एक बार कुछ ऋषियों ने व्यासजी के शिष्य सूतजी से प्रश्न किया,”सूतजी! ब्रम्हा, विष्णु और शिव इन तीनों में अपने कर्म, योग्यता तथा प्रभाव से कौन श्रेष्ठ हैं एवं इनकी विशिष्टताएँ क्या हैं ?”
सूतजी ने उत्तर दिया, “सर्वव्यापक परमेश्वर के सृष्टि, पालन तथा संहार के कारण रूप, नाम और कर्म बदलते रहते हैं | परमेश्वर जब सृष्टि उत्पन्न करते हैं, तब ‘ब्रम्हा’ कहलाते हैं, जब सृष्टि का पालन करते हैं, तब विष्णु’ कहलाते हैं जब वे संहार करते हैं, तब ही ‘शिव’ कहलाते हैं | रज, सत्व, और तम इन गुणों के कारण वे ही परमेश्वर सृष्टि, पालन और संहार इन तीनों कार्यों के भेद से तीन विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं | वेद में इन तीनों को एक ही रूप मानकर ‘त्रिमूर्ति’ की संज्ञा दी गयी है | हमारे शास्त्र कहते हैं कि इन तीनों में से एक की भी जो निंदा करता है, उसे तीनों की निंदा का पातक लगता है | वास्तव में वह एक ही आत्मा है, जो अपनी ही माया से एक होते हुए भी मनुष्यों को तीन दिखाई देता है, अत: किसी एक की श्रेष्ठता का प्रश्न ही नहीं उठता |”
अनुजा भोरेसौरमंडल को ब्रह्माण्ड कहा जाता है। जिस प्रकार एक ब्रह्माण्ड में ग्रह और तारे सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, उसी प्रकार अनेक ब्रह्माण्ड भी ईश्वर के चारों ओर घूमते हैं। इसमें भारत का स्थान उस शाश्वत एवं अनंत शक्ति के समक्ष आता है। हमारे देश का नाम बहुत अर्थपूर्ण है, क्योंकि ‘भा’ का अर्थ है तेज और ‘रत’ का अर्थ है लीन होना। यदि इन शब्दों कि संधि कि जाए तो भा+रत यानी तेज में लीन होनेवाला अर्थ निकलता है। वहीं प्रचीन साहित्य में ऐसा जिक्र है कि, कण्व ऋषि की पुत्री शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत रखा गया है। देश के नाम की उत्पत्ति चाहे जो भी हो, प्रायः यह महसूस किया जाता है कि हमारा भारत हजारों वर्षों से धर्म और अध्यात्म का मूल आधार रहा है। महाकुंभ की शुरुआत से ही कई पौराणिक कथाएं, धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ पढ़ने में आए हैं। नतीजतन प्रयागराज महाकुम्भ में जाने के लिए तीव्र इच्छा पैदा हो गई। सॉफ्टवेयर क्षेत्र में काम करते हुए मुझे देश-विदेश में विभिन्न स्थानों की यात्रा करने का अवसर मिला। मुझे यात्रा करना पसंद है, क्योंकि मुझे प्रकृति और पर्यटन से प्यार है। बच्चों की पढ़ाई और पारिवारिक जिम्मेदारियां हमें लगातार पीछे धकेलती रहती हैं और हमें इसका एहसास भी नहीं होता। लेकिन, प्रयाग जाने की लालसा मुझे शांत बैठने नहीं देती थी। इसलिए, अंततः अपने परिवार से बात करने के बाद मैंने प्रयागराज जाने का फैसला किया। चूंकि बच्चे अभी स्कूल में थे, इसलिए परिवार के सभी बड़ों ने प्रयाग जाने की अपनी योजना बना ली। इसके साथ ही उन्होंने काशी और अयोध्या जाने की भी योजना बनाई। इसके लिए वाहन से सड़क मार्ग से जाने का निर्णय लिया गया। चूंकि मेरे लिए इतने लंबे समय तक घर से दूर रहना संभव नहीं था। इसलिए मैंने निर्णय लिया कि परिवार वाहन से जाएगा और मैं प्रयागराज में उनके साथ हो जाऊंगी। बाकी परिवार अयोध्या और काशी का भ्रमण करने के बाद नौ फरवरी को प्रयागराज के लिए रवाना हुआ। उसी दिन मैं पुणे से फ्लाइट से प्रयागराज पहुंची । प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देख मेरे पति ने मुझे हवाई अड्डे से होटल तक ले जाने के लिए एक बाइक सवार को बुक किया। लेकिन, भारी भीड़ के चलते उन्होंने आने से इनकार कर दिया। प्रयागराज में श्रद्धालुओं का जनसागर देख मन में विचार आया कि अब इस जनसागर को पार कर होटल कैसे पहुंचूंगी? लेकिन, यहीं पर मुझे दैवीय शक्ति का पहला अनुभव हुआ। बहुभाषी समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार के चेयरमैन अरविंद मार्डीकर मेरे साथ विमान में यात्रा कर रहे थे। मेरी परेशानी को देखते हुए उन्होंने मुझे होटल तक पहुंचाने का वादा किया। भीड़ को देख कर ऐसा लगने लगा था कि इस विशाल भीड़ से बाहर निकलने का रास्ता कैसे खोजा जाए..? तभी एक परायी जगह पर मार्डीकर जी से सहायता प्राप्त हुई। मार्डीकर जी ने अपनी कार से जहां तक संभव हुआ, मुझे पहुंचाया।
इसके बाद उन्होंने अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी को मुझे होटल तक सुरक्षित पहुंचाने का निर्देश दिया और वे रवाना हो गए। इसके बाद मार्डीकर जी के सहकर्मी ने मुझे सुरक्षित मेरे होटल तक पहुंचाया। इस कलियुग मे जहां इन्सान व्यापारी और दुनिया बनी हुई है वहां, बुजुर्गों के आशिर्वाद से मार्डीकर जी जैसे लोग सहायता करने पहुंच जाते हैं। इस मदद के चलते मैं और परिवार के सभी लोग एक ही समय पर होटल पहुंचे और कुछ देर आराम करने के बाद हम ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के लिए चले गए। हर जगह लोग ही लोग थे। मानो वहां जनसैलाब उमड़ा हो। इस भीड़ में बूढ़े, छोटे बच्चे और विकलांग सभी ऐसे चल रहे थे जैसे उनमें कोई अज्ञात शक्ति समाहित हो। उस जादुई माहौल ने एक अलग ही एहसास दिया। थोड़ी ही देर में हम घाट पर पहुंच गए, पवित्र स्नान किया, गंगा जल भरा, तट पर पूजा और आरती की और आनंद का अनुभव किया। इतनी भीड़ में भी आपको कभी भी गंदगी या परेशानी महसूस नहीं होती क्योंकि वहां आने वाला हर व्यक्ति आस्था की गहराइयों में डूबा होता है और आप भी उस ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं। महाकुम्भ एक अद्भुत अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना वाकई मुश्किल है। आपको वहां जाना होगा और इसका अनुभव करना होगा। अगले दिन हमने वहां के अखाड़ों और मंदिरों का भ्रमण किया और महाकुम्भ को अपनी आंखों और मन में संजोए हमने अपनी वापसी यात्रा शुरू की। मैं और मेरी सासू मां हवाई जहाज से पुणे पहुंचे। वहीं पति और परिवार के अन्य सदस्य चित्रकूट और नेवासा होते हुए सड़क मार्ग से पुणे पहुंचे। कुम्भ मेला व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन यदि आप फिर भी जाने की सोच रहे हैं तो आपको अवश्य जाना चाहिए। महाकुम्भ की भीड़ और गंगा के जल में डुबकी लगा कर व्यक्ति कितना पवित्र होता है या नहीं इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन, महाकुम्भ में अमीर-गरीब, जाति-पंथ, धर्म-संप्रदाय, पुरुष-महिला यह सारे भेद दूर होकर सभी आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम मे एकाकार होते हैं।(लेखिका, पुणे में रहती हैं। आईटी एक्सपर्ट हैं।)
डॉ. आरबी चौधरीतमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित पोलाची में तमिल समर्थकों ने 23 फरवरी को रेलवे स्टेशन के बोर्ड पर हिन्दी में लिखे नाम पर कालिख पोतकर भाषा विवाद को और गरमा दिया। रेलवे सुरक्षा बल ने इन लोगों की पहचान कर मामला दर्ज किया है। सच पूछिए तो यह घटना एक बड़े विवाद का हिस्सा है, जिसमें तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) के माध्यम से हिन्दी थोपने का आरोप लगाया है। द्रमुक इस आरोप से इनकार करते हुए भाजपा के साथ वाक युद्ध में लगी हुई है। तमिलनाडु में हिन्दी विरोध की जड़ें 20वीं सदी की शुरुआत से हैं। विरोध प्रदर्शन तमिल संस्कृति और भाषा की रक्षा की इच्छा से प्रेरित है। अधिकांश तमिल आज भी हिन्दी को अपनी पहचान के लिए खतरा मानते हैं।इतिहास के पन्ने को पलटने पर ज्ञात होता है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1937 में स्कूलों में अनिवार्य हिन्दी शिक्षण की शुरुआत की। तमिलनाडु में इसका व्यापक विरोध हआ। विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व पेरियार ई.वी. रामासामी और जस्टिस पार्टी ने किया। 1937-1940 के आंदोलन के दौरान 1,198 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया और 1,179 को दोषी ठहराया गया। सबसे बड़ा हिन्दी विरोधी आंदोलन 1948-1950 के बीच हुआ। इस दौरानहड़तालें हुईं। वर्ष 1965 में मदुरै में हिन्दी विरोधी दंगे भड़क उठे जिसके परिणामस्वरूप लगभग 70 लोग मारे गए।आज भी तमिलनाडु में हिंदी विरोध विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। द्रमुक और अन्य दल गैर-हिन्दी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का विरोध कर रहे हैं। जबकि भारत सरकार हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में बढ़ावा देने के प्रयास में लगी हुई है। वर्तमान विरोध ने यह स्वीकार करना आरंभ कर दिया है कि हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी भी आधिकारिक भाषा बनी रहे। वर्तमान विरोध सिर्फ राजनीतिक क्रियाकलाप है। वैसे, तमिलनाडु में हिन्दी विरोध की वास्तविकता जटिल है। इसमें राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों कारक शामिल हैं। कुछ लोग तर्क देते हैं कि वर्तमान विरोध तमिल संस्कृति और भाषा की रक्षा करने की वास्तविक इच्छा से प्रेरित है। बुद्धिजीवी और आम आदमी इसे राजनीतिक दलों द्वारा लाभ प्राप्त करने के साधन के रूप में देखता है।
सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18-25 आयु वर्ग के 71 प्रतिशत लोगो ने बिना समझे-बूझे हिन्दी थोपने का विरोध किया। यूगऊ के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18-24 वर्ष की आयु के तमिलनाडु के 63 प्रतिशत निवासियों का मानना था कि स्कूलों में हिन्दी को जरूर पढ़ाया जाए लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। कुछ लोग तर्क देते हैं कि हिन्दी जानने से नौकरी के अवसर बढ़ सकते हैं और व्यापार और व्यापार संबंधों को सुविधाजनक बनाया जा सकता है। तमिलनाडु में भी मनोरंजन की दुनिया का लुफ्त उठाने के लिए हिन्दी भाषा को व्यावसायिक भाषा माना जाता है। लेकिन राजनीतिक के संवर्ग के लोग इसे तमिल संस्कृति और भाषा के लिए खतरा मानते हैं।नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत की 60 फीसदी आबादी हिन्दी बोलती है। भाषा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान परिदृश्य में तमिलनाडु की 40 फीसद आबादी को हिन्दी का कुछ ज्ञान है और धीरे-धीरे लोग हिन्दी को सीख रहे हैं। तमिलनाडु के स्कूलों में हिन्दी पढ़ने की गति तेज हुई है। लोग प्रदेश से बाहर जाकर अपने व्यवसाय को बढ़ाना चाहते हैं और देशभर में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा हिन्दी का लाभ उठाना चाहते हैं। इस कार्य में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का बहुमूल्य योगदान है। सन् 1964 में सभा को संसद ने इसे 'राष्ट्रीय महत्व की संस्था' घोषित किया था।देखा जाए तो डुओलिंगो, इटालकी और प्रीप्ली जैसे कई ऐप और ऑनलाइन प्लेटफार्म हिन्दी भाषा के पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं और तमिलनाडु सहित भारत के तमाम हिस्सों में इन्हें काफी डाउनलोड और उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त, लिंग और ड्रॉप्स जैसे कुछ ऐप हिन्दी सीखने के लिए इंटरैक्टिव और गेमीफाइड पाठ प्रदान करते हैं, जो तमिलनाडु की युवा आबादी को आकर्षित कर सकते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, दक्षिण भारत में लगभग 30 फीसद लोग हिन्दी गाने सुनते हैं। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि तमिलनाडु में लगभग 70 फीसद छात्र हिन्दी की अज्ञानता के कारण केंद्रीय नौकरी में नहीं जा पाते हैं। इन बातों को स्वीकार करते हुए तमिलनाडु सरकार ने 1968 में हिन्दी को एक वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया था। अंततः, तमिलनाडु पर हिन्दी थोपने या न थोपने का निर्णय एक जटिल मुद्दा है। इसमें कई कारक शामिल हैं। एक बात बहुत स्पष्ट है कि तमिलनाडु के लोग विशेष रूप से युवा पीढ़ी भाषा की राजनीति में रुचि नहीं रखती। वह हिन्दी सीखने के लिए उत्सुक हैं।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
हिमालय के आंतरिक क्षेत्र में स्थित गंगोत्री धाम हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल है। यह वही स्थान है जहाँ गंगा, जिसे जीवन की धारा माना जाता है, पहली बार पृथ्वी पर अवतरित हुई।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवी गंगा राजा भगीरथ की कठोर तपस्या के फलस्वरूप पृथ्वी पर आईं। उनके पूर्वजों के पापों के प्रायश्चित के लिए गंगा का अवतरण आवश्यक था। किंतु गंगा के वेग को सहन कर पाना कठिन था, इसलिए भगवान शिव ने अपनी जटाओं में उन्हें रोककर उनके प्रवाह को नियंत्रित किया। गंगोत्री में अवतरित होने के कारण इस पवित्र नदी को यहाँ भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा सगर ने अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के लिए छोड़ा गया घोड़ा जब कपिल मुनि के आश्रम में बंधा मिला, तो राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने आश्रम पर आक्रमण कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया, जिससे वे सभी नष्ट हो गए। उनके उद्धार के लिए राजा सगर के पौत्र भागीरथ ने कठिन तपस्या कर देवी गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने भगवान विष्णु के वामन अवतार के चरण धोकर उनके जल को अपने कमंडलु में संचित किया, जिससे गंगा उत्पन्न हुईं।
एक अन्य कथा के अनुसार, गंगा एक सुंदर कन्या के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुईं और उन्होंने राजा शांतनु से विवाह किया। उनके पुत्रों में से सात को उन्होंने नदी में प्रवाहित कर दिया, लेकिन आठवें पुत्र भीष्म को राजा शांतनु ने बचा लिया। बाद में भीष्म ने महाभारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गंगोत्री धाम में भागीरथी नदी के तट पर स्थित गंगोत्री मंदिर 18वीं शताब्दी में गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा द्वारा बनवाया गया था। मान्यता है कि राजा भगीरथ ने इसी स्थान पर एक पवित्र शिला पर बैठकर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप गंगा धरती पर अवतरित हुईं।
गंगोत्री से लगभग 19 किलोमीटर दूर, समुद्र तल से 3,892 मीटर की ऊँचाई पर गौमुख स्थित है, जिसे गंगोत्री ग्लेशियर का मुख और भागीरथी नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि यहाँ के बर्फीले जल में स्नान करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है और आत्मा शुद्ध हो जाती है।
गंगोत्री धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम भी प्रस्तुत करता है। इस पावन स्थल की यात्रा हर श्रद्धालु के लिए एक दिव्य अनुभव साबित होती है।
डॉ. मयंक चतुर्वेदी निवेश का महत्व अर्थ की महत्ता के साथ सदियों से रहता आया है, किंतु यह निवेश तभी संभव है जब परस्पर के संवाद में गहराई हो, आत्मीयता के साथ ही आर्थिक लाभ का पक्ष भी दोनों ओर से बराबर जुड़ा हो। यह सूत्र प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अच्छे से समझते हैं। एक व्यापारी, उद्योजक और निवेशक अपनी पूंजी के प्रवाह को किसी स्थान पर लगा देने के पूर्व वह यह आश्वस्ती अवश्य चाहता है कि जहां वह अपना अर्थ व्यय कर रहा है या भविष्य की दृष्टि से अपने रुपयों का निवेश कर रहा है, वह हर हाल में न केवल सुरक्षित हो, बल्कि सर्व सुविधा सम्पन्न भी हो, ताकि आगे किसी भी प्रकार की कोई बड़ी परेशानी का सामना न करना पड़े। वैसे संवाद से निरुक्त के आचार्य यास्क भी याद आते हैं। वास्वत में ऋषि यास्क निरुक्त के वे लेखक हैं, जो शब्द व्युत्पत्ति, शब्द वर्गीकरण एवं शब्दार्थ विज्ञान पर एक तकनीकी प्रबन्ध प्रस्तुत करते हैं। जिसमें कि उनके द्वारा सबसे अधिक परस्पर के संवाद पर जोर दिया गया है। मध्य प्रदेश में भी इन दिनों एक संवाद होता देखा जा रहा है। यह संवाद राज्य में रहनेवाले प्रत्येक नागरिक के लिए पर्याप्त रोजगार हो और वह सुख से अपना जीवन निर्वाह करे, इसके लिए किया जा रहा है। जिसके कि वाहक बने हैं, राज्य के प्रमुख होने के नाते डॉ. मोहन यादव । एक मुख्यमंत्री के तौर पर नितरोज नवाचार करना एवं आर्थिक समृद्धि के लिए प्रयास करते हुए उन्हें देखा जा रहा है। इस दिशा में मध्यप्रदेश के भोपाल में हो रही "इन्वेस्ट मध्यप्रदेश - ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट-2025" ने निवेशकों, व्यवसायियों और उद्योगों के लिए 'अनंत संभावनाओं' की एक दिशा तय कर दी है।
इस आयोजन की सफलता इससे भी समझी जा सकती है कि देश के किसी प्रधानमंत्री ने इसके महत्व को समझते हुए यहीं रात्रि विश्राम करने के लिए अपना कार्यक्रम बनाया ताकि अधिकतम लोगों से मिलकर मध्य प्रदेश की समृद्धि से देश के विकास के लिए जरूरी विमर्श किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले कौन प्रधानमंत्री भोपाल में रुका है, यह याद नहीं आता, बहुत पहले इतिहास में किसी ने स्वाधीनता के पश्चात यहां अपनी रात व्यतीत की होंगी। निश्चित ही यह मोहन सरकार की सफलता ही है कि मप्र के विकास की अपार संभावनाओं में वे हर अवसर का भरपूर उपयोग कर लेना चाहते हैं। वस्तुत: इस आयोजन के पूर्व समय पर दृष्टि डालें तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मध्यप्रदेश को औद्योगिक हब बनाने के लिए इतने अधिक संकल्पित दिखाई दे रहे हैं कि देश के महानगरों में उद्योगपतियों के साथ इंटरेक्शन, प्रदेश में रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव और जर्मनी-यूके में निवेश की अपार सफलता के बाद वे विदेशी उद्योजक से संवाद करने के लिए जापान जा पहुंचे थे। वहां उन्होंने जापान के टोक्यो, ओसाका और कोबे जैसे प्रमुख शहरों में स्थानीय उद्योगपतियों से म.प्र. में निवेश के संबंध में संवाद करने के साथ ही उनसे यह भी वादा ले लिया था कि आगामी माह में होने जा रही 24 और 25 फरवरी 2025 को भोपाल में आयोजित होने वाली ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट वे मप्र आ रहे हैं और यहां अपने उद्योग स्थापित करने के लिए बड़ा निवेश भी करेंगे। जहां जिस भी देश में मुख्यमंत्री गए और वहां के उद्योगपतियों से संवाद किया, वहां कृषि, डेयरी एवं फूड प्रोसेसिंग, फिनटेक, आईटी-आईटीईएस और रोबोटिक्स, फार्मास्युटिकल्स, मेडिकल डिवाइस, इलेक्ट्रिक वाहन, ऑटोमोबाइल, शहरी एवं औद्योगिक बुनियादी ढांचे, एयरोस्पेस और रक्षा, सहित पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित बातचीत इतनी सफल रही है कि यूके, जर्मनी, जापान समेत अनेक देशों से मध्य प्रदेश आनेवाले उद्योगपतियों की एक बड़ी संख्या है जो यहां आकर अब निवेश के लिए अपने क्षेत्र का निर्धारण करते हुए उद्योग स्थापित करेंगे। आज जापान, मध्यप्रदेश का प्रमुख व्यापार और निवेश साझेदार है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत-जापान व्यापार सूएसडी 22.85 बिलियन तक पहुंचा, जिसमें मध्यप्रदेश ने एल्यूमिनियम, केमिकल्स, फार्मास्यूटिकल्स, और वस्त्र जैसे उत्पादों का निर्यात किया। राज्य में ब्रिजस्टोन, पैनासोनिक, सनोह, एनएचके, और कोमात्सू जैसी प्रमुख जापानी कंपनियां सफलतापूर्वक काम कर रही हैं।जापान "इन्वेस्ट मध्यप्रदेश – ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट-2025" में 'पार्टनर कंट्री' के रूप में भाग ले रहा है। इसी तरह से जर्मनी पार्टनर कंट्री केरूप में शामिल हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जर्मनी के म्यूनिख दौरे के दौरान सीआईआई और जर्मन इंडियन इनोवेशन कॉरिडोर - सेंट्रल इंडिया के समन्वय से जर्मन निवेशकों को मध्यप्रदेश में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया था। समिट में 60 देशों के प्रतिनिधियों की भागीदारी होगी, जिसमें डिपार्टमेंटल समिट, पार्टनर कंट्री सेशन, प्री-बिड सत्र, थीम आधारित सेशन और उद्योगपति एवं निवेशकों के साथ बैठकें शामिल हैं।
इसमें भी मोहन सरकार ने एक नवाचार यहां यह किया है कि उसने देश भर के अधिक से अधिक आंत्रप्रेन्योर से सीधा संवाद किया है और अपने इस भव्य, दिव्य आयोजन में 10,000 से ज्यादा आंत्रप्रेन्योर और लीडर्स को एक साथ आमंत्रित किया। ताकि वे अपने लिए मध्य प्रदेश में संवाभनाएं तलाश सके। वैसे डॉ. मोहन यादव आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा कार्य इंडस्ट्रियल सेक्टर पीथमपुर, इंदौर, देवास, उज्जैन और धार को मिलाकर एक इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाने का है, जोकि उनकी एक बड़ी परियोजना है। यह एरिया इतना व्यापक है कि इसमें मोहन सरकार करीब 10000 किलोमीटर में नई इंडस्ट्रीज लगाने जा रही है। अर्थात् रोजगार के इतने अवसर वह राज्य में पैदा कर देना चाहती है कि न सिर्फ मध्य प्रदेश के बल्कि दूसरे कई राज्यों को मप्र भविष्य में पर्याप्त रोजगार उपलब्ध कराने वाले राज्य में रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे। कहना होगा कि मप्र में जो यह ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट हो रही है, इसके माध्यम से दुनिया भर के निवेशक मध्य प्रदेश की क्षमता को देख और समझ रहे हैं। इससे राज्य में विकास को तो हर क्षेत्र में गति मिलेगी ही साथ ही पर्याप्त लोगों को रोजगार के नए अवसर मिलने जा रहे हैं। आज मुख्यमंत्री जिस तरह से सीधे सभी से संवाद कर रहे हैं, उसे देखकर यह अवश्य लगने लगा है कि मध्य प्रदेश आनेवाले समय में इतनी अधिक गति पकड़ेगा कि देश का कोई अन्य राज्य उसकी गति को शायद ही पकड़ पाए। ऐसे में मध्य प्रदेश बहुत तेजी से विकसित राज्य की श्रेणी में अपने को लाने में अवश्य सफल होता दिखाई देता है। निश्चित ही इसके पीछे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के किए जा रहे अपार संवाद की बड़ी भूमिका स्पष्ट नजर आती है। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
लेखक - डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अमरीका ने मान लिया है कि रिश्वत व्यवसाय के लिए जरूरी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीकी कंपनियों को साफ-साफ संकेत दिया है, रिश्वत दे दो - ठेके ले लो, अमरीका में उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने जिस विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) पर रोक लगाई है, वह अमेरिका से जुड़ी फर्मों और लोगों को विदेश में अपने व्यापार को सुरक्षित करने के लिए विदेशी अधिकारियों को पैसे या उपहार या किसी भी तरह की रिश्वत देने से प्रतिबंधित करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने करीब 50 साल पुराने इस कानून को निलंबित कर दिया है। इस कानून पर रोक लग जाने के बाद अमरीकियों के लिए विदेशों में व्यापार के लिए रिश्वत देना अपराध नहीं रहेगा। ट्रम्प ने अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को इस कानून के तहत दिए गए फैसलों की समीक्षा करने के लिए गाइडलाइन्स बनाने के निर्देश दिए हैं।
ट्रंप का कहना है कि यह कानून अमरिकी कंपनियों के लिए ‘एक आपदा’ है। ट्रंप का कहना है कि जब अन्य देशों की कंपनियां आसानी से रिश्वत देकर व्यापार कर रही है ऐसे में यह कानून अमरिकी व्यापारियों को वैश्विक स्तर की प्रतिस्पर्द्धा में कमजोर बना रहा है। ट्रंप ने इस कानून को ‘जिम्मी कार्टर की बेकार योजना’ बताया और कहा कि इससे अमेरिकी कंपनियों को बड़ा नुकसान हो रहा है। अब अमरीकी कंपनियों के खिलाफ एफसीपीए के तहत मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे। यानी अब अमेरिकी कंपनियां विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने सौदे पक्के कर सकती हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति इस समय महाशक्ति होने के नाते दुनिया के सामने स्वयं को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने के बजाय व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में अपने देश का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, अपने इन प्रयासों के तहत वे अपने देश के व्यापारियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि अगर वे दुनिया के अन्य देशों में रिश्वत देकर व्यवसाय हासिल करते हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। ट्रम्प के इस निर्णय का सीधा-सीधा संकेत समझा जा सकता है कि रिश्वतखोरी और रिश्वतखोरों को सुधारा नहीं जा सकता, इसलिए रिश्वत-रिश्वतखोरी-रिश्वतखोरों का रोना रोने से अच्छा है कि रिश्वत को मान्यता ही दे दी जाए।
ट्रम्प के इस ट्रम्प कार्ड ने बिटवीन द लाइन्स बहुत सारी बात कह दी है। जो लोग रिश्वत खाकर खुद को व्हाइट कॉलर होने का दिखावा करते हैं, उन पर भी सीधी-सीधी चोट कर दी गई है। महाशक्ति ने स्वीकार कर लिया है कि रिश्वतखोरी होती ही है, ऐसे में कोई दिखावा करने वाली बात है ही नहीं। आम जनता तो बोलती ही है, अब संवैधानिक पद पर चुने हुए नेता भी बोल रहे हैं तो उसके मायने साफ हैं, डील अब सीधी-सीधी कर लो। ट्रम्प के संकेत स्पष्ट हैं कि सारे काम इसी तरह हो रहे हैं, फिर शर्माना कैसा।
लेकिन, ट्रम्प ने अपने देश के व्यापारियों को रिश्वत का ट्रम्प कार्ड अमरीका से बाहर खेलने के संकेत दिए हैं। अमरीका के भीतर रिश्वतखोरी को ट्रम्प शायद ही बर्दाश्त करें। इसकी बानगी उनके पीछे-पीछे आए मस्क के बयान से भी समझी जा सकती है। अमरीका में डिपार्टमेंटऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) के प्रमुख एलन मस्क ने ट्रम्प के रिश्वत वाले निर्णय के एक दिन बाद व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार पर हावी नौकरशाही को कठघरे में खड़ा किया। मस्क ने कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के स्थान पर वास्तव में ब्यूरोक्रेसी सरकार चलाती रही है। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बाद पावरफुल माने जाने वाले एलन मस्क का यह बयान भी बड़े संकेत दे गया है। जब अमरीका में ही शीर्ष नेतृत्व ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर ऐसी धारणा बयां की है, तब अन्य देशों की स्थिति पर चर्चा शुरू होनी ही है।
अब तक आम आदमी ही पीड़ा में इस तरह की बातें करता रहा है, इस देश को जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के बाद आईएएस और आरएएस नाम की कम्पनियां चला रही हैं। रियासतकाल में सिर्फ 565 रियासतों के राजा ही वीआईपी होते थे, अब तो हर छोटा-मोटा अफसर वीआईपी है। अफसर तो अफसर, उनका परिवार भी वीआईपी ही होता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है किसी बड़े मंदिर में लगी दर्शनार्थियों की कतार के बीच अफसरों के परिवारजनों का पुलिस सुरक्षा में बेधड़क आगे पहुंच जाना। आम आदमी यह नजारा आए दिन देखता है।
शायद इन्हीं परिस्थितियों को विश्व की महाशक्ति के नेताओं ने समझा और रिश्वतखोरी और नौकरशाही को चर्चा के केन्द्र में ला दिया है। समझना मुश्किल नहीं है कि अब रिश्वतखोर को आम आदमी खुलेआम भ्रष्ट कह दे तो आश्चर्य नहीं होगा, आम आदमी यह तर्क दे सकता है कि भई, कष्ट क्यों हो रहा है, अब तो अमरीका ने खुले आम रिश्वत देने की बात कह दी है। अब तक अंडर द टेबल की इबारत यूज की जाती थी, अब तो टेबल के ऊपर ही डील हो जाएगी। लेकिन, ऊपर द टेबल में मजा यह भी आ सकता है कि रिश्वत की बोली लगे। मसलन किसी ठेके को लेने के लिए न्यूनतम रिश्वत निर्धारित कर दी जाए और उसके बाद ठेका प्राप्त करने के इच्छुक आवेदक उसके ऊपर बोली लगाएं, जिसकी सबसे ज्यादा होगी, उसे ठेका दे दिया जाएगा।
वैसे, यदि इस परम्परा को ओपन करने के साथ अधिकतम बोली को कार्यादेश की अनुमानित लागत में अतिरिक्त जोड़ने की नीति बना ली जाए तो और भी अच्छा रहेगा, कम से कम किए जाने वाली कार्य की गुणवत्ता बरकरार रहेगी। इससे अब तक जो जनतो को दोहरा नुकसान हो रहा था वह नहीं होगा।
दोहरे नुकसान को भी समझ लीजिये। कहावत तो सुनी ही होगी, तेल तो तिलों में से ही निकलता है। रिश्वत देने वाला कार्य की गुणवत्ता के साथ समझौता करके ही इसकी भरपाई करता था। रिश्वत भी जनता के आयकर से दिया जाने वाला हिस्सा होती है और उसी आयकर से बनने वाली सड़क, पुल या अन्य वस्तु की गुणवत्ता में समझौता भी जनता ही भुगतती है। अब यदि, रिश्वत को ओपन डोमेन में ला दिया जाए और अनुमानित लागत में जोड़ने का प्रावधान कर दिया जाए तो गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं होगा और जनता को रिश्वत और गुणवत्ता दोनों के बजाय सिर्फ रिश्वत का ही भार झेलना होगा।
ट्रम्प एक महाशक्ति का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने कोई भी बात ऐसे ही नहीं कह दी होगी। साफ जाहिर है कि उन्हें पता होगा कि वेतन और रिश्वतखोरी में क्या अंतर्सम्बंध हैं। अचानक कोई सामान्य से सरकारी वेतन वाला कुछ ही वर्षों में एसयूवी, बंगले का मालिक कैसे बन रहा है। कैसे एक सामान्य से सरकारी वेतन वाले के बच्चे लाखों की फीस वाले महंगे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बात इतनी ही नहीं है, संवैधानिक नियमावली की पालना करना सामान्य नागरिक का ही कर्तव्य बन गया है, सरकारी कार्मिक से लेकर सरकार तक के पास उस नियमावली में गली निकालने की पूरी छूट है। और तो और अब पब्लिक डोमेन में विजिलेंस डिपार्टमेंट पर ही एक और गोपनीय विजिलेंस विभाग की आवश्यकता की बातें होने लगी है, लेकिन नैतिकता की गारंटी यहां भी कहां है?
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प और एलन मस्क के रिश्वत व हावी ब्यूरोक्रेसी पर बयानों को सामान्य समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह रिश्वतखोरी और नौकरशाही पर बड़ा प्रहार साबित हो या न हो, भारत जैसे देशों के लिए यह आंखें खोलने का वक्त है। भारत में भी रिश्वतखोरी के मामलों की कोई कमी नहीं है। यदि अमरीकी कम्पनियों को छूट मिल गई है तो वे भारत में भी रिश्वत देकर अपना काम निकालने का प्रयास करेंगी ही, ऐसे में अगर भारत में भी ऐसे कानूनों को कमजोर किया गया, तो भ्रष्टाचार बढ़ने की आशंका के साथ देश के व्यापार जगत को नुकसान के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे जैसी स्थिति बन सकती है। यूरोपीय संघ ने भी इस फैसले की आलोचना की है और कहा कि यह वैश्विक व्यापार के लिए खतरनाक हो सकता है।
इस पूरे प्रकरण से भी यदि वैश्विक स्तर पर रिश्वतखोरी के खिलाफ नौकरशाही में नैतिकता जाग जाए तो बेहतर है, इस पर वृहद चर्चा का समय आ गया है। आम आदमी भी यही चाहता है कि रिश्वतखोरी और इंस्पेक्टर राज पर सरकार बोलने वालों को अभयदान दे, वर्ना सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों के व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगते देर नहीं लगेगी।
लेखक -कौशल मूंदड़ा