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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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प्रेरक प्रसंग:- निज बल का परिणाम

Date : 06-Aug-2024

 एक बार श्रमण महावीर वन में ध्यानस्थ खड़े थे | एक ग्वाला आकर उनसे बोला, “जरा देखते रहना, मेरे बैल चर रहे हैं | मैं अभी आया |”

 

तपस्वी महावीर अपनी  समाधि में लीन  रहे | ग्वाला लौटकर आया, तो उसने  देखा कि बैल वहाँ नहीं थे | वे चरते- चरते कहीं दूर निकल गए थे | उसने महावीर से प्रश्न किया, “मेरे बैल कहाँ है ?” किन्तु महावीर पूर्ववत ध्यानावस्थित  ही रहे | इस पर  वह ग्वाला क्रोधित हो उन्हें मारने के लिए उद्यत हो गया | यह देख इन्द्रदेव घबरा गये कि कहीं वह अज्ञानी ग्वाला श्रमण  महावीर को सताने न लगे | अत: वे ब्राम्हण-वेश धारण कर वहाँ आये और उन्होंने उस  ग्वाले को डाटा- फटकारा | इस पर वह ग्वाला वहाँ से भाग गया | फिर इन्द्रदेव महावीर से बोले, “भन्ते ! आपके साधना- काल में ऐसे संकटों से आपकी रक्षा करने के लिए आपकी पवित्र सेवा में आपके समीप रहना चाहता हूँ |“

इस पर महावीर बोले, “देवेन्द्र! कोई तीर्थकर किसी इंद्र की सहायता से मोक्ष पाने नहीं निकलता | यह असंभव है कि मुक्ति किसी दूसरे की सहायता से प्राप्त की जा सके |  कैवल्य तो केवल निज बल या पुरुषार्थ से ही मिलता है

 
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