"विवाह और ब्रम्हांड के आरंभ की दिव्य रात्रि : महाशिवरात्रि"
Date : 25-Feb-2025
२६ फरवरी महाशिवरात्रि के पावन और पुनीत पर्व पर आध्यात्मिक वैज्ञानिक और जनजातीय संदर्भों के आलोक में सादर समर्पित
शिव ही सृष्टि है,शिव में ही सृष्टि है! ऋग्वेद की सृष्टि के सृजन के रहस्य का विकास शिव में ही निहित हो जाता है।"सृष्टि से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं,अंतरिक्ष भी नहीं था, आकाश भी नहीं,छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था,उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था "...सृष्टि का कौन है कर्ता, कर्ता है व अकर्ता, ऊँचे आकाश में रहता, सदा अध्यक्ष बना रहता, वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता, है किसी को नहीं पता, नहीं है पता,... वो था हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जगत का स्वामी महान्, जो है अस्तित्व में धरती आसमान धारण कर, ऐंसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर... जिस के बल पर तेजोमय है अम्बर, पृथ्वी हरी भरी स्थापित स्थिर, स्वर्ग और सूरज भी स्थिर, गर्भ में अपने अग्नि धारण कर पैदा कर, व्यापा था जल इधर-उधर नीचे ऊपर, जगा चुके वो एकमेव प्राण बनकर किस देवता की उपासना करें हवि देकर,ओऽम! सृष्टि निर्माता स्वर्ग रचियता पूर्वज रक्षा कर, सत्य धर्म पालक अतुल जल नियामक रक्षा कर, फैली हैं दिशायें बाहू जैंसी उसकी सब में सब पर, ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर... ऐंसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर "ऐंसे ही देवता की उपासना करें हवि देकर" का तात्पर्य वस्तुतः शिव से ही है तब यही था शिवलिंग, यही पिंडी पूजन का निहितार्थ है। यहीं हिरण्यगर्भ से सृष्टि का निर्माण हुआ।