शिक्षाप्रद कहानी:- संत की मित्रता Date : 01-Feb-2025 एक बार की बात है कि स्वामी रामतीर्थ जापान की यात्रा पर गए| वहीं उनको अमेरिका से निमंत्रण आया तो जापान से ही अमेरिका जाने का निश्चय किया| उन दिनों वायुयान का प्रचलन उतना नहीं था, जलयान अर्थात् स्टीमर का चलन था| वे एक स्टीमर से जापान से अमेरिका जा रहे थे| किसी प्रकार स्टीमर के भाड़े का प्रबंध तो हो गया था, किन्तु उनके पास खर्च के लिए कुछ भी पैसे नहीं थे, फिर भी वे भगवान की कृपा पर भरोसा कर चल दिये| कुछ समय पश्चात् उनके किसी सहयात्री ने उनसे प्रश्न किया-“ क्या अमेरिका में आपका कोई मित्र है, जिससे आप मिलने जा रहे हैं|” भारतीय साधुओं को देखकर उन काल में पाश्चत्य लोगों को भांति-भांति की जिज्ञासा हुआ करती थी| वैसा ही वह अमेरिकन युवक था| स्वामी रामतीर्थ ने कुछ क्षण विचार कर उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- ‘’हाँ है, मेरा एक बड़ा ही गहरा मित्र वहाँ पर है |” उस व्यक्ति ने उसका परिचय जानना चाहा तो पूछा-‘’क्या आप अपने उन मित्र का नाम और पता मुझे बताएँगे?” स्वामी रामतीर्थ बड़े सहज भाव से उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए बोले- ‘’अरे भाई आप ही मेरे वे गहन मित्र हैं |” यह कहते हुए उन्होंने उस व्यक्ति के कंधे पर बड़े प्रेम से अपना हाथ रख दिया | वह युवक अभिभूत हो गया | स्वामी राम का स्पर्श उसे बड़ा अद्भुत लगा | और उसके मुख से सहसा निकल पड़ा-‘’आप ठीक कहते हैं, मैं आपका घनिष्ट मित्र हूँ |” इस प्रकार उनकी वह स्टीमर यात्रा बड़े सुख चैन से बीती | उन्हें उस युवक ने मार्ग में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया | अपने गंतव्य पर पहुँचने पर भी वह उनको अपने साथ ले गया और स्वामी जी को जहाँ जाना था, बाद में उसकी सब प्रकार की व्यवस्था उस व्यक्ति ने कर दी |