नेताजी की सोच भारत के बारे में बहुत ऊंची थी, विचारो मे दूरदर्शिता थी, नेताजी ने भारत के भविष्य के लिये, भारत के विषय मे बहुत दूर तक का विचार बना लिया था। और, आगे की भी योजनाए बना ली थी। इसी योजना के तहत नेताजी ने भारत मे ही नही, भारत से बाहर के देशो मे जाकर वहाँ रहने वाले भारतीयों को एकत्रित करके सैनिक शिक्षण दिया था। शिक्षा के लिये जिन-जिन साधनो की आवश्यकता थी, जैसे भोजन, पानी, सैनिको के कपडे, हथियार, आदि अनेक वस्तुओ का संगृह किया। महिला सेना भी बनाई यह सब सुविधा जुटानै और सेना का नेतृत्व करने के लिये, कार्य को सिद्ध करने के लिये लंबे समय तक प्रयत्न मे जुटे रहे।
स्वतंत्र भारत, सार्वभौम संप्रभुता युक्त शक्तिशाली और विश्ववंद्य होना चाहिये, सदियो तक पुनःपरतंत्रता न आये ऐसा नेताजी सोचते थे। इसके विपरीत भारत के तत्कालीन नेताओं का मानना था की पहले हमे स्वाधीनता का प्रयत्न करना चाहिये पुनर्गठन बाद मे होता रहेगा
नेताजी ने प्रारंभ से ही अपने चिंतन और अपनी कार्यशैली को भारत को स्वाधीन और सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा मे कदम बढाया था, भविष्यदृष्टा और राजनीतिज्ञ होने के नाते नेताजी का विश्वास था की राष्ट्रजागरण और राष्ट्रनिर्माण की प्रक्रियाओ को साथ-साथ लेकर चलना चाहिये यह नेताजी का विचार बिलकुल सही था।
यदि पुनःनिर्माण का प्रयत्न पहिले नही किया तो भारत स्वतंत्र होते ही अनेक नये नये कार्य करने होंगे अनेक जिम्मेदारियाॅ पूर्ण करनी होंगी जिनका अभ्यास अभी किसी को भी नही है.
उस समय भारत मे जगह-जगह पर अनेक रियासतें थी सभी राजे महाराजे अपनी राज्यसीमा के अंदर राज्य चलाना और कमजोर राज्यो पर आक्रमण करके अपने राज्य का विस्तार करना यही राजतंत्र शासन प्रणाली थी, पूरा भारत इसी प्रणाली का अभ्यस्त था, प्रजातंत्र की जानकारी भारतीयों को नही थी।
अंग्रेजो के माध्यम से प्रजातंत्र आया, सारा विषय नया था, ऊपर से अंग्रेज ठहरे कूटनीतिज्ञ और स्वार्थी. वे भारत को स्वतंत्र करना चाहते ही नही थे। इसीलिये भारत की स्वतंत्रता प्राप्ती पर ब्रिटिश, भारतीय प्रजातांत्रिक सत्ताधारियो को कूटनीती से कैसे राज्य करना, लोभ, छलावा और स्वार्थ का पाठ पढाकर, भारत का विभाजन करके प्रजातंत्र की राजनीती सिखाकर ही भारत से गये.
सन् 1938 मे भारत मे योजना समिती का गठन करके भारत के पुनर्निमाण की योजनाओं को क्रियान्वित करना प्रारंभ कर दिया था। केवल भारत मे ही नही तो भारत से बाहर जर्मनी मे भी योजना आयोग की स्थापना करके भारत के पुनर्निर्माण के लिये योग्य व्यक्तियोको प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया था प्रशिक्षण के लिये एक विद्यालय भी स्थापित किया था.
ब्रिटिश शासन काल मे भारत के पास अपनी कोई राजनीतिक योजना नही थी भारत देश का शासन तंत्र ब्रिटिशों के हातो मे था उन्ही के अनुसार शासन चलता था, इसलिये तत्कालीन ब्रिटिश शासको की राजनीती की पृष्ठभूमी का उद्देश्य एक ही था की भारत का अधिक से अधिक शोषण किया जाये भारत की जनता को गुलाम बनाकर अज्ञानता के अंधेरे मे रखकर अधिक से अधिक समय तक अपना अधिकार जमाकर रख सके सदासदा के लिये भारत गुलामी की जंजीरो मे जकडा रहे, स्वतंत्र होने का विचार भी न कर सके.
ऐसी मनोवृत्ती होने के उपरांत भी ब्रिटिशों को भारत से खदेड दिया गया, परिणाम स्वरुप भारत का विभाजन हुआ भारत दो हिस्सो मे बट गया हिंदुस्तान और पाकिस्तान। पं जवाहरलाल नेहरू और मो अली जिन्ना इन दोनो के हाथों मे राजनीती की डोर आ गई।
अंडमान एक स्वतंत्र द्वीप समूह था इसका इतिहास भी बहुत लंबा है अभी अभी मोदी सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलकर श्रीविजयपुरम रख दिया है। अंडमान द्वीप भारत के ही हिस्से मे आये और द्वीप पर भारत का अधिपत्य हो यह स्वीकार करने की नेहरू की बिलकुल इच्छा नही थी और जिन्ना भी नही चाहते थे। परन्तु सरदार वल्लभभाई पटेल ने जिद ठान ली थी कि अंदमान भारतीय शहीदों पर हुए जुल्मो का प्रतीक है इसलिये स्वाधीनता सेनानियों को, हिंदू राष्ट् को ही अंडमान मिलना चाहिये, पटेल की जिद के कारण ही अंडमान भारत के हिस्से मे आया भारत की स्वतंत्रता के लिये जितने भी स्वाधीनता सेनानी अंग्रेजों के हाथ लगते थे उन सबको भारत भूमी से कोसों दूर समुद्र के बीच टापू पर अंडमान मे अंग्रेजो ने सेल्यूलर जेल का निर्माण करके हजारो क्रांतीवीरो को कालकोठरी मे रखा था इस पुण्य भूमी को सर्वप्रथम नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने मुक्त कराया। 15अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली उसके चार वर्ष पहिले ही 29 दिसंबर सन् 1943 को अंडमान द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर मे नेताजी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहरा चुके थे भारतीय इतिहास मे भारत भूमी का यह प्रथम आजाद भू भाग है।
स्वतंत्र भारत के नागरिको के प्रशासन के संबंध मे नेताजी ने लिखा था,भारत ब्रिटिशो की गुलामी से मुक्त होने पर पहिला काम नई सरकार की स्थापना और शांती तथा जनसुरक्षा की व्यवस्था करना नवनिर्वाचित सरकार का काम होना चाहिये की वह नागरिक प्रशासन का पुनर्गठन करे और एक राष्टीय सेना का निर्माण करे क्योंकि अतीतकाल मे नागरिक प्रशासन का प्रबंध सदैव ही भारतीयो ने किया है और केवल सर्वोच्च पदो पर ही अंग्रेज पदाधिकारी रहे है.
नेताजी लिखते है पिछले 20 वर्षो मे उच्च पदो पर भी अंग्रेजो का स्थान धीरे-धीरे भारतीय लेते रहे है और अंग्रेज अधिकारियो की अपेक्षा अधिक योग्य सिद्ध हुए है। नेताजी के इस कथन से यह अर्थ निकाला जा सकता है की नागरीक प्रशासन की क्षमता भारतीयो मे अंग्रेजो से अधिक रही है और अंग्रेजो ने संसार को भ्रम मे रखने के लिये ही यह प्रचार कर रखा था की"भारतीय लोग प्रशासन पटु नही है और इसीलिये उन्हे स्वराज्य नही दिया जा सकता.
स्वाधीन भारत की सुरक्षा के लिये नेताजी सेना के तीनो अंगों, थलसेना,जलसेना, और वायुसेना का आधुनिक ढंग से निर्माण और विकास करना चाहते थे। जब वे दूसरी बार जर्मनी गये तो,वे द्वितीय विश्वयुद्ध के दिन थे नेताजी ने यूरोप के कई देशों का दौरा करके आधुनिक युद्ध प्रणाली का गहराई के साथ अध्ययन किया, इतना ही नही उन्होने जर्मनी मे युद्ध बंदियों और स्वतंत्र नागरिको की जो आजाद हिंद फौज बनाई,उसे पूर्णरूप से आधुनिक अस्त्र-शस्त्रो से सुसज्जित किया और उसे इस प्रकार का प्रशिक्षण दिलाया की वह संसार की स्वशक्तिमान सेनाओं के समकक्ष मानी जाने लगी, आजाद हिंद फौज दुनिया के फौजी इतिहास का एक अध्याय बन गया।
नेताजी ने परिश्रमी, कर्मठ, ईमानदार तथा अनुभवी व्यक्तियों का एक अच्छा खासा दल तैयार कर लिया था,लेकिन स्वाधीन भारत मे प्रशासन के लिये प्रशिक्षित व्यक्तियों का कोई उपयोग नही किया गया.
भारत के नागरिक प्रशासन की जो तस्वीर नेताजी ने बनाई थी,यदि उसमे रंग भरे जाते तो भारत का नक्षा ही बदल जाता.
लेखक - डॉ श्रीमती संगीता गोखले