एक बार कुछ ऋषियों ने व्यासजी के शिष्य सूतजी से प्रश्न किया,”सूतजी! ब्रम्हा, विष्णु और शिव इन तीनों में अपने कर्म, योग्यता तथा प्रभाव से कौन श्रेष्ठ हैं एवं इनकी विशिष्टताएँ क्या हैं ?”
सूतजी ने उत्तर दिया, “सर्वव्यापक परमेश्वर के सृष्टि, पालन तथा संहार के कारण रूप, नाम और कर्म बदलते रहते हैं | परमेश्वर जब सृष्टि उत्पन्न करते हैं, तब ‘ब्रम्हा’ कहलाते हैं, जब सृष्टि का पालन करते हैं, तब विष्णु’ कहलाते हैं जब वे संहार करते हैं, तब ही ‘शिव’ कहलाते हैं | रज, सत्व, और तम इन गुणों के कारण वे ही परमेश्वर सृष्टि, पालन और संहार इन तीनों कार्यों के भेद से तीन विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं | वेद में इन तीनों को एक ही रूप मानकर ‘त्रिमूर्ति’ की संज्ञा दी गयी है | हमारे शास्त्र कहते हैं कि इन तीनों में से एक की भी जो निंदा करता है, उसे तीनों की निंदा का पातक लगता है | वास्तव में वह एक ही आत्मा है, जो अपनी ही माया से एक होते हुए भी मनुष्यों को तीन दिखाई देता है, अत: किसी एक की श्रेष्ठता का प्रश्न ही नहीं उठता |”