"स्वराज से सुराज तक – शिवाजी महाराज का युगांतकारी योगदान"
सत्रहवीं शताब्दी में, जब संपूर्ण विश्व में साम्राज्यवादी शक्तियों का प्रभुत्व था, तब छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र की आधारशिला रखी। मराठा इतिहासकार सरदेसाई के अनुसार, शिवाजी का व्यक्तित्व न केवल अपने समय का, बल्कि आधुनिक युग का भी अद्वितीय उदाहरण है। वे उस युग में एक प्रकाश पुंज की भांति चमके, जब औरंगजेब जैसे शक्तिशाली मुगल सम्राट ने हिंदू राज्यों को समाप्त करने की योजना बनाई थी। परंतु, शिवाजी महाराज ने अपनी दूरदृष्टि, रणनीतिक कुशलता और अपराजेय साहस से मुगलों और बीजापुर सल्तनत के विरुद्ध संघर्ष कर अपनी साधारण जागीर को एक सशक्त और संगठित मराठा साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। इसीलिए, उन्हें एक सच्चे राष्ट्र निर्माता के रूप में सम्मानित किया जाता है।
स्वराज से प्रेरित, सुराज की ओर
शिवाजी महाराज का स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय, सुशासन और आर्थिक समृद्धि का प्रतीक था। उनके आदर्शों से प्रेरित होकर, लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा" का ओजस्वी नारा दिया। यह सिद्ध करता है कि शिवाजी का स्वराज मात्र एक साम्राज्य की स्थापना नहीं, बल्कि एक नई शासन व्यवस्था की नींव थी, जिसने आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी।
रणनीतिक युद्धनीति और प्रशासनिक कुशलता
शिवाजी महाराज ने युद्ध की परंपरागत अवधारणाओं को बदलकर इसे केवल वीरता प्रदर्शन की बजाय एक उद्देश्यपूर्ण रणनीति बना दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. जदुनाथ सरकार के अनुसार, "आधुनिक भारत में ऐसी कुशलता और जीवन शक्ति का परिचय किसी अन्य हिंदू ने नहीं दिया।" शिवाजी ने यह प्रमाणित किया कि हिंदू जाति न केवल एक संगठित राष्ट्र का निर्माण कर सकती है, बल्कि कला, साहित्य, व्यापार, उद्योग और नौसेना को भी विकसित कर सकती है। उन्होंने अपनी नौसेना को इतनी मजबूत किया कि वह विदेशी ताकतों से मुकाबला कर सके, जिससे उनकी दूरदर्शिता का परिचय मिलता है।
शिवाजी महाराज की प्रशासनिक व्यवस्था भी अद्वितीय थी। उनकी अष्टप्रधान परिषद ने राज्य संचालन को कुशल और संगठित बनाया। कर प्रणाली में सुधार, किसानों से सीधे संवाद और भ्रष्टाचार पर कठोर नियंत्रण उनकी शासन नीतियों की विशिष्टताएं थीं। उनकी सेना में अनुशासन, समय पर वेतन भुगतान, सैनिकों के लिए विशेष पदवियां और गुरिल्ला युद्ध पद्धति ने उन्हें एक असाधारण सैन्य रणनीतिकार बना दिया।
धार्मिक सहिष्णुता और समावेशी शासन
शिवाजी महाराज केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय और धर्मनिरपेक्ष शासक भी थे। उन्होंने अपने राज्य में सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार रखा और मुस्लिम समाज के साथ भी सशक्त संबंध बनाए। यह उनकी महानता और दूरदर्शिता को दर्शाता है कि उन्होंने अपने शासन में धर्म के नाम पर भेदभाव को कभी स्थान नहीं दिया।
शिवाजी महाराज का दृष्टिकोण केवल एक स्वतंत्र राज्य तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी जो आत्मनिर्भर, संगठित और समृद्ध हो। उनके इन्हीं आदर्शों को आत्मसात करते हुए, मोदी सरकार ने अमृत काल के 26 वर्षों में भारत को एक विकसित और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया है। यह वही भारत होगा, जिसका सपना शिवाजी महाराज ने देखा था – एक सशक्त, स्वाभिमानी और गौरवशाली भारत।