महात्मा गांधी ने कहा था, "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।" यह वाक्य उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और विचारधारा को सरलता से अभिव्यक्त करता है। गांधी जैसे थे, वैसे ही उनके विचार थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। उनका जीवन एक आदर्श के रूप में देखा गया — ऐसा जीवन जो सिद्धांतों पर आधारित था और जो हर किसी के लिए प्रेरणा बन सका।
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने जीवन को एक संत की तरह जिया — सादगी, सेवा और सत्य के मार्ग पर। एक बार विनोबा भावे, जो आगे चलकर भूदान आंदोलन के नेता बने, गांधी से राजनीति के गुर सीखने के उद्देश्य से आश्रम पहुँचे। उन्होंने देखा कि गांधी स्वयं रसोई में सब्जी काटने में लगे हुए हैं। विनोबा भावे को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जिस व्यक्ति के एक इशारे पर लाखों लोग चल पड़ते हैं, वह इतनी साधारणता से जीवन जी रहा है। गांधी ने किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं माना। उन्होंने कहा, “अभी मैं सब्जी काटने में व्यस्त हूँ,” और यही उनके विचारों की सच्चाई थी, जो विनोबा को जीवन भर प्रेरित करती रही।
गांधी के संपर्क में जो भी आया, वह उनके विचारों और कार्यों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने सेवा, सादगी और आत्मानुशासन के मार्ग को अपनाने का संकल्प लिया। गांधी ने जीवन को अनुशासित और सार्थक बनाने के लिए एकादश महाव्रत (ग्यारह नियम) अपनाने की सलाह दी थी। ये नियम केवल धार्मिक नहीं, बल्कि नैतिक जीवन जीने के व्यवहारिक मार्गदर्शक हैं।
1. सत्य – गांधी के अनुसार सत्य केवल वाणी में ही नहीं, बल्कि विचार, कर्म और व्यवहार में भी होना चाहिए। वे सत्य को सूर्य की तरह प्रखर मानते थे और कहते थे कि यह सेवा भावना का मूल है।
2. अहिंसा – गांधी का विश्वास था कि अहिंसा दुनिया की सबसे शक्तिशाली ताकत है। यह मनुष्य को न केवल मानसिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि समाज में स्थायी शांति स्थापित करने का मार्ग भी है।
3. अस्तेय – अर्थात चोरी न करना और दूसरों की वस्तुओं या अधिकारों की लालसा न रखना। गांधी इसे मानसिक, वैचारिक और सामाजिक स्तर पर अपनाने पर बल देते थे।
4. अपरिग्रह – यानी संग्रह की प्रवृत्ति से बचना। न केवल वस्तुओं, बल्कि विचारों का भी संयम आवश्यक है। गांधी के अनुसार, जो विचार मानवता, सत्य और नैतिकता के खिलाफ हैं, उनका त्याग अपरिग्रह का पालन है।
5. ब्रह्मचर्य – संयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक। गांधी का मानना था कि जिसने कामवासना पर नियंत्रण पा लिया, वह सच्चे अर्थों में चरित्रवान है।
6. अस्वाद – भोजन में स्वाद की लालसा का त्याग। गांधी इसे ब्रह्मचर्य का पहला चरण मानते थे। वे मानते थे कि स्वाद की ललक मन को भटकाती है और आत्मसंयम में बाधा बनती है।
7. अभय – गांधी का अभय डर से मुक्ति का प्रतीक था। वे कहते थे कि मनुष्य को केवल ईश्वर से डरना चाहिए, बाकी सभी डर भ्रम हैं। सच्चा अभय मन की शांति और आंतरिक विश्वास से आता है।
8. अस्पृश्यता निवारण – गांधी ने इसे समाज सुधार का सबसे जरूरी काम माना। वे अस्पृश्यता को केवल सामाजिक कुरीति नहीं, बल्कि मानवता के विरुद्ध पाप मानते थे। वे कहते थे कि यदि उन्हें दोबारा जन्म लेना पड़े, तो वे अछूत बनकर जन्म लेना चाहेंगे, ताकि उनके दुःखों को साझा कर सकें।
9. विनम्रता – अहंकार से मुक्ति ही सच्ची विनम्रता है। गांधी के अनुसार, विनम्रता का अर्थ है स्वयं को शून्य समझना, अहंकार से मुक्त रहकर सेवा करना।
10. शारीरिक श्रम – गांधी मानते थे कि हर व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिए कुछ न कुछ श्रम अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ मानसिक या बौद्धिक कार्य को श्रम नहीं माना जा सकता। सभी को रोटी कमाने के लिए पसीना बहाना चाहिए।
11. सर्वधर्म समभाव – गांधी सभी धर्मों को समान मानने में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार, किसी धर्म को छोटा या बड़ा समझना धार्मिक अहंकार है। धर्म का उद्देश्य मानवता की सेवा है और सभी धर्मों का सम्मान करना सच्चा धर्म है।
इन नियमों का पालन कर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को श्रेष्ठ और समाज के लिए उपयोगी बना सकता है। आज के समय में जब समाज अनेक प्रकार के संकटों और असंतुलनों से जूझ रहा है, तब गांधी के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं।
गांधी का दर्शन हमें सिखाता है कि शांति, संयम और सेवा के माध्यम से समाज में स्थिरता लाई जा सकती है। आज जब दुनिया युद्ध, हिंसा और आत्मकेंद्रित जीवनशैली की ओर बढ़ रही है, गांधी का यह वाक्य — "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है" — हमें नई ऊर्जा और दिशा प्रदान करता है। यह संदेश हर युग में जीवित रहेगा, क्योंकि यह मानवता की सबसे सच्ची और सरल आवाज है।
