माघी पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ के महानदी में श्रद्धालुओं ने पुण्य स्नान किया | The Voice TV

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माघी पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ के महानदी में श्रद्धालुओं ने पुण्य स्नान किया

Date : 12-Feb-2025

माघी पूर्णिमा के पूण्य अवसर पर छत्तीसगढ़ के धमतरी जिला के ग्राम रूद्री किनारे महानदी में डुबकी लगाने आज बुधवार की सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। इस खास अवसर पर श्रद्धालुओं ने महानदी में अलसुबह स्नान कर सुख-समृध्दि की कामना की। धमतरी जिले के नगरी, डाेंगापथरा सहित अन्य स्थानों में मेला भरा। इस अवसर पर रुद्री में आयोजित मड़ई में शहर के अलावा आसपास के गांव से काफी संख्या में लोग भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहुंचे। दूर-दूर से श्रध्दालु यहां भोलेनाथ का दर्शन करने पहुंचे।

धमतरी जिला मुख्यालय से नौ किमी व रायपुर से 87 किमी दूर रुद्री में स्थित रुद्रेश्वर महादेव का मंदिर छत्तीसगढ़ के प्रमुख शिवालयों में शामिल है। महानदी के तट पर स्थित इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। माघी पूर्णिमा आज 12 फरवरी को यहां सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। पूजा-अर्चना कर सुख- सुख-समृध्दि की कामना की गई। माघी पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित मेला-मड़ई में रुद्री के अलावा आसपास के गांव सोरम, भटगांव, कोलियारी, करेठा, खरेंगा, नवागांव, कंडेल, दर्री, कसावाही, गंगरेल अर्जुनी, शंकरदाह, रत्नाबांधा, मुजगहन, लोहरसी, पोटियाडीह, श्यामतराई सहित विभिन्न गांव से लोग मेला का लुत्फ उठाने पहुंचे। उल्लेखनीय है कि महानदी के तट पर स्थित इस मंदिर की कीर्ति धमतरी जिले के अलावा अन्य प्रदेशों तक है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने वन गमन के दौरान यहां स्थित भगवान रुद्रेश्वर की पूजा-अर्चना कर अपना आगे का मार्ग तय किया था। राम वन गमन क्षेत्र होने की वजह यहां की महत्ता बढ़ गई है। सावन मास, माघी पूर्णिमा सहित अन्य खास अवसर पर यहां विविध आयोजन होते हैं। सावन मास में हर साल रुद्रेश्वर महादेव मंदिर में महीने भर तक रामायण पाठ होता है। कांवरिए सर्वप्रथम भगवान रुद्रेश्वर को जल चढ़ाने के बाद ही अन्य शिवालयों में जल अर्पित करने जाते हैं। मंदिर के पुजारी गोकुल यादव का कहना है कि यहां का शिवलिंग स्वयंभू है। पूर्व में यहां का मंदिर खंडित स्वरूप में था। वर्तमान में मंदिर का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है, वह 16 सालों के भीतर बना है। यहां मेला भरने का इतिहास सालों पुराना है। सुबह से यहां डांग लेकर बैगा पहुंचे। पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ देवी-देवताओं की पूरी श्रृध्दा से पूजा-अर्चना की गई।

 
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