शिक्षाप्रद कहानी :- परोपकार का फल
Date : 22-Feb-2025
महेश नाम का चांडाल जाति का एक व्यक्ति था | स्वभाव से वह विनम्र था , चांडाल नही | दिनभर परिश्रम करके कुछ पैसे लाता और उसी से अपना , अपनी कन्या , पुत्र तथा पत्नी का पेट भरता | किन्तु एक बार दो दिन तक उसे कही कोई मजदूरी नही मिली थी , आज किसी प्रकार की मजदूरी कर उसने बड़ी कठिनाई से छह आने कमाये थे | बाज़ार से उसने दो सेर चावल ख़रीदे और पार जाने के लिए नदी के किनारे जा पंहुचा |
नदी के घाट पर उसको खेपू महाराज दिखाई दिये | वे उदास मुख घाट पर खड़े थे | महेश ने ब्राह्मण का उतरा हुआ चेहरा देखकर पूछा –“ महाराज ! घर में सब प्रकार से कुशल तो है न?”
“क्या बताऊँ भगवान ने मेरे भाग्य में कुछ लिखा ही नही | कहीं भी भीख नहीं मिली | तीन दिन से घर में किसी ने कुछ नहीं खाया आज घर जाने पर सभी लोग मरणासन्न ही मिलेंगे | इसी चिंता में डूब रहा हूँ |”
महेश बोला –“ विपत्ति में भगवान के अतिरिक्त और कौन सहायता करने वाला है , वही खाने को देता है और वही नही देता हैं | हमारा तो काम हैं बस भगवान के आगे रोना | उसके आगे पुकार कर रोने से जरुर भीख मिलेगी |”
“भाई ! अब यह विश्वास नहीं हो रहा हैं | देखते हो दुःख के सागर में डूब उतर रहा हूँ , बस प्राण निकलना ही चाहते हैं | बताओ कैसे विश्वास करू ?”
भगवान के प्रति आत्म विश्वास की बात सुनकर महेश की आँखों में आँसू छलक आये | उसने कहा – “ लो न , भगवान ने तुम्हारी भीख मेरे हाथ भेजी है | तुम रोओं मत |” अपने घर के लिए लाये हुए चावल दाल आदि सब खेपू को देकर महेश प्रसन्नचित्त घर को चल दिया | वह अपने को कृतार्थ मान रहा था | उसने सोचा – “ आज एकादशी है | जीवन में कभी एकादशी का व्रत नही किया , कल दशमी थी कुछ खाया नही | आज उपवास हो गया ,इससे व्रत का नियम पूरा हो गया | अब भगवान देंगे तो कल द्वादशी को पारण हो ही जायेगा | एक दिन न खाने से मर थोड़े ही जाएंगे |”
इस प्रकार सोचता – विचारता महेश घर पहुँचा | उसको देखते ही उसकी पत्नी ने सामने आकर कहा – “ जल्दी चावल दो तो भात बना दूँ | बच्चा शायद आज नही बचेगा | बड़ी देर से भूख के मारे बेहोश पड़ा है | मुझे चावल दो मैं चूल्हे पर चढ़ाऊँ और तुम आकर बच्चे को संभालो |”
महेश बोला – “ माँ दुर्गा का नाम लेकर उसके मुख में जल डाल दो | माँ की दया से वह जल ही उसके लिए अमृत हो जायेगा | खेपू महाराज के बच्चे तीन दिन से भूखे है | आज खाने को न मिलता तो मर ही जाते | मैं दो सेर दाल चावल लाया था ,’ वह सब उनको दे आया हूँ |”
स्त्री बोली – “ आधा उनको देकर आधा ले आते , तो हमारे बच्चो को भी दो कौर चावल मिल जाते | तीन वर्ष का बच्चा दो दिन से बिना खाए बेहोश पड़ा है | अब क्या होगा ? माँ दुर्गा ही जाने |”
महेश बोला – “ यदि माँ काली बचायेगी तो कौन मारनेवाला हैं , अवश्य ही बच जायेगा और यदि समय पूरा हो गया हैं , तो प्राणों का वियोग होना ठीक ही है | खेपू का सारा परिवार तीन दिन से भूखा है पहले वह बचे | हमारे भाग्य में जो लिखा हैं , वह होगा ही , उसे कौन मिटा सकता हैं |”
माँ काली ने उसकी सुनी और पानी अमृत बन गया , बच्चे की जान उस रात बच गयी | अगले दिन महेश को मजदूरी भी मिल गयी , जिससे उसके बच्चे को रात को भात मिल गया | किसी ने ठीक ही कहा हैं जाको राखे साइयाँ , मार सके न कोय |