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रेखा 'राज' के समक्ष चुनौतियां

Date : 21-Feb-2025


भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में भारी मंथन के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे के 12वें दिन रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा हुई। मुख्यमंत्री के नाम पर चौंकाने वाली भाजपा की शैली विभिन्न राज्यों की तरह दिल्ली में भी जारी रही। भाजपा के जीते 48 विधायकों में शायद कोई एकाध नाम छूटा हो, जिसका नाम सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर न आया हो। कयास तो प्रवेश वर्मा को लेकर लगाए जा रहे थे लेकिन अंत में वे पिछड़ गए। क्यों पिछड़े, इसका जवाब किसी के पास नहीं। 08 फरवरी के चुनाव परिणाम के दिन से लेकर 19 तारीख की देर शाम तक मुख्यमंत्री के नाम को लेकर भाजपा ने सस्पेंस बरकरार रखा। जैसे पिटारे से नाम निकला, सभी एकबार फिर चकित रह गए। ऐसा नाम जिसकी कल्पना तक किसी नहीं की थी।

मुख्यमंत्री के नाम का सस्पेंस 12वें दिन खत्म किया गया। सप्ताह भर तक नाम को गुप्त रखा गया। पार्टी ने विचार करके और आरएसएस की सिफारिश पर ही दिल्ली के शालीमार बाग विधानसभा क्षेत्र से चुनी गईं रेखा गुप्ता के नाम की घोषणा की। हालांकि, वरिष्ठता के लिहाज से रेखा गुप्ता अन्य विधायकों के मुकाबले बहुत जूनियर हैं। रेखा के नाम की जब घोषणा हुई, कई के चेहरे की रंगत बदल गई।



भाजपा ने एक और नई परंपरा शुरू की है। चुनाव जीतने के बाद राज्यों में किसी बड़े चेहरे को मुख्यमंत्री के पद पर न बिठाने की। दिल्ली में भी कई प्रचलित व दिग्गज नेता मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे लेकिन उनके दावे धरे रह गए। अब मुख्यमंत्री बनने के बाद रेखा गुप्ता के समक्ष सियासी कौशल साबित करने की चुनौती है। चुनाव अभियान के दौरान दिल्ली के मतदाताओं से किए गए पार्टी के वायदों को जमीन पर उतारना सबसे बड़ी चुनौती है जिनमें फ्री की योजनाएं, बिजली-पेयजल की समस्या से निबटना, यमुना की सफाई, बेरोजगारी जैसे बड़े मसले शामिल हैं। इसके साथ परीक्षा आम आदमी पार्टी की भी है। पार्टी का गठन होते ही सत्ता में पहुंच जाने वाली पार्टी को अबतक विपक्ष का कोई अनुभव नहीं है और अब उसे यह साबित करना होगा कि विपक्ष की भूमिका में वे कितने सक्षम हैं।

भाजपा का चुनाव जीतने के बाद अंत तक मुख्यमंत्री के नाम को सार्वजनिक नहीं करने की चौंकाने वाली शैली इस समय चर्चाओं में है। ये सिलसिला बीते कुछ वर्षों से लगातार जारी है। पिछले ही साल मध्य प्रदेश और राजस्थान में इसी शैली ने सबको चौकाया था। मप्र में डॉ. मोहन यादव, राजस्थान में भजनलाल शर्मा को सामने लाकर पार्टी ने प्रदेशों में खलबली मचा दी थी। उन तीनों राज्यों के निर्णयों में एक बात जो कॉमन थी वह यह कि तीनों ही मुख्यमंत्री आरएसएस और भाजपा की राजनीतिक-संस्कृति में पले-बढ़े हैं। तीनों नाम संघ-भाजपा की आपसी सहमति से तय हुए। पेशे से वकील रेखा गुप्ता सालों से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़ी रही हैं।

हरियाणा के जींद जिला स्थित नंदगढ़ में जन्मी रेखा गुप्ता को लेकर भाजपा ने मास्टर स्ट्रोक खेला। इस समय देश की ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं लेकिन इनमें किसी में महिला मुख्यमंत्री नहीं है। इसलिए राजधानी में महिला को मुख्यमंत्री बनाकर उस कमी को भाजपा ने दूर किया है। विपक्षी दल ये आरोप लगाते आए थे कि भाजपा महिला सशक्तिकरण की बात तो करती है, पर निभाती नहीं। पार्टी ने जातीय समीकरण को देखकर ही रेखा गुप्ता का चयन किया है। वह वैश्य समाज से संबंधित हैं और दिल्ली में वैश्य बहुतायत संख्या में है। पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी वैश्य थे, उनकी काट पार्टी ने रेखा के जरिए की है। वैश्य समुदाय से जुड़े पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता विजेंद्र गुप्ता के नाम पर भी विचार हुआ, तब भी इस समीकरण को साध सकते थे लेकिन महिला होने के नाते रेखा गुप्ता का पलड़ा भारी पड़ा।


भविष्य की चुनौतियों की जहां तक बात है तो उसका मुकाबला करने के लिए न सिर्फ मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को जमीन पर उतरना पड़ेगा बल्कि भाजपा की पूरी मशीनरी को सामूहिक रूप से दिल्ली में मोर्चा संभालना होगा। पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान वायदों की बौछार कर दी थी जिन्हें पूरा करना होगा। वादे पूरे इसलिए करने होंगे, क्योंकि भाजपा को इसके जरिये देश के अन्य राज्यों को भी संदेश देना है। इसके बाद भाजपा को बिहार कूच करना है। दिल्ली का मौजूदा बजट 76 हजार करोड़ के आसपास है जिसमें नई सरकार को बेतहाशा वृद्धि करनी पड़ेगी, तभी सरकार सभी वायदों का खर्च उठा पाएगी। महिलाओं को नगद पैसे देना, पेंशन में बढ़ोतरी, बिजली-पानी फ्री, बस फ्री, प्रेग्नेंट महिलाओं की आर्थिक मदद इत्यादि।


रेखा गुप्ता की राजनीति अभी तक नगर निगम तक सीमित रही है। बड़े ओहदे का उन्हें अनुभव नहीं है। निगम में उनके द्वारा माइक तोड़ने की घटना, केजरीवाल को अनाप-शनाप कहने वाले बयान सोशल मीडिया पर तैर रहे हैं। बहरहाल, दिल्ली की राजनीति में चुनौतियों का दौर सत्ता पक्ष और विपक्षी दोनों के लिए शुरू होगा। हारने के बाद आम आदमी पार्टी और विजय प्राप्ति के बाद भाजपा, दोनों दिल्ली में अपने-अपने राजनीतिक वजूद बचाने और बढ़ाने में जुटेंगी। कांग्रेस के समक्ष भी चुनौतियां हैं, वह भी इससे उबरने की कोशिश करेगी। देखते हैं कि कौन-कौन परीक्षा में सफल होगा या विफल।

लेखक-  डॉ. रमेश ठाकुर 

(स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 
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