राष्ट्र की अखंडता का आशय है कि भिन्न-भिन्न जाति, धर्म, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद हम सभी एक समान राष्ट्रीय भावना से जुड़े रहें। किसी भी देश की प्रगति और मजबूती इसी पर निर्भर करती है कि वहाँ के नागरिक कितने एकजुट हैं।
भारतीय संविधान इस भावना को विशेष महत्व देता है। वर्ष 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से 'अखंडता' शब्द को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया, जो यह दर्शाता है कि विविधताओं के बावजूद भारत को एकजुट बनाए रखना कितना आवश्यक है।
वर्तमान समय में, जब समाज में अनेक प्रकार के वैचारिक और सामाजिक मतभेद उत्पन्न हो रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि हम सब मिलकर राष्ट्र के साझा हित को प्राथमिकता दें। जैसा कि कहा गया है, “व्यक्ति राष्ट्र के लिए होता है”, उसी भावना के साथ प्रत्येक नागरिक का यह दायित्व बनता है कि वह देश की एकता को बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाए। देश की तरक्की तभी संभव है जब उसमें रहने वाले लोगों के भीतर देशभक्ति और मेलजोल की भावना मजबूत हो।
हमारा राष्ट्रीय ध्वज, 'तिरंगा', इस एकता का प्रतीक है। इसकी रक्षा हेतु असंख्य वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। यह हमें स्मरण कराता है कि हमारी पहचान चाहे जैसी भी हो, हम सभी एक ही राष्ट्र के अंग हैं।
भारतीय संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस एकता को मजबूत करने का कार्य करते हैं। प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि संविधान सभी नागरिकों को समान मानता है। अनुच्छेद 1 भारत को राज्यों के संघ के रूप में प्रस्तुत करता है, जिससे सभी राज्य एक समान नागरिकता में बंधे रहते हैं। अनुच्छेद 51 विश्व शांति और मानवता के प्रति सद्भावना की भावना को बढ़ावा देता है, जिससे समाज में सामंजस्य बना रहता है। वहीं, अनुच्छेद 244 जनजातीय और विशेष क्षेत्रों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ करता है ताकि वे भी राष्ट्रीय प्रवाह में समान रूप से भागीदारी कर सकें।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ अनेकता में एकता की मिसाल देखने को मिलती है। इस सौहार्द और एकजुटता को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि हमारा देश सदैव सशक्त, सुरक्षित और समृद्ध बना रहे।
