आमलकी एकादशी महाशिवरात्रि और होली के बीच आने वाली एक विशेष तिथि है, जिसका सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह एकादशी फाल्गुन शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवला वृक्ष की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला वृक्ष की उत्पत्ति भगवान विष्णु के मुख से हुई थी, इसलिए इसे विष्णु का प्रिय माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और आंवले की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आमलकी एकादशी की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी तिथि की शुरुआत 09 मार्च को सुबह 07:45 बजे होगी और इसका समापन 10 मार्च को सुबह 07:44 बजे होगा।
आमलकी एकादशी व्रत कथा
राजा मांधाता ने महर्षि वशिष्ठ से अपने कल्याणकारी व्रत के बारे में पूछा। महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि आमलकी एकादशी सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाली होती है।
पुराणों में वर्णन है कि वैदिश नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सभी आनंदपूर्वक रहते थे। वहां चंद्रवंशी राजा चैतरथ का राज्य था, जो अत्यंत धार्मिक और विष्णु भक्त थे। नगर के सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे।
एक बार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की आमलकी एकादशी आई। राजा और उनकी प्रजा ने हर्षपूर्वक व्रत किया और आंवला वृक्ष का पूजन किया। उसी रात, एक पापी बहेलिया, जो जीव हत्या कर अपना जीवन यापन करता था, भूख-प्यास से व्याकुल होकर मंदिर में आ गया और वहां एकादशी कथा सुनते-सुनते पूरी रात जागता रहा।
इस पुण्य प्रभाव से अगले जन्म में वह राजा वसुरथ के रूप में जन्मा। वह अत्यंत प्रतापी, धार्मिक और विष्णु भक्त था। एक दिन, शिकार के दौरान राजा मार्ग भटक गया और पहाड़ी म्लेच्छों ने उस पर हमला कर दिया। राजा की रक्षा के लिए अचानक एक दिव्य स्त्री प्रकट हुई, जिसने म्लेच्छों का संहार कर दिया। आकाशवाणी हुई कि यह राजा की आमलकी एकादशी व्रत का प्रभाव है।
व्रत की विधि
दशमी तिथि की रात को भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोएं।
एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
भगवान विष्णु और आंवला वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करें।
आंवले के वृक्ष के पास वेदी बनाकर कलश स्थापित करें और पंचरत्न, सुगंधी एवं पंच पल्लव रखें।
कलश पर परशुरामजी की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजा करें।
रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन करें और भगवान विष्णु का स्मरण करें।
द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा दें और कलश सहित परशुरामजी की मूर्ति भेंट करें।
इसके बाद व्रत का पारण करें और भोजन ग्रहण करें।
व्रत का फल
आमलकी एकादशी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है और विष्णुलोक में स्थान पाता है।