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हमीरपुर स्थापना काल की याद दिलाता है यमुना के किनारे स्थित शिव मंदिर

Date : 26-Jul-2023

 हमीरपुर शहर में यमुना नदी किनारे स्थित शिव मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। ये मंदिर राजा हम्मीरदेव के शासनकाल में बना था।

हमीरपुर नगर के हाथी दरवाजा के ठीक सामने एक विशाल शिव मंदिर स्थित है। यह मंदिर स्थापना काल की याद दिलाता है। मंदिर की ऊंचाई करीब 41 फीट है। मंदिर के अंदर कसौटी पत्थर से चमकदार शिव लिंग स्थापित है। इसके सामने हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है । वहीं शिव लिंग के करीब नंदी की प्रतिमा विराजमान है। इस तरह के तीन मंदिर दस किमी के दायरे में बने हैं। इस मंदिर के अलावा एक मंदिर यमुना नदी पार रामपुर गांव में बना है। वहीं तीसरा मंदिर सुभाष बाजार हमीरपुर के में सब्जी मंडी के ठीक पीछे बना है। हालांकि आसपास ऊंचे भवन बन जाने से ये मंदिर अब एक साइड से दब गया है। यहां मंदिर के सामने सैकड़ों साल पूर्व बाजार भी लगती थी।

मंदिर का सैकड़ों साल पुराना है इतिहास

यहां के बुजुर्ग में रामचन्द्र गुप्ता ने बताया कि ये मंदिर कम से कम आठ सौ साल पुराना होगा। उस जमाने में राजस्थान के अलवर से भागकर आये कलचुरी राजपूत हम्मीरदेव ने हमीरपुर आकर शरण ली थी। यहां उन्होंने पूरे नगर के चारों और सुरक्षा के लिहाज से किले बनवाये थे। हाथी दरवाजा और कुओं के निर्माण के साथ ही मंदिर भी अस्तित्व में आये थे।

इतिहासकार डा.भवानीदीन प्रजापति की मानें तो राजा हम्मीरदेव के नाम से ही यह नगर का नाम हमीरपुर पड़ा था। वह अपने परिवार के साथ यमुना नदी नहाने हाथी से आते थे। नदी में स्नान करने के बाद इसी शिव मंदिर में पूजा अर्चना भी वह करते थे। यमुना नदी जाने वाले मार्ग को हाथी दरवाजा नाम दिया गया। जो आज भी धरोहर संरक्षित है।

कसौटी पत्थर से निर्मित है शिव लिंग

हाथी दरवाजा मुहाल निवासी रामचन्द्र गुप्ता ने बताया कि ये शिव मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में एक है। शिव लिंग कसौटी पत्थर का है। कसौटी पत्थर से सुनार लोग सोने के गहने घिसकर पता करते है कि सोना असली है या नकली। उन्होंने बताया कि इस तरह का शिवलिंग उत्तर भारत में देखने को नहीं मिलेगा। शिव लिंग भी दिन में दो बार रंग बदलता है। मंदिर के अंदर अद्भुत नक्काशी भी देखने लायक है। ऐसी नक्काशी खजुराहो के मंदिरों में ही देखने को मिलती है। इसकी पूजा अर्चना करने वाले तमाम स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि इस शिव मंदिर के शिव लिंग का सैकड़ों बाल्टी पानी से जलाभिषेक करने के बाद मंदिर के अंदर और बाहर पानी नहीं दिखा। पानी आखिर कहां जाता है यह आज भी रहस्य बना है।

 
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