हिन्दूस्तान में शिव मंदिरों की भरमार है लेकिन कुछ शिवालय ऐसे भी हैं जिनका इतिहास आज भी रहस्यमय है। ऐसा ही एक शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है, यहां के शिवलिंग की खास बात यह है कि इससे एक दो नहीं बल्कि पूरे एक लाख छिद्र है। मान्यता है कि यहां जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है उसकी मनोकामना पूरी होकर रहती है। सावन मास और महाशिवरात्रि पर्व के समय यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है
छत्तीसगढ़ का काशी: यह मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 कि॰मी॰ तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से 3 कि॰मी॰ की दूरी पर बसे ग्राम खरौद जिला- जांजगीर चाम्पा (छ.ग.) में स्थित है। । खरौद छत्तीसगढ़ का प्रमुख कला केंद्र है और इस स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति भी होती है इसीलिए इसे छत्तीसगढ़ का काशी भी कहा जाता है। मान्यता अनुसार श्रीराम ने खर और दूषण का यहीं पर वध किया था। इसीलिए इस जगह का नाम खरौद है। कहा जाता हैं कि यहां पूजा करने से ब्रह्महत्या के दोष का भी निवारण हो जाता है।
शिवलिंग की पौराणिक कथा :
लंकापति रावण का वध वध करने के बाद लक्ष्मणजी ने भगवान राम से ही इस मंदिर की स्थापना करवाई थी। यह भी कहते हैं कि लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग की स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी। कथा के अनुसार शिवजी को जल अर्पित करने के लिए लक्ष्मण जी पवित्र स्थानों से जल लेने गए थे, एक बार जब वे आ रहे थे तब उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। कहते हैं कि शिवजी ने बीमार होने पर लक्ष्मण जी को सपने में दर्शन दिए और इस शिवलिंग की पूजा करने को कहा। पूजा करने से लक्ष्मणजी स्वस्थ हो गए। तभी से इसका नाम लक्ष्मणेश्वर है। मंदिर के प्राचीन शिलालेख अनुसार आठवीं शताब्दी राजा खड्गदेव ने इस मंदिर के निर्माण में योगदान दिया था। यह भी उल्लेख है कि मंदिर का निर्माण पाण्डु वंश के संस्थापक इंद्रबल के पुत्र ईसानदेव ने करवाया था।
लक्षलिंग
यह मंदिर अपने आप में बेहद अद्भुत और आश्चर्यों से भरा है। इसकी ख्याति रामेश्वरम शिवलिंग की तरह ही लक्ष्मणेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है । इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसीलिए इसे लक्षलिंग या लखेश्वर कहा जाता है। इन एक लाख छेदों में से एक छेद ऐसा है जो पाताल से जुड़ा है।लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में जलाभिषेक किया जाता है क्योंकि ये कुण्ड कभी नहीं सूखता, जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है उसमें जल हमेशा भरा ही रहता है। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है। इसे छत्तीसगढ़ राज्य की काशी शिव धाम भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की जो निर्धन व्यक्ति शिव भक्त 12 ज्योतिर्लिंग में से एक भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने में असमर्थ है वो लक्ष्मणेश्वर महादेव में दर्शन कर ले तो उसे काशी विश्वनाथ के समान ही दर्शनफल और आशीर्वाद मिलता है ।
वस्तुकला
इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ था। यह नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार के अंदर 110 फुट लम्बा और 87 फुट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 87 फुट ऊंचा और 30 फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है।
मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। इसमें आठवीं शताब्दी के इंद्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख है। मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 44 श्लोक हैं।
चंद्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है। तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्य नाम की दो रानियां थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्या से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए। उन्होंने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया|
मंदिर के बाहर परिक्रमा में राजा खड्गदेव और उनकी रानी हाथ जोड़े स्थित हैं। मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पाश्र्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तंभ हैं। इनमें से एक स्तंभ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अद्र्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं।
इसी प्रकार दूसरे स्तंभ में राम चरित से संबंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से संबंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरुष और दंडधारी पुरुष खुदे हैं। प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पाश्र्व में दो नारी प्रतिमाएं हैं। इसके नीचे प्रत्येक पाश्र्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है। अन्य प्रमुख मंदिरों में अंदलदेयो तथा शबरी मंदिर भी शामिल हैं।