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हमीरपुर में गुप्त कालीन शिवमंदिर में छिपा है 13 सौ साल का पुराना इतिहास

Date : 12-Jul-2023

 बुन्देलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले के सरीला कस्बे में भगवान भोले नाथ के शल्लेश्वर मंदिर का इतिहास करीब तेरह सौ साल पुराना है। जिसकी दीवाल में देवलिपि भाषा में एक शिलालेख आज भी लगी है। इस मंदिर में विराजमान शिव लिंग भी बड़ा चमत्कारी है जो हर साल चावल के बराबर बढ़ता है। सावन मास में यहां बड़ी संख्या में शिवभक्तों की भीड़ पूजा और अर्चना के लिए उमड़ती है।

हमीरपुर जिले के सरीला कस्बा कभी रियासत होती थी। यहां राजा नरेन्द्र सिंह का परिवार आज भी महल में रहता है। यह पूरा इलाका बहुत ही पिछड़ा है। महाभारत काल से भी यह क्षेत्र जुड़ा है। यहां कस्बे में एक बड़ा शिवमंदिर बना है जो शल्लेश्वर मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। शिवमंदिर के गर्भ में महाभारत काल का इतिहास छिपा है। यहां के साहित्यकार डा.बीडी प्रजापति व बुजुर्ग बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी समेत तमाम लोगों ने बताया कि बुन्देलखंड क्षेत्र का इतिहास महाभारत काल से माना जाता है। आज भी तमाम धरोहरें और मंदिर अपनी भव्यता को संजोए है। इस प्राचीन शिवमंदिर में इन दिनों सावन मास की धूम मची हुई है।

गुप्तकाल में मंदिरों, गुफाओं व वास्तुकला का हुआ था उदय

सरीला कस्बे के समाजसेवी महेन्द्र सिंह राजपूत ने बताया कि सरीला स्टेट की वंशावली महाराज छत्रसाल से प्रारम्भ हुयी थी और आज यह सरीला स्टेट हमीरपुर की एक तहसील है। बुन्देलखण्ड में गुप्तकाल को स्वर्ण काल माना गया है। गुप्तकाल में यहां मंदिरों, गुफाओं व वास्तुकला का उदय हुआ था पूर्व में मंदिरों का कोई उल्लेख नहीं है। बताया कि गुप्तकाल में बने मंदिरों का विस्तार चंदेलकाल तक चरम सीमा पर रहा।

शल्लेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ में स्थित है अनूठा शिवलिंग

हमीरपुर जिले के सरीला कस्बे में स्थित शिवमंदिर के गर्भ में एक विशालकाय शिव लिंग स्थापित है। इसकी गणना लोधेश्वर, कोटेश्वर समेत अन्य तमाम प्राचीन मंदिरों से की जाती है। महेन्द्र राजपूत व साहित्यकार डा. भवानीदीन ने बताया कि इस शिवमंदिर के दीवाल में देवनगरी भाषा में एक शिलालेख लगी है। इसमें देवनगरी में लिखी लाइन को कोई आज तक समझ नहीं पाया है। शिलालेख में संवत 1202 लिखा है।

868 साल पहले गुप्तकालीन शिवमंदिर का हुआ था विस्तार

हमीरपुर के इतिहासकार डा.बीडी प्रजापति ने बताया कि शल्लेड्ढश्वर धाम मंदिर सरीला में प्राचीनतम शिवलिंग में एक है। यहां पर बने मठ को देख प्रतीत होता है कि इसका निर्माण गुप्तकाल एवं चंदेलकाल के मध्य कराया गया है। लेकिन भगवान के शिव लिंग को देखने से लगता है कि इसका निर्माण चंदेलकाल के पूर्व हुआ है। मठ में गुम्बद दीवार होने के कारण यह मंदिर चंदेलकालीन प्रतीत होता है। मौजूदा में मंदिर का सुन्दरीकरण हो चुका है।

 
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