मंदिर श्रृंखला : ताड़केश्वर महादेव मंदिर: उत्तराखंड की पावन तपस्थली | The Voice TV

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मंदिर श्रृंखला : ताड़केश्वर महादेव मंदिर: उत्तराखंड की पावन तपस्थली

Date : 03-Mar-2025

देवभूमि उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के लैंसडाउन (गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय) से लगभग 34 किलोमीटर दूर और समुद्र तल से 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ताड़केश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक अत्यंत पवित्र स्थल है। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में किया गया है, जहां विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी माना जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और उत्तराखंड के प्रमुख प्राचीन मंदिरों में इसकी गिनती होती है। इसे महादेव के सिद्ध पीठों में से एक के रूप में भी जाना जाता है।

प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का संगम यह मंदिर देवदार, बुरांश और चीड़ के घने जंगलों से घिरा हुआ है, जिससे यहां का वातावरण अत्यंत शांत और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। मान्यता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। भक्तों का मानना है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर गहरी साधना में लीन हैं। पहले यहां ताड़ के पेड़ों की छोटी टहनियों और पत्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता था।

माता लक्ष्मी द्वारा खोदा गया पवित्र कुंड मंदिर परिसर में स्थित एक कुंड को माता लक्ष्मी द्वारा खोदा गया माना जाता है। इस कुंड के पवित्र जल से शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है। यहां सरसों का तेल और शाल के पत्तों को लाना वर्जित है, हालांकि इसकी सटीक वजह अज्ञात है।

पौराणिक कथा: ताड़कासुर की तपस्या और भगवान शिव का वरदान पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक एक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। भगवान शिव ने उसे यह वरदान तो नहीं दिया, लेकिन यह आशीर्वाद दिया कि केवल उनका पुत्र ही उसे पराजित कर सकता है। ताड़कासुर जानता था कि भगवान शिव वैराग्य जीवन जी रहे हैं और उनका पुत्र होना असंभव है। इस वरदान को पाकर वह अत्याचारी बन गया और देवताओं को त्रस्त करने लगा।

 

समय के साथ माता पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया और उनके पुत्र कार्तिकेय ने जन्म लिया। शिवजी के आदेश पर कार्तिकेय ने ताड़कासुर से युद्ध किया और अंततः उसे पराजित कर दिया। मरते समय ताड़कासुर ने भगवान शिव से क्षमा याचना की। भगवान शिव ने उसे क्षमा कर दिया और वरदान दिया कि कलियुग में इस स्थान पर उसकी पूजा उनके नाम के साथ की जाएगी। तभी से इस स्थान को 'ताड़केश्वर महादेव' के नाम से जाना जाता है।

माता पार्वती की छाया के रूप में उपस्थिति मान्यता है कि जब ताड़कासुर का अंत हुआ, तो भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे। सूर्य की तेज किरणों से उनकी रक्षा करने के लिए माता पार्वती ने सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण किया और उन्हें छाया प्रदान की। आज भी ये सात देवदार के वृक्ष मंदिर परिसर में मौजूद हैं और देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजे जाते हैं।

भक्तों की श्रद्धा: मनोकामना पूर्ण होने पर घंटी चढ़ाने की परंपरा इस मंदिर में यह परंपरा है कि जब किसी भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है, तो वह यहां घंटी चढ़ाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करता है। मंदिर परिसर में हजारों घंटियां इस परंपरा की साक्षी हैं। श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें लेकर आते हैं और भगवान शिव उन्हें कभी निराश नहीं करते।

महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, और चारों ओर भक्ति और आध्यात्म का अद्भुत वातावरण बनता है।

 

मंदिर का स्थान और यात्रा मार्ग ताड़केश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। यह ज़हरीखाल विकासखंड के अंतर्गत आता है और चखुल्या खाल गांव के पास स्थित है। यह मंदिर कोटद्वार से लगभग 70 किलोमीटर और लैंसडाउन से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए तारकेश्वर रोड मलारा बारा मार्ग का उपयोग किया जा सकता है। मंदिर तक पहुँचने के लिए एक सुंदर प्राकृतिक मार्ग से होकर जाना पड़ता है, जो इस यात्रा को और अधिक दिव्य और आनंददायक बनाता है।

ताड़केश्वर महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम भी है। यहां की पौराणिक कथाएं, प्रकृति की गोद में स्थित वातावरण और भगवान शिव की कृपा इसे भक्तों के लिए अत्यंत विशेष बना देती है। श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और भगवान शिव उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार करते हैं। यदि आप आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सुंदरता का अनूठा अनुभव करना चाहते हैं, तो ताड़केश्वर महादेव मंदिर की यात्रा अवश्य करें।

 
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