मध्यप्रदेश का आर्थिक उत्कर्ष: निवेश, समृद्धि और वैश्विक पहचान | The Voice TV

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मध्यप्रदेश का आर्थिक उत्कर्ष: निवेश, समृद्धि और वैश्विक पहचान

Date : 03-Mar-2025

 

यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट केवल औद्योगिक विकास तक सीमित नहीं है। इसके बहुआयामी लाभ होंगे। जिस प्रकार यह संसार दो प्रकार का है । एक दृश्यमान और दूसरा अदृश्यमान । सृष्टि की कुछ ऊर्जाएँ ऐसी हैं जो दिखाई नहीं देतीं फिर भी जीवन संचालन में सहयोगी होतीं हैं। उसी प्रकार निवेश इस इन्वेस्टर्स समिट के निवेश प्रस्तावों के आकार लेने के बाद इसका परोक्ष प्रभाव भी मध्यप्रदेश के समाज जीवन पर होगा। इसके लिये मध्यप्रदेश सरकार ने समिट आयोजन से पहले कुछ अतिरिक्त तैयारी की है और औद्योगिक विकास को विरासत से भी जोड़ा है। यह प्रदेश आध्यात्मिक, साँस्कृतिक, प्राकृतिक और धार्मिक स्थलों का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। मध्यप्रदेश सरकार ने इन सबको जोड़कर धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन की विधाएँ जोड़कर इन क्षेत्रों में निवेशकों को आमंत्रित किया था। इन चारों  विधाओं में मध्यप्रदेश का स्थान सबसे अलग है। इतिहास में जहाँ तक दृष्टि जाती है, वहाँ मध्यप्रदेश की छवि एक समृद्ध और प्रतिष्ठित भूक्षेत्र के रूप में उभरती है। लाखों वर्ष पुरानी मानव सभ्यता के चिन्ह हैं। समय के साथ भले स्वरूप बदला हो, राजनैतिक सीमाएँ बदलीं, नाम बदले लेकिन मध्यप्रदेश की प्रसिद्धि बनी रही। वैदिक काल से लेकर मध्यकाल तक पूरे विश्व में मध्यप्रदेश आकर्षण का केन्द्र रहा है।
 
यही कारण था कि हर काल-खंड विदेशी पर्यटक भारत आते रहे है। ह्येनसाँग और फाह्यान से लेकर अल्बरूनी तक और कनिघंम से लेकर स्मिथ तक भारत आने वाला कोई शोधकर्ता ऐसा नहीं जो मध्यप्रदेश न आया हो। इन सबके लेखन में मध्यप्रदेश को समृद्धियों का उल्लेख है। मध्यप्रदेश के वैभव और समृद्धि की झलक कण कण में बिखरी है। इसे संजोने में वाकणकर जी ने अपना जिवन समर्पित कर दिया था। इन सभी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक स्थलों की कहानियाँ, अनूठे चिन्ह, खनिज एवं वन्य संपदा की विविधता भी पर्यटकों को आकर्षित करती रही है। यही प्रसिद्धि मध्यकाल मध्यप्रदेश के विनाश का कारण बनी थी। लगातार आक्रमणों से यह प्रदेश विपन्नता के अंधकार में डूब गया । ऐसा अंधकार कि इसकी छवि एक बीमारू राज्य की बन गई। स्वतंत्रता के बाद भी राजनैतिक कारणों से अनेक स्वरूप बदले गये। मध्यप्रदेश के वर्तमान स्वरूप की सीमाएँ नवम्बर 2000 में बनीं। और विकास की नई यात्रा आरंभ हुई। इसके साथ प्रदेश के औद्योगिक विकास पर जोर दिया गया। डाॅ मोहन यादव के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने विकास यात्रा को नये आयाम दिये। डाॅ मोहन यादव ने मोदी मंत्र "विकास के साथ विरासत" का अमल करते हुये अपने कदम आगे बढ़ाये। कार्यभार संभालने के पहले दिन से डाॅ मोहन यादव ने प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के इसमंत्र पर काम करना आरंभ किया और भारत को विश्व का सबसे समृद्ध राष्ट्र बनाने के उनके संकल्प को पूरा करने केलिये मध्यप्रदेश की सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में भी कदम बढ़ाये। यह तभी संभव है जब भारत का प्रत्येक प्रदेश विकसित और उन्नत हो। 24-25 फरवरी को भोपाल में सम्पन्न ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट इसी दिशा में एक क्राँतिकारी कदम है।
मध्यप्रदेश की यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट अचानक आयोजित नहीं हुई। इससे पहले राज्य सरकार ने पर्याप्त होम वर्क किया था। यह होमवर्क तीनों प्रकार से हुआ । एक ओर मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले में पानी, बिजली, परिवहन और भूमि की उपलब्धता का विवरण तैयार किया गया, दूसरी ओर भारत ही नहीं पूरे संसार के प्रतिष्ठित उद्योग समूहों से उनकी रुचि के उद्योगों को प्राथमिकता में रखकर चर्चा की गई और तीसरा मध्यप्रदेश में रीजनल इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन हुये । सरकार के केवल चौदह महीने के कार्यकाल में सात रीजनल इन्वेस्टर्स समिट संपन्न हुईं। इन तीनों प्रकार की तैयारी के बाद यह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन हुआ। इन चौदह महीनों में मध्यप्रदेश में निवेश प्रस्तावों का मानों एक नया कीर्तिमान बनाया है। कुल 30.77 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए, जिससे 21.40 लाख नए रोजगार के अवसर सृजित होने की संभावना है। इस ग्लोबल समिट में 300 से अधिक प्रमुख उद्योगों के चेयरमैन, सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर्स ने समिट में हिस्सा लिया। भारत का ऐसा कोई उद्योग समूह नहीं जिसके प्रतिनिधि इस समिट में सहभागी न बने हों। उनके साथ 600 से अधिक "बिजनेस टू गवर्नमेंट" और 5,000 से अधिक "बिजनेस टू बिजनेस" बैठकें हुईं। निवेशकों और सरकार के बीच इस संवाद से औद्योगिक विकास की दिशा में एक मजबूत विश्वास बढ़ा है।
इस ग्लोबल समिट में विभिन्न सेक्टर्स के पच्चीस हजार से  अधिक पंजीयन हुये और विभिन्न सेक्टर्स के 85 एम ओ यू पर हस्ताक्षर हुये। इस ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के साथ मध्यप्रदेश का नाम निवेश की दुनियाँ में चर्चित हुआ और देश में तीसरे स्थान पर आ गया। इस समिट से औद्योगिक विकास और  युवाओ को रोजगार के अवसर के साथ समृद्धि के नये द्वार खुले हैं । मध्यप्रदेश की गणना अब वैश्विक स्तर पर भी होने लगी । इस समिट की तैयारी में प्रदेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के विकास एवं उनको वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने की दिशा में भी काम हुआ। 
प्रदेश की साँस्कृतिक, ऐतिहासिक और विविध प्राकृतिक स्थलों को पर्यटन से जोड़कर निवेश आमंत्रित किये गये । निवेशकों ने इस दिशा में भी अपनी रूचि दिखाई। विंध्य, सतपुड़ा और अरावली पर्वतमाला से घिरी मध्यप्रदेश की यह धरती अपनी प्राकृतिक, साँस्कृतिक, ऐतिहासिक और लोक संस्कृति की विविधताओं के लिये संसार भर में प्रसिद्ध हैं। रॉक शेल्टर, गर्म पानी के झरने, हरे-भरे हिल स्टेशन, घाटियाँ, गुफाएँ वन्य जीवों और वनस्पति से भरे वन, उनका अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों केलिये सहज आकर्षण का केन्द्र हैं। रोचक लोक संस्कृतियाँ, उनके नृत्य कौशल, चित्रकारी, नृत्यगीत और उनसे जुड़े लोक जीवन की रोचक कहानियाँ भी शोध कर्ताओं और प्रकृति प्रेमियों को आकृषित करते हैं। इन सब स्थलों को पर्यटन से जोड़ा गया है। और निवेशकों के प्रस्ताव आये। प्रदेश में ऐसे अनेक मन्दिर, किले और विश्व प्रसिद्ध  गुफ़ाएँ हैं जिनमें मानव सभ्यता के विकास का क्रम, गौरवशाली इतिहास छिपा है। वे सदैव आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। इनमें कुछ तो ऐसे हैं जिनके प्रतीक चिन्ह कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय से लेकर लंदन के म्युजियम में प्रदर्शित हैं। जैसै सतना के पास भरहुत का स्तूप के अवशेष कोलकाता के राष्ट्रीय संग्रहालय में और भोजशाला धार की माता सरस्वती की प्रतिमा लंदन के संग्रहालय में है। उज्जैन की वेधशाला, साँची के स्तूप, विदिशा का भग्न सूर्य मंदिर  उदयगिरी की गुफाएँ, महू की बाघ गुफ़ाएँ, खजुराहों के मंदिर, जानापाव, सतधारा, चंबल, नर्मदा, ताप्ती, बेतवा और शिप्रा के उद्गम स्थल भेड़ाघाट आदि उल्लेखनीय हैं। ओंकारेश्वर, महाकाल, मैहर, सलकनपुर, ओरछा, तरावली, पीताम्बरा पीठ, पशुपतिनाथ मंदसौर, बाघ अभ्यारण्य, प्रमुख बाँध, पचमढ़ी आदि लगभग सौ विविध स्थानों को पर्यटन से जोड़कर निवेश आमंत्रित किये गये हैं। इनमें अधिकांश वे स्थल हैं इनका उल्लेख विदेशी पर्यटकों ने भी किया है। ये सभी स्थल न केवल प्रदेश अपितु विदेशी पर्यटकों केलिये भी आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। ग्लोबल समिट में निवेशकों ने इन सभी क्षेत्रों को एक पर्यटन कॉरीडोर बनाकर निवेश में रुचि दिखाई और निवेश करार भी हुये। इससे तीन लाभ होगे। एक तो इन क्षेत्रों में पर्यटन बढ़ने से आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी, परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर बढ़ेगे दूसरा पूरे विश्व से आने वाले पर्यटक मध्यप्रदेश के साँस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक गौरव से परिचित हो सकेंगे। और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण है इन स्थलों का रखरखाव बढ़ेगा अर्थात विकास के साथ विरासत का भी संरक्षण होगा।
एक समृद्ध विरासत के साथ मध्यप्रदेश में प्राकृतिक उत्पाद की अपनी कुछ विशेषताएँ भी हैं। कपास, खनिजों और कृषि उत्पाद की विविधता। कृषि उत्पाद में कपास उत्पाद, शरवती गेहूँ, नर्मदा पट्टी की तुअर दाल, खनिजों यदि हीरे और चूने को अलग कर दें तो भी केवल पत्थर के सत्तर से अधिक प्रकार उत्खनित होते हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने इन विधाओं की ओर भी निवेशकों को आकर्षित किया है। इस समिट में मिलेट्स और जैविक कृषि के क्षेत्र एवं इससे आधारित टेक्सटाइल और फार्मा सेक्टर में रिकॉर्ड निवेश आया है। पीथमपुर को भारत का "डिफेंस और ऑटोमोबाइल हब" बनाने की योजना है। मध्यप्रदेश को "कॉटन कैपिटल ऑफ इंडिया" का दर्जा मिला है । चंदेरी और माहेश्वरी साड़ियों" को जीआई टैग मिला है, इससे इनके निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
मध्यप्रदेश के औद्योगीकरण केलिये सरकार ने "मेट्रोपॉलिटन कॉन्सेप्ट" के अंतर्गत प्रदेश के विभिन्न अंचलों में आसपास के जिलों को जोड़कर एक औद्योगिक कॉरीडोर बनाने का भी निर्णय लिया है। इसमें मालवा अंचल में इंदौर, उज्जै, देवास, शाजापुर और पीथमपुर (धार) को जोड़कर एक इंडस्ट्रियल सेंटर बनाने की दिशा में काम करना आरंभ कर दिया है। राजधानी भोपाल से विदिशा, रायसेन, सीहोर और नर्मदापुरम को जोड़कर एक कॉरीडोर बनाने की योजना पर काम आरंभ हो गया है। इसी प्रकार मध्यभारत, बुन्देलखण्ड, महाकौशल और विन्ध्य क्षेत्र में भी ऐसे इंडस्ट्रियल कॉरीडोर विकसित किये जायेगें। इनमें सड़क और रेल परिवहन, बिजली, पानी, सीवर लाइन और औद्योगिक क्षेत्र में कॉलोनी जैसी सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। ऐसे क्षेत्रों को मेट्रोपॉलिटन के रूप में विकसित करने केलिये आगामी 25 वर्षों की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर योजना बनाई जा रही है।
 
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