिर भारत के गुजरात राज्य के मेहसाणा जिले में स्थित है। मोढेरा सूर्य मंदिर 1026-27 CE के बीच चालुक्य राजवंश के राजा भीमा प्रथम के शासन काल में बनाया गया था।
यह मंदिर तीन खण्डों में विभाजित किया गया है। इसमें गुधममंडप जो की तीर्थस्थल है, सभामंडप जो बिधानसभा हॉल है और जलाशय जिसे कुंड भी कहा जाता है। यह भारत के एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल में शामिल है।

 मोढेरा सूर्य मंदिर एक खूबसूरत नक्काशी का उदहारण है जो स्थापत्य शैली को मारू-गुर्जर शैली के नाम से जानी जाती है। मंदिर बेहद खूबसूरत होने के साथ इसका स्थान पशुपति नदी के किनारे है। मंदिर के शानदार स्तंभ और अधिक का हिस्सा दुर्भाग्यशाली हमलावरों के कारण बच नहीं पाया पर अब भी इस मंदिर का बहुतांश परिसर जो तोरण, बावड़ी, स्तंभ, गर्भगृह और सामने एक तालाब अभी भी सुरक्षित है।

कोणार्क मंदिर

कोणार्क भारत का सबसे प्राचीन भव्य मंदिर है। यह मंदिर 13 वी शताब्दी में कलिंग के महाराजा नरसिंहदेव प्रथम ने बनवाया था। यह 13 वे शताब्दी के सन 1250 में बनकर तैयार हुआ था। कोणार्क मंदिर पूरी के तटीय क्षेत्र से 35 किमी दूर स्थित है।

 यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल है। जिसे यूरोपीय खोजकर्ताओं द्वारा ब्लैक पैगोडा के रूप में वर्णित किया गया है। मदिर का बहुतांश हिस्सा नष्ट कर दिया गया और समय के साथ नष्ट होता गया। विशाल रथ और पत्थर के पहियों के आकार में निर्मित, सूर्योदय की पहली किरण मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से टकराती है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित करता है, जिसे 7 घोडोंद्वारा खींचा गया है जो सप्ताह के 7 दिनों के प्रतीक है और इसमें 12 पहियों वाले रथ को देख सकते हैं, जो वर्ष के 12 महीनों को दर्शाते है। चौबीस बड़े और शानदार नक्काशीदार पहिये दिन के घंटों का प्रतीक हैं। दिलचस्प बात यह है की यहाँ पे छाया देवी को समर्पित एक छोटा मंदिर भी है। मंदिर कोणार्क का नाम नगर के नाम से लिया गया है जिसका अर्थ सूर्य होता है।        

 यह अद्भुत मंदिर दुर्भाग्य से आक्रमकारियों के वजह से नष्ट हो गया। कहा जाता है की पुर्तगाली नाविकों ने सूर्य भगवान की मुख्य मूर्ति को हटा दिया था। तो कुछ एक्सपर्ट का कहना है की इसे मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं ने नष्ट किया। पर इसके कोई ठोस साबुत नहीं मिले है। मंदिर में अब केवल सभामंडप और नटमंदिर शामिल हैं क्योंकि मुख्य मंदिर कई साल पहले टूट गया था।

 दक्षिणार्क सूर्यमंदिर

 

बिहार राज्य के गया में स्थित दक्षिणार्क सूर्यमंदिर भारत के प्राचीन सूर्यमदिर में से एक है। इसका वर्णन भारतीय हिंदू धार्मिक पुस्तक वायु पुराण में भी मिलता है। गया एक महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि यह पिंड दान के लिए जाना जाता है। जहा पर सैकड़ों तीर्थयात्री अपने पूर्वज को याद करते जो दक्षिणा मानस तालाब में प्रसाद चढ़ाते हैं।

 

 

गया में स्थित यह एकमात्र सूर्यमंदिर नहीं है बल्कि यहाँ पर उत्तरा मानस टैंक के पास स्थित उत्तरका मंदिर और फाल्गु नदी के तट पर गायादित्य मंदिर स्थित है। यह मंदिर मगध क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय था। इस मंदिर का मूल अतिप्राचीन बताया जाता है। इस मंदिर की वर्तमान संरचना 13 वीं शताब्दी की है, जहां वारंगल के दक्षिण भारतीय सम्राट प्रतापरुद्र ने इसे बनवाया था।           

मार्तण्ड सूर्य मंदिर

मार्तण्ड शब्द का अर्थ सूर्य देवता यानि सूर्य का दूसरा नाम। मार्तण्ड सूर्य मंदिर भारत के जम्मू और कश्मीर में स्थित है। 8वीं शताब्दी में करकोटा राजवंश द्वारा निर्मित यह मंदिर अद्भुत कला का दर्शन दिलाता था। दुर्भाग्य से मंदिर आज खंडहर में बदल दिया गया है।

इस मंदिर से जम्मू का अनंतनाग शहर सिर्फ पांच मील दुरी पर है। इस मंदिर का इतिहास काफी सुन्दर रहा है। भारत के कोने कोने से विद्वान और भक्त मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अद्भुत रूप के दर्शन के लिए कश्मीर आया करते थे और तपस्या किया करते थे। इस मंदिर को सुतन सिकंदर बुतशिकन ने नष्ट कर दिया था।
अब यह मंदिर खंडहर होने के बावजूद राष्ट्रीय स्मारक है और इसे सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है।

 

 
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