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गौ रक्षा के प्रबल समर्थक स्वामी करपात्री जी

Date : 06-Aug-2024

सत्य के शोध के लिए स्वयं कृति कर समाज को दिशा देनेवाले करपात्री स्वामीजी हम सभी के लिए अत्यंत पूजनीय है । उनके नेतृत्व में वर्ष 1966 में हुआ गौरक्षा  आंदोलन भारतीय इतिहास का सबसे बडा आंदोलन कहा जा सकता है । ‘धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो ।’ यह उनका घोष आज भी हिन्दूओं को प्रेरणा देता है ।

व्याकरण, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत के विद्वान करपात्री जी का जन्म प्रतापगढ़ के लालगंज के भटनी गांव में 1907 को हुआ I पिता श्री रामनिधि ओझा परम धार्मिक और वैदिक विद्वान् थे I उनकी शिक्षा काशी में हुई थी I और माता शिवरानी देवी भी धार्मिक एवं संस्कारो के प्रति समर्पित गृहणी थी I जन्म के समय उनका नाम हरी नारायण ओझा रखा गया I  स्वामी श्री 8-9 वर्ष की आयु से ही सत्य की खोज हेतु घर से पलायन करते रहे। वस्तुतः 9 वर्ष की आयु में सौभाग्यवती कुमारी महादेवी जी के साथ विवाह संपन्न होने के पशचात 16 वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया। उसी वर्ष स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से नैष्ठिक ब्रह्मचारी की दीक्षा ली। हरि नारायण से ' हरिहर चैतन्य ' बने। चौबीस वर्ष की आयु में दंड धारणकर स्वयं अपना आश्रम स्थापित कर 'परमहंस परिब्राजकाचार्य 1008 श्री स्वामी हरिहरानंद सरस्वती श्री करपात्री जी महाराज कहलाये I

दिन में केवल एक बार ही हाथ की अंजुली में जितना समाये, उतना ही भोजन लेकर वह ग्रहण करते थे । ‘कर’ अर्थात हाथ में भोजन करने के कारण ही इनका नाम ‘स्वामी करपात्री जी महाराज’ पडा था ।

राजनीति में

उन्होने वाराणसी में 'धर्मसंघ' की स्थापना की। उनका अधिकांश जीवन वाराणसी में ही बीता। वे अद्वैत दर्शन के अनुयायी एवं शिक्षक थे। सन् 1948 में उन्होने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद की स्थापना की जो परम्परावादी हिन्दू विचारों का राजनैतिक दल है। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी। सन् 1952, 1957 एवम् 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यतः राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थी।

गौ रक्षा के प्रबल समर्थक : स्वामी जी ने देश भर में पदयात्रा की। वे जहाँ कहीं जाते, गोरक्षा, गोपालन व गोसेवा पर जोर देते थे और चाहते थे कि भारत में गोहत्या प्रतिबंधित हो। उन्हें तत्कालीन सरकारों से आश्वासन तो मिले पर निर्णय न हो सका। यह भी कहा जाता है कि इंदिरा जी जब सूचना प्रसारण मंत्री थीं, तब स्वामी जी से मिलने आईं थीं। उन्होंने स्वामी जी को गौहत्य रोकने का आश्वासन भी दे दिया था। पर जब इंदिराजी प्रधानमंत्री बनीं तब यह निर्णय न हो सका। अंत में स्वामी जी ने आँदोलन की घोषणा कर दी। स्वामी जी संतों के प्रतिनिधि मंडल के साथ इंदिराजी से मिलने भी गये। स्वामी जी चाहते थे कि संविधान में संशोधन करके गोवंश की हत्या पर पूर्ण पाबन्दी लगे। जब बात न बनी तब स्वामी करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में संतों ने 7 नवम्बर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। पंचांग के अनुसार वह दिन विक्रमी संवत 2012 कार्तिक शुक्लपक्ष की अष्टमी थी। जिसे “गोपाष्टमी” भी कहा जाता है। इस धरने में चारों पीठाधीश्वर शंकराचार्य एवं भारत की समस्त संत परंपरा के संत सम्मलित हुए। इनमें जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सभी थे। इस आन्दोलन में आर्यसमाज के लाला रामगोपाल शालवाले और हिन्दू महासभा के प्रधान प्रो॰ रामसिंह जी भी बहुत सक्रिय थे। श्री संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी तथा पुरी के जगद्‍गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी निरंजनदेव तीर्थ तथा महात्मा रामचन्द्र वीर के आमरण अनशन ने आन्दोलन में प्राण फूंक दिये थे। उन दिनों इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। स्वामी करपात्री जी को आशा थी कि गोहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लग जायेगा। पर उनकी आशा के विपरीत निहत्थे संतों पर पुलिस का गोली चालन हो गया। जिसमें अनेक संतों का बलिदान हुआ। पुलिस ने पूज्य शंकराचार्य तक पर लाठियाँ चलाईंथी।

गुलजारी लाल नंदा का इस्तीफा : इस हत्याकाण्ड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नन्दा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। इधर, संत रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, जो 166 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। देश के इतने बड़े घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका 'आर्यावर्त' और 'केसरी' में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' ने अपने गौ विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

स्वामी करपात्री महाराज की रचनाये एवं ग्रंथ : 

स्वामी करपात्री महाराज जी ने 2400 हजार श्लोको वाली रामायण मीमांसा नामक पुस्तक कि रचना I जिसमे 1100 पृष्ठ है I इसके अतिरिक्त भागवत सुधा, रस मीमांसा, गोपीगीत भक्ति सुधा आदि पुस्तकों की  रचना की I स्वामी जी के ग्रन्थ – वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पियूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि है I  

करपात्री जी का निधन :

स्वामी करपात्री महाराज का निधन 7 फरवरी 1982 को काशी केदार घाट पर हुआ। उनके निधन से उनके शिष्यों और अनुयायियों को गहरा दुख हुआ, लेकिन धर्म और समाज के विकास में उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।

 
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