28 सितंबर का दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के उन समर्पित कार्यकर्ताओं की स्मृति में विशेष स्थान रखता है, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन संगठन के कार्यों में समर्पित कर दिया। ऐसे ही एक कर्मठ, निष्ठावान और प्रेरणादायी प्रचारक थे सुरेशराव केतकर। यह दिन उनकी जयंती के रूप में हमें स्मरण कराता है उस अनुशासन, सेवाभाव और कार्यनिष्ठा की, जो उन्होंने संघ कार्य के माध्यम से समाज को दी।
सुरेशराव केतकर जी का जन्म पुणे में हुआ था। वे प्रारंभ से ही अध्ययनशील, अनुशासित और विचारशील प्रवृत्ति के थे। उन्होंने विज्ञान में स्नातक (B.Sc) और फिर शिक्षा में स्नातक (B.Ed) की उपाधियाँ प्राप्त कीं। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने खड़की स्थित आलेगावकर विद्यालय में एक वर्ष तक अध्यापक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्हें विद्यार्थियों के विकास में शिक्षा की भूमिका को नजदीक से समझने का अवसर मिला।
शिक्षा के क्षेत्र में रहते हुए उनका झुकाव संघ की ओर बढ़ता गया। संघ कार्य में गहरी रुचि और निष्ठा को देखते हुए उन्होंने जीवन का एक बड़ा निर्णय लिया — पूर्णकालिक प्रचारक बनने का। इसके पश्चात उन्होंने सांगली, सोलापुर, लातूर जैसे महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में प्रचारक के रूप में कार्य किया। उनका कार्यक्षेत्र व्यापक था, लेकिन उन्होंने केवल दायित्व नहीं निभाए, बल्कि कार्यकर्ताओं को जोड़ने, सशक्त बनाने और प्रशिक्षित करने का प्रयास भी पूरे समर्पण से किया।
वे केवल संगठन के प्रचारक ही नहीं थे, बल्कि शारीरिक शिक्षण के क्षेत्र में भी एक दृढ़ नेतृत्वकर्ता थे। उन्होंने महाराष्ट्र प्रांत के शारीरिक शिक्षण प्रमुख, क्षेत्र प्रचारक, तथा अखिल भारतीय शारीरिक शिक्षण प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। उन्होंने शाखा में शारीरिक प्रदर्शन, व्यायाम, दंड, योग, सूर्यनमस्कार जैसी विधाओं को अधिक प्रभावशाली और नियमित बनाने का प्रयास किया, जिससे स्वयंसेवकों में अनुशासन और आत्मविश्वास का विकास हो।
उनका व्यक्तित्व अत्यंत आत्मीय और प्रभावशाली था। वे केवल संगठनात्मक रूप से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी कार्यकर्ताओं के जीवन में गहराई से जुड़े रहते थे। वे एक मार्गदर्शक, अभिभावक और सच्चे मित्र के रूप में सामने आते। कोई कार्यकर्ता अस्वस्थ हो, व्यक्तिगत संकट में हो या मानसिक रूप से विचलित हो — सुरेशराव जी उसके साथ खड़े दिखाई देते। वे केवल निर्देश नहीं देते थे, बल्कि साथ चलने का भाव पैदा करते थे।
उम्र बढ़ने और स्वास्थ्य में गिरावट के बावजूद उन्होंने स्वयं को कभी निष्क्रिय नहीं होने दिया। वे नियमित रूप से व्यायाम करते, सूर्यनमस्कार करते और अन्य कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करते। उनका मानना था कि एक स्वयंसेवक को मानसिक रूप से सशक्त बनने के लिए शारीरिक रूप से सुदृढ़ होना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण उन्होंने जीवन भर स्वयं अपनाया और दूसरों में भी रोपा।
16 जुलाई 2016 को उनका निधन हुआ। उनका जाना संघ और उसके हजारों कार्यकर्ताओं के लिए एक गहरी क्षति थी। लेकिन उनका जीवन, उनका कार्य और उनका व्यक्तित्व आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। उनके द्वारा स्थापित अनुशासन, सेवा और संस्कार की भावना आज भी अनेक कार्यकर्ताओं को अपने मार्ग पर अडिग रखती है।
आज उनकी जयंती पर हम उन्हें नमन करते हैं — एक ऐसे प्रचारक को, जिन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को संगठन और समाज के लिए समर्पित किया। उनका जीवन यह सिखाता है कि एक सामान्य व्यक्ति भी अगर साधना, सेवा और संघ की भावना से ओतप्रोत हो, तो वह असंख्य जीवनों को दिशा दे सकता है।
विनम्र श्रद्धांजलि और कृतज्ञ स्मरण — सुरेशराव केतकर जी को उनकी जयंती पर।
