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"भगवान् धन्वंतरि का अवतरण एवं धन त्रयोदशी (धन तेरस) का माहात्म्य"

Date : 18-Oct-2025
18 अक्टूबर , तद्नुसार धन त्रयोदशी की शुभकामनाओं सहित सादर समर्पित

कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की धन त्रयोदशी के विविध निमित्त हैं। यथा सृष्टि संरक्षण दिवस, धन तेरस - भगवान् धन्वंतरि की अवतरण तिथि, राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस, जैन आगम के अनुसार आज समवशरण को त्याग कर  भगवान् महावीर पावापुर के पद्मसरोवर में योग निरोध में चले गए। यह दिन धन्य तेरस या ध्यान तेरस या धन तेरस के रुप में शिरोधार्य हुआ। कार्तिक कृष्ण अमावस्या की प्रतुष्य बेला में भगवान ने निर्वाण को प्राप्त किया। महादेव ने सृष्टि की रक्षा के लिए विषपान किया था। माँ लक्ष्मी एवं कुबेर को धन  एवं धन्वंतरि जी को अमृत घट प्रदान किया। भगवान् विष्णु के अवतार भगवान् धन्वंतरि ने महादेव को विष के शमन के लिए अमृतपान कराया। भगवान् शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए विषपान किया तब भगवान् ने उनको अमृत  पिलाया। अमृत, शिव को देकर विश्व की सबसे प्राचीन नगरी काशी को अमर किया गया।

 यह कार्य विष्णु के अंशावतार धनवन्तरि का था, जो खुद सागर मंथन से निकले थे।
धन्वन्तरि सनातन धर्म में एक देवता हैं। वे महान चिकित्सक थे। हिन्दू धार्मिक मान्यताआें के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के अंशावतार  समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था।

 शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को माता काली और अमावस्या को माता लक्ष्मी जी का सागर से अवतरण हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।

इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और अमृत कलश धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं में से एक में जड़ी-बूटी तथा दूसरे में आयुर्वेद ग्रंथ लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करने वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।

इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा‘ का विश्व का पहला विश्वविद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके अधिष्ठाता सुश्रुत बनाये गए थे।

 सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ऋषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले शल्य चिकित्सक थे। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी—धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि भगवान् शिव ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।

आयुर्वेद के संबंध में सुश्रुत का मत है कि ब्रह्माजी ने पहली बार एक लाख श्लोक के, आयुर्वेद का प्रकाशन किया था जिसमें एक सहस्र अध्याय थे। उनसे प्रजापति ने पढ़ा तदुपरांत उनसे अश्विनी कुमारों ने पढ़ा और उन से इन्द्र ने पढ़ा। इन्द्रदेव से धन्वंतरि ने सुना और पढ़ा तदुपरांत सुश्रुत को सुनाया। भावप्रकाश के अनुसार आत्रेय प्रमुख मुनियों ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त कर उसे अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों को दिया।
विध्याताथर्व सर्वस्वमायुर्वेदं प्रकाशयन्।
स्वनाम्ना संहितां चक्रे लक्ष श्लोकमयीमृजुम्॥
इसके उपरान्त अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों के तन्त्रों को संकलित कर चरक द्वारा ‘चरक संहिता‘ के निर्माण भी उल्लेखनीय है। 

वैदिक काल में जो महत्व और स्थान अश्विनी को प्राप्त था वही पौराणिक काल में धन्वंतरि को प्राप्त हुआ। जहाँ अश्विनी के हाथ में मधुकलश था वहाँ धन्वंतरि को अमृत कलश मिला, क्योंकि विष्णु संसार की रक्षा करते हैं अत: रोगों से रक्षा करने वाले धन्वंतरि को विष्णु का अंश माना गया। विष विद्या के संबंध में कश्यप और तक्षक का जो संवाद महाभारत में आया है, वैसा ही धन्वंतरि और नागदेवी मनसा का ब्रह्मवैवर्त पुराण में आया है। उन्हें गरुड़ का शिष्य कहा गया है –
सर्ववेदेषु निष्णातो मन्त्रतन्त्र विशारद:।
शिष्यो हि वैनतेयस्य शंकरोस्योपशिष्यक:॥
भगवान् धन्वंतरी की साधना के लिये एक संक्षिप्त मंत्र है - 
घ् धन्वंतरये नम:। सबसे सरल और सुबोध मंत्र है ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय
त्रैलोक्यपतये त्रैलोक्यनिधये श्रीमहाविष्णुस्वरूपाय
श्रीधन्वंतरीस्वरूपाय श्री श्री श्री औषधचक्राय नारायणाय नमः॥-

डॉ. आनंद सिंह राणा
 
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