अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए कई वीर सपूतों ने संघर्ष किया, जिनमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम सबसे प्रमुख है। 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा की थी। इस ऐतिहासिक दिन को आज़ाद हिंद सरकार की वर्षगांठ के तौर पर याद किया जाता है।
नेताजी के नेतृत्व में बनी इस सरकार को जापान, जर्मनी, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड जैसे देशों ने मान्यता दी थी। हालांकि, इससे पहले 29 अक्टूबर 1915 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अफगानिस्तान में भारत की पहली अंतरिम सरकार का गठन किया था, जिसे बाद में सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया गया।
कैसे बनी थी आज़ाद हिंद फौज
द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में सुभाष चंद्र बोस ने सोवियत संघ, जर्मनी और जापान जैसे देशों की यात्रा की, ताकि भारत को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने के लिए एक मज़बूत गठबंधन तैयार किया जा सके। 1921 से 1941 के बीच, अंग्रेजों से टक्कर लेने के कारण उन्हें 11 बार जेल की सज़ा हुई। 1941 में एक केस के सिलसिले में अदालत में पेशी से पहले वह गुप्त रूप से जर्मनी पहुंच गए, जहाँ उन्होंने हिटलर से भी मुलाकात की।
1942 में जापान की मदद से आज़ाद हिंद फौज यानी इंडियन नेशनल आर्मी (INA) का गठन किया गया। इस फौज की बुनियाद रासबिहारी बोस ने टोक्यो में रखी थी, और बाद में नेताजी ने इसकी कमान संभाली। मार्च 1942 में एक सम्मेलन में नेताजी को आमंत्रित किया गया, जहां आज़ाद हिंद फौज के गठन की योजना को अंतिम रूप दिया गया।
8500 सैनिक और महिला विंग
आज़ाद हिंद फौज की ताकत धीरे-धीरे बढ़ी। इसमें करीब 8500 सैनिक शामिल थे, जिनमें जापान द्वारा बंदी बनाए गए भारतीय सैनिक और मलाया-बर्मा में रह रहे भारतीय स्वयंसेवक शामिल थे। खास बात यह थी कि फौज में एक महिला यूनिट भी थी, जिसकी कमान डॉक्टर लक्ष्मी स्वामीनाथन ने संभाली थी। यह भारतीय सेना के इतिहास में एक अनोखा और प्रेरणादायक कदम था। 19 मार्च 1944 को इस फौज ने पहली बार तिरंगा झंडा फहराया।
आज़ाद हिंद सरकार का गठन
21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर में नेताजी ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार की घोषणा की। इसके दो दिन बाद, 23 अक्टूबर को जापान ने इस सरकार को आधिकारिक मान्यता दी। नेताजी खुद इस सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री बने। उनकी फौज ने बर्मा की सीमा पर ब्रिटिश सेना के खिलाफ बहादुरी से युद्ध लड़ा। इस सरकार को कई देशों का समर्थन मिलने के बाद भारत में अंग्रेजी शासन की नींव कमजोर होने लगी।
अपना बैंक, नोट, डाक टिकट और झंडा
आज़ाद हिंद सरकार ने 1943 में आज़ाद हिंद बैंक की स्थापना की, जिसने 10 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के नोट जारी किए। 1 लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी। सरकार का अपना तिरंगा झंडा था और डाक टिकट भी जारी किए गए थे। राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ था और ‘जय हिंद’ को अभिवादन का नारा बनाया गया था।
21 मार्च 1944 को "चलो दिल्ली" के नारे के साथ आज़ाद हिंद फौज ने भारत की धरती पर कदम रखा। यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक क्रांतिकारी मोड़ था, जिसने आज़ादी की लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद सरकार का यह योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
