वाचा च मनसः शौचं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूतदया शौचमेतच्छौचं परमार्थिनाम् ॥
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मन, वाणी को पवित्र रखना, इन्द्रियों का निग्रह, सभी प्राणियों पर दया करना और दूसरों का उपकार करना सबसे बड़ी शुद्धता है।
आशय यह है कि मन में बुरे विचार न आने देना, मुंह से कोई गलत बात न कहना, अपनी सभी इन्द्रियों को वश में रखना, सभी प्राणियों पर दया करना तथा सबकी भलाई करना यही मनुष्य के लिए सबसे बड़ी पवित्रता है।
