घनश्यामदास बिड़ला - बिड़ला समूह के संस्थापक | The Voice TV

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घनश्यामदास बिड़ला - बिड़ला समूह के संस्थापक

Date : 10-Apr-2023

घनश्याम दास बिड़ला भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे, जिसकी परिसंपत्तियाँ 195 अरब रुपये से अधिक है। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियाँ 'ग्रासिम इंडस्ट्रीज' और 'सेंचुरी टेक्सटाइल' हैं। ये गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन् 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया।

प्रारंभिक जीवन

घनश्याम दास बिड़ला एक स्थानीय गुरु से अंकगणित तथा हिन्दी की आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिता बी. डी. बिड़ला की प्रेरणा व सहयोग से घनश्याम दास बिड़ला ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में व्यापार जगत् में प्रवेश किया। 1912 में किशोरावस्था में ही घनश्याम दास बिड़ला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से दलाली का व्यवसाय शुरू कर दिया। 1918 में घनश्याम दास बिड़ला ने बिड़ला ब्रदर्सकी स्थापना की। कुछ ही समय बाद घनश्याम दास बिड़ला ने दिल्ली की एक पुरानी कपड़ा मिल ख़रीद ली, उद्योगपति के रूप में यह घनश्याम दास बिड़ला का पहला अनुभव था। 1919 में घनश्याम दास बिड़ला ने जूट उद्योग में भी क़दम रखा। 1921 में ग्वालियर में कपड़ा मिल की स्थापना की और 1923 से 1924 में उन्होंने केसोराम कॉटन मिल्स ख़रीद ली। ये 1928 ई. में पूंजीपति संगठन भारतीय वाणिज्य उद्योग महामण्डलके अध्यक्ष बने।

व्यापार और उद्योग का विस्तार

घनश्यामदास को पारिवारिक व्यापार और उद्योग विरासत में मिला जिसका विस्तार उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में किया। वे परिवार के परंपरागत साहूकारीव्यवसाय को निर्माण के क्षेत्र में मोड़ना चाहते थे इसलिए वे कोलकाता चले गए। वहां जाकर उन्होंने एक जूट कंपनी की स्थापना की क्योंकि बंगाल जूट का सबसे बड़ा उत्पादक था। वहां पहले से ही स्थापित यूरोपियन और ब्रिटिश व्यापारियों को घनश्याम दास से घबराहट हुई और उन्होंने अनैतिक तरीके से उनका व्यापार बंद कराने की कोशिश की पर घनश्याम दास भी धुन के पक्के थे और दांते रहे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में आपूर्ति की कमी होने लगी तब बिड़ला का व्यापार खूब फला-फूला।

सन 1919 में उन्होंने 50 लाख की पूँजी से बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेडकी स्थापना की और उसी साल ग्वालियर में एक मिल की भी स्थापना की गयी।सन 1926 में उन्हें ब्रिटिश इंडिया के केन्द्रीय विधान सभा के लिए चुना गया। सन 1932 में उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ मिलकर दिल्ली में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की।1940 के दशक में उन्होंने हिंदुस्तान मोटर्सकी स्थापना कर कार उद्योग में कदम रखा। देश की आजादी के बाद घनश्याम दास बिड़ला ने कई पूर्ववत यूरोपियन कंपनियों को खरीदकर चाय और टेक्सटाइल उद्योग में निवेश किया। उन्होंने कंपनी का विस्तार सीमेंट, रसायन, रेयान, स्टील पाइप जैसे क्षेत्रों में भी किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान घनश्याम दास को एक ऐसा व्यावसायिक बैंक स्थापित करने का विचार आया जो पूर्णतः भारतीय पूँजी और प्रबंधन से बना हो। इस प्रकार यूनाइटेड कमर्शियल बैंक की स्थापना सन 1943 में कोलकाता में की गयी। यह भारत के सबसे पुराने व्यावसायिक बैंकों में से एक है और इसका नाम अब यूको बैंक हो गया है।

लोकोपकारी कार्य

सन 1943 में घनश्याम दास बिड़ला ने पिलानी में बिड़ला इंजीनियरिंग कॉलेज’ (सन 1964 में इसका नाम बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस हो गया) और भिवानी में टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्सटाइल एंड साइंसेजकी स्थापना की। ये दोनों संस्थान भारत के सर्वोच्च इंजीनियरिंग संस्थानों की श्रेणी में आते हैं। पिलानी में सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूटकी एक शाखा, एक आवासीय विद्यालय (जिसका नाम बिड़ला परिवार के ऊपर रखा गया है) और कई पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं। जी. डी बिड़ला मेमोरियल स्कूल रानीखेत (जो देश के सर्वश्रेष्ठ आवासीय विद्यालयों में एक है) भी उनकी याद में स्थापित किया गया था।सन 1957 में भारत सरकार ने उनको देश के दूसरे सर्वश्रेष्ठ सम्मान पद्म विभूषणसे सम्मानित किया।

महात्मा गाँधी और घनश्याम दास बिड़ला

घनश्याम दास बिड़ला राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के करीबी मित्र, सलाहकार एवं सहयोगी थे और स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़-चड़कर भाग लिया था। पहली बार वे महात्मा गाँधी से सन 1916 में मिले थे। जब बापू की हत्या हुई उस दौरान उनका प्रवास बिड़ला के दिल्ली निवास पर ही था और पिछले 4 महीने से वे वहीँ रह रहे थे।कई मौकों पर उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए धन इकठ्ठा करने में मदद भी की और साथ ही दूसरे पूंजीपतियों से भी राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने की अपील भी करते थे।

निधन: 11 जून, 1983, मुंबई, महाराष्ट्र

 
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