नागणी जान आज दैवीय विभूति की तरह पुज्य है | The Voice TV

Quote :

तुम खुद अपने भाग्य के निर्माता हो - स्वामी विवेकानंद

Travel & Culture

नागणी जान आज दैवीय विभूति की तरह पुज्य है

Date : 21-Aug-2023

सुकेत के दक्षिणी भाग का पर्वतीय क्षेत्र करसोग वैदिक व महाभारत काल की कई पर पराओं से जुड़ा है। करसोग कस्बे  में ममेल नामक स्थान में प्रतिष्ठित ममलेश्वर महादेव की पावन भूमि भार्गव वंश के प्रवर्तक ऋषि भृगु की तपस्थली व इसी वंश के रेणुकानंदन परशुराम की भी तप:भूमि रही है।


मंडी जिला के करसोग के पूर्व में बंथल पंचायत के अंतर्गत  रिक्की वार्ड में एक विशालकाय प्रस्तर शिला नाग के आकार में नागणी जान के रूप में स्थित है। यह नाग के आकार की शिला भी महाभारत काल की घटना की साक्षी रही है। इस नागणी जान यानी शिला को दूर से देखा जा सकता है और अपने देहधारी जीव की आकृति के कारण कौतुहल को सहज ही उत्पन्न कर देती है।

नागणी जान आज दैवीय विभूति की तरह पुज्य है। नागणी जान के विषय में लोकमान्यता है कि महाभारत काल में करसोग के क्षेत्र में इस नरभक्षी नागिन का आतंक था। यह नागिन एक यक्षिणी थी जिसकी एक अन्य बहन मंडी के सराज क्षेत्र के अंतर्गत जंजैहली में अपने आतंक के लिए कु यात थी। ये दोनों बहने इतनी शक्तिशाली थी कि वे शिकारी शिखर पर अवस्थित शिकारी देवी को चुनौती देने का सामथ्र्य रखती थी। जब पांडव लाक्षागृह की घटना के बाद इस क्षेत्र में आए तो भीम ने दोनों बहनों का वध कर डाला। वध करने के बाद दोनों यक्षिणियों को देवत्व प्रदान किया। करसोग के बंथल क्षेत्र में आज भी भीमकाय शिला नागिन रूप में विराजमान है। इस यक्षिणी के सिर को भीम ने काट डाला था।

आज भी इस नागणी जान के कटे सिर के रूप में प्रस्तर का बड़ा अंश यथावत विशालकाय शिला पर अडिग टिका हुआ है। नागणी जान का आकार एक वृहद  रूप लिए हुए है जिसकी ऊंचाई लगभग सत्तहर फुट व लंबाई भी लगभग इतनी ही है। जंजैहली में  पांडव शिला के नाम से बंथल की यक्षिणी की बहन का विग्रह भी कौतुहलपूर्ण  है। इस यक्षिणी को चुटकी जान के नाम से भी जाना जाता है। इस शिला को एक अंगुली के बल से भी हिलाया जा सकता है।

संस्कृति मर्मज्ञ डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि नागणी जान की पूजा पशुधन रक्षा,धन-धान्य वृद्धि व नागों के प्रकोप से बचने के लिए की जाती है। शौंठ निवासी जियालाल मैहता के अनुसार एक बार इस क्षेत्र में सांपों का प्रकोप बढ़ गया। अत: नागणी जान की पूजा-अर्चना से सांपों का प्रकोप थम गया। तभी से नागनी जान की पूजा हर संक्रांति में की जाती है। धान की फसल लगाने से पहले नागणी जान की विशेष पूजा स पन्न की जाती है।


नागणी जान की पूजा का दायित्व  पारली

 सेर व खराटलु गांव के लोगों का रहता है। नागनी जान के  रूप में प्रतिष्ठित यक्षिणी की मान्यता शिलानाल,बंथल,चमैरा,राड़ीधार,शौंट,रिक्की,खनौरा,लठैहरी,मड़ाहग,बान-क्वान व नहरठी गांव में है। नागनी जान के इस स्थान पर शौंप गांव के देव शंकर तीसरे वर्ष निकलने वाले फेर में यहां रात्रि प्रवास करते हैं । ऐधन निवासी वीरसेन का कहना है कि वास्तव में नागणी जान (शिला) के प्रति लोक आस्था व इससे जुड़े वैदिक आ यान यहां के इतिहास व संस्कृति को परिपुष्ट करते है।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload










Advertisement