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मेरठ के ऐतिहासिक औघड़नाथ मंदिर में बैठकें करते थे क्रांतिकारी

Date : 05-Jul-2023

मेरठ के प्रसिद्ध औघड़नाथ मंदिर में श्रावण मास की शिवरात्रि को लाखों कांवड़ियों द्वारा हरिद्वार से लाए गए गंगाजल से भगवान आशुतोष का जलाभिषेक किया जाता है। इस मंदिर का 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से सीधा नाता है। इस मंदिर में ही क्रांतिकारी बैठकें किया करते थे। अंग्रेजी सेना की भारतीय प्लाटून के निकट होने के कारण ही इस मंदिर को काली पलटन मंदिर भी कहा जाता है।

मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर को काली पलटन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजों द्वारा भारतीय सेना की प्लाटून को ब्लैक प्लाटून कहा जाता था। ब्लैक प्लाटून अपभ्रंष होकर काली पलटन कहलाने लगा। भारतीयों द्वारा काली पलटन कहा जाता था। यह प्लाटून इस मंदिर के पास ही स्थित थी। इस कारण मंदिर का नाम काली पलटन मंदिर पड़ गया। काली पलटन के सैनिक इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए आते थे। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ. कृष्णकांत शर्मा बताते हैं कि काली पलटन मंदिर में ही 1857 की क्रांति को जन्म देने वाले क्रांतिकारी इकट्ठा होते थे। इसी मंदिर में क्रांतिकारियों की भारतीय सैनिकों से मंत्रणा होती थी। उस समय एक फकीर विशेष रूप से मंदिर आते थे और सैनिकों के साथ बातचीत करते थे। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत में इस मंदिर का महत्वपूर्ण योगदान है।

मराठों की शक्ति का केंद्र बन गया था मंदिर

अपने उत्कर्ष के समय मेरठ का औघड़नाथ मंदिर भी मराठों का शक्ति केंद्र बन गया था। इतिहासकार बताते हैं कि मंदिर में मौजूद शिवलिंग स्वयंभू हैं और लोगों की आस्था का केंद्र है। युद्ध से पहले मराठा पेशवा इस मंदिर में आकर भगवान शिव का पूजन करते थे। मेरठ जनपद में मराठों द्वारा स्थापित कई शिव मंदिर मौजूद है। जिनका निर्माण मराठा शैली में किया गया है।

पुजारी ने सैनिकों को पानी पिलाना बंद कर दिया था

अंग्रेजों ने सैनिकों को नए कारतूस दिए थे, जिनमें गाय और सूअर की चर्बी लगी थी। इन कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था। गाय की चर्बी लगी होने के कारण औघड़नाथ मंदिर के पुजारी ने भारतीय सैनिकों को पानी पिलाना बंद कर दिया था। इससे भी भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश गहराता चला गया, जो अंततः क्रांति की चिंगानी को भड़काने में सहायक सिद्ध हुआ।


शिवरात्रि पर उमड़ पड़ता है लाखों कांवड़ियों का सैलाब

भारत तिब्बत समन्वय संघ के धर्म एवं सांस्कृतिक प्रभाग के राष्ट्रीय सह संयोजक शीलवर्धन बताते हैं कि श्रावण मास की शिवरात्रि पर लाखों कांवड़ियों द्वारा औघड़नाथ मंदिर में गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। पैदल और अन्य साधनों से हरिद्वार से गंगाजल लाकर कांवड़ियों द्वारा भगवान शिव की पूजा की जाती है। शिवरात्रि पर मंदिर को भव्य ढंग से सजाया जाता है। इस अवसर पर हजारों पुलिसकर्मी सुरक्षा के लिए मंदिर में तैनात रहते हैं। शिवरात्रि पर आतंकी साया होने के कारण ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से कांवड़ यात्र पर निगरानी रखी जाती है।


शंकराचार्य ने किया था नए मंदिर का शिलान्यास

औघड़नाथ मंदिर के भक्त विनीत डावर और संगीता पंडित बताते हैं कि दो अक्टूबर 1968 को नए मंदिर का शिलान्यास ब्रह्मलीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम ने किया था। 13 फरवरी 1972 को नई देव मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 14 फरवरी 1982 को मंदिर में स्वर्ण कलश की प्रतिष्ठा की गई। श्रावण मास के सोमवारों को भगवान शंकर की दिव्य झांकियों के दर्शन और भंडारों का आयोजन होता है।


भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं औघड़दानी

औघड़नाथ मंदिर के पुजारी श्रीधर त्रिपाठी बताते हैं कि यह मंदिर एक प्राचीन सिद्धपीठ है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जो शीघ्र फलप्रदाता है। अनन्तकाल से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले औघड़दानी शिवस्वरूप हैं। इसीलिए मंदिर को औघडऩाथ मंदिर कहते हैं। इसे काली पलटन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव भक्तों की पूजा से जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।

 
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