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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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प्रेरक प्रसंग:- निर्लोभिता

Date : 13-Aug-2024

रामकृष्ण परमहंस के पास एक भक्त आकर बोला, “भगवान्! आपकी चादर फटी हुई है, आज्ञा हो तो नयी ला दूँ |

“नहीं ! अभी वह कुछ दिन और काम दे सकती है”, परमहंस देव बोले |

“इस मंदिर के प्रबंधक कैसे हैं, जो आपकी आवश्यकताओं की ओर ध्यान ही नहीं देते!” – भक्त पुन: बोला |

“भाई ! तुम मेरी चिंता मत करो | वे मेरी पूरी – पूरी देखभाल करते हैं |

“अच्छा महात्मन !  यदि आज्ञा हो तो दस सहस्त्र  रुपया आपके नाम जमा करा दूँ | 

इसका सूद चालीस रूपये मासिक होगा | इस धन से आपका भोजन- कपड़ा आदि चल जायेगा |”

 “नहीं भाई ! धन प्रभु- प्राप्ति में मार्ग में कांटा है | मुझे इस लोभ में मत फसाओं |”

“अच्छा भगवन ! यह धन मैं आपके किसी संबंधी के नाम जमा कर देता हूँ | अब तो आपके कोई आपत्ति न होगी ?

“भाई इस चक्कर में मुझे मत डालो | ‘यह धन मेरा है’- ऐसा अहंकार मुझे माँ से दूर कर देगा |

श्री रामकृष्णदेव एक सच्चे त्यागी महात्मा थे | भला उन्हें धन का मोह कैसे होता ! भक्त उनके स्वभाव को जानता था | वह चुपचाप वापस चला गया | 

 
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