भारतीय हिंदु दार्शनिक और धर्म शास्त्री -आदि गुरु शंकराचार्य | The Voice TV

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भारतीय हिंदु दार्शनिक और धर्म शास्त्री -आदि गुरु शंकराचार्य

Date : 25-Apr-2023

केरल के एक घोर निर्धन ब्राम्हण परिवार में जन्में शंकराचार्य ने आठ वर्ष की उम्र में गृहस्थ जीवन को त्यागकर सन्यासी का जीवन अपना लिया। शंकराचार्य आठवीं सदी के भारतीय हिंदु दार्शनिक और धर्म शास्त्री थे। जिनकी शिक्षाओं का हिंदु धर्म के विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। आदि गुरु शंकराचार्य को भगवान शंकर का साक्षात् रूप माना जाता है, जिन्होंने हिंदु धर्म के अनुष्ठान और प्रचार प्रसार के लिए अपना पूरा जीवन व्यतीत किया।

आदिशंकराचार्य जी का जन्म 788 . मे, केरल के एक छोटे से, गाव कलादी मे हुआ था. शंकराचार्य जी के जन्म की एक छोटी सी कथा है जिसके अनुसार, शंकराचार्य के माता-पिता बहुत समय तक निसंतान थे . कड़ी तपस्या के बाद, माता अर्याम्बा को स्वप्न मे भगवान शिव ने, दर्शन दिये और कहा कि, उनके पहले पुत्र के रूप मे वह स्वयं अवतारित होंगे परन्तु, उनकी आयु बहुत ही कम होगी और, शीघ्र ही वे देव लोक गमन कर लेंगे . शंकराचार्यजी जन्म से बिल्कुल अलग थे, आप स्वभाव मे शांत और गंभीर थे . जो कुछ भी सुनते थे या पढ़ते थे, एक बार मे समझ लेते थे और अपने मस्तिष्क मे बिठा लेते थे . शंकराचार्य जी ने स्थानीय गुरुकुल से सभी वेदों और लगभग : से अधिक वेदांतो मे महारथ हासिल कर ली थी . समय के साथ यह ज्ञान अथा होता चला गया और आपने स्वयं ने अपने इस ज्ञान को, बहुत तरह से जैसे- उपदेशो के माध्यम के, अलग-अलग मठों की स्थापना करके, ग्रन्थ लिख कर कई सन्देश लोगो तक पहुचाया. आपने सर्वप्रथम योग का महत्व बताया, आपने ईश्वर से जुड़ने के तरीको का वर्णन और महत्व बताया . आपने स्वयं ने विविध सम्प्रदायों को समझा उसका अध्ययन कर लोगो को उससे अवगत कराया .

जीवनशैली

जन्म से ही आदिशंकराचार्य जी जीवन शैली कुछ भिन्न थी . शंकराचार्य जी ने वेद-वेदांतो के इस ज्ञान को भारत के चारों कोनो मे फैलाया . उनका उद्देश्य प्रभु की दिव्यता से लोगो को अवगत कराना अद्वैत कहावत के अनुसार ब्रह्म सर्वत्र है या स्व ब्रह्म है अर्थात् ब्रह्म का मै और मै कौन हू ? का सिद्धांत शंकराचार्य द्वारा प्रचारित किया गया . इसी के साथ शिव की शक्ति और उसकी दिव्यता बताई गई . शंकराचार्य द्वारा कथित तथ्य और सिद्धांत जिसमे सांसारिक और दिव्य अनुभव दोनों का बेजोड़ मिलन है, जो कही देखने को नही मिलता है . शंकराचार्य ने कभी किसी देवता के महत्व को कम नही किया ना ही उनकी बाहुल्यता को कम किया . इन्होंने अपने जीवनशैली के माध्यम से लोगो जीवन के तीन वास्तविक स्तरों से अवगत कराया .

तीन वास्तविक स्तर

प्रभु – यहा ब्रह्मा,विष्णु, और महेश की शक्तियों का वर्णन किया गया था .

प्राणी – मनुष्य की स्वयं की आत्मा – मन का महत्व बताया है .

अन्य – संसार के अन्य प्राणी अर्थात् जीव-जन्तु, पेड़-पौधे और प्राकृतिक सुन्दरता का वर्णन और महत्व बताया है .

इस प्रकार इन तीन को मिला कर, उनके साथ भक्ति,योग, और कर्म को जोड़ दिया जाये तो जो, आनंद प्राप्त होता है वो, बहुत ही सुखद होता है . इसी तरह का जीवन स्वयं व्यतीत कर, अपनी ख्याति सर्वत्र फैलाते थे

कार्यकाल

आदिशंकराचार्य जी ने बहुत कम उम्र मे, तथा बहुत कम समय मे अपने कार्य के माध्यम से, अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण किया . आपके जीवन के बारे मे यहा तक कहा गया है कि आपने महज दो से तीन वर्ष की आयु मे सभी शास्त्रों , वेदों को कंठस्थ कर लिया था . इसी के साथ इतनी कम आयु मे, भारतदर्शन कर उसे समझा और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एकता के अटूट धागे मे पिरोने का अथक प्रयास किया और बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त की जिसका जीवित उदहारण उन्होंने स्वयं सभी के सामने रखा और वह था कि आपने सर्वप्रथम चार अलग-अलग मठो की स्थापना कर उनको उनके उद्देश्य से अवगत कराया . इसी कारण आपको जगतगुरु के नाम से नवाज़ा गया और आप चारो मठो के प्रमुख्य गुरु के रूप मे पूजे जाते है .

आठ साल की उम्र में कंठस्थ थे चारों वेद

शंकराचार्य के जन्म के बाद ही कम उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। लेकिन ज्ञान के प्रति जिज्ञासा ने उन्हें दार्शनिक और धर्मशास्त्री बना दिया। आठ वर्ष की उम्र में उन्हें चारों वेद कंठस्थ हो गए थे और उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्यागकर सन्यासी का जीवन अपना लिया था। बारह वर्ष की उम्र में उन्होंने शास्त्रों का ज्ञान हासिल कर सोलह वर्ष में ब्रम्हसूत्र भाष्य रच दिया था।

शंकराचार्य चार मठो के नाम

आदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदु धर्म के प्रचार प्रसार में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। उन्होंने देश के चारो कोने में मठों की स्थापना कर हिंदु धर्म का परचम बुलंद किया।

वेदान्त मठ

जिसे वेदान्त ज्ञानमठ भी कहा जाता है जोकि, सबसे पहला मठ था और इसे , श्रंगेरी रामेश्वर अर्थात् दक्षिण भारत मे, स्थापित किया गया .

गोवर्धन मठ

गोवर्धन मठ जोकि, दूसरा मठ था जिसे जगन्नाथपुरी अर्थात् पूर्वी भारत मे, स्थापित किया गया .

शारदा मठ –

जिसे शारदा या कलिका मठ भी कहा जाता है जोकि, तीसरा मठ था जिसे, द्वारकाधीश अर्थात् पश्चिम भारत मे, स्थापित किया गया .

ज्योतिपीठ मठ –

ज्योतिपीठ मठ जिसे बदरिकाश्रम भी कहा जाता है जोकि, चौथा और अंतिम मठ था जिसे, बद्रीनाथ अर्थात् उत्तर भारत मे, स्थापित किया गया .

आदि गुरु शंकराचार्य से जुड़े अनसुने तथ्य

जन्म समय : आदि शंकराचार्य का जन्म 508 ईस्वी पूर्व हुआ था और उन्होंने 474 ईसा पूर्व अपनी देह को त्याग दिया था। एक दूसरे अभिनव शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में हुआ और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में हुई थी।

 माता पिता : आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर हुआ था। मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूद्री ब्राह्मण शिवगुरु एवं आर्याम्बा के यहां उनका जन्म हुआ था।

चार मठों की स्थापना : आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर दिशा में उन्होंने बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। इसके बाद पश्‍चिम दिशा में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। इसके बाद उन्होंने दक्षिण में ही श्रंगेरी मठ की स्थापना की। इसके बाद अंत में उन्होंने पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।

दसनामी संप्रादाय की स्थापना : आदि शकराचार्य ने ही दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। यह दस संप्रदाय निम्न हैं:- 1.गिरि, 2.पर्वत और 3.सागर। इनके ऋषि हैं भ्रगु। 4.पुरी, 5.भारती और 6.सरस्वती। इनके ऋषि हैं शांडिल्य। 7.वन और 8.अरण्य के ऋषि हैं काश्यप। 9.तीर्थ और 10.आश्रम के ऋषि अवगत हैं।

शंकराचार्य के चार शिष्य : 1. पद्मपाद (सनन्दन), 2. हस्तामलक 3. मंडन मिश्र 4. तोटक (तोटकाचार्य)। माना जाता है कि उनके ये शिष्य चारों वर्णों से थे। शंकराचार्य के गुरु दो थे। गौडपादाचार्य के वे प्रशिष्य और गोविंदपादाचार्य के शिष्य कहलाते थे।

ग्रंथ : शंकराचार्य ने सुप्रसिद्ध ब्रह्मसूत्र भाष्य के अतिरिक्त ग्यारह उपनिषदों पर तथा गीता पर भाष्यों की रचनाएं की एवं अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों स्तोत्र-साहित्य का निर्माण कर वैदिक धर्म एवं दर्शन को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए अनेक श्रमण, बौद्ध तथा हिंदू विद्वानों से शास्त्रार्थ कर उन्हें पराजित किया।

महान अद्वैत दर्शन : शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है। आदि शंकराचार्य का स्थान विश्व के महान दार्शनिकों में सर्वोच्च माना जाता है। उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि 'ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया।' आत्मा की गति मोक्ष में है।

राजा सुधनवा के काल में हुए शंकराचार्य : आदि शंकराचार्य के समय जैन राजा सुधनवा थे। उनके शासन काल में उन्होंने वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने उस काल में जैन आचार्यों को शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित किया। राजा सुधनवा ने बाद में वैदिक धर्म अपना लिया था। राजा सुधनवा का ताम्रपत्र आज उपलब्ध है। यह ताम्रपत्र आदि शंकराचार्य की मृत्यु के एक महीने पहले लिख गया था।

 शंकराचार्य के सहपाठी : शंकराचार्य के सहपाठी चित्तसुखाचार्या थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम है बृहतशंकर विजय। हालांकि वह पुस्तक आज उसके मूल रूप में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उसके दो श्लोक है। उस श्लोक में आदि शंकराचार्य के जन्म का उल्लेख मिलता है जिसमें उन्होंने 2631 युधिष्ठिर संवत में आदि शंकराचार्य के जन्म की बात कही है। गुरुरत्न मालिका में उनके देह त्याग का उल्लेख मिलता है।

 समाधी : आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ क्षेत्र में समाधी ले ली थी। उनकी समाधी केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित है। उन्होंने ही केदारनाथ मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया था।

आदि गुरु शंकराचार्य के अनमोल विचार

·         असली अर्थ में भगवान के मंदिर में वही पहुंचता है ,जो धन्यवाद देने जाता हैं, मांगने नहीं।

·         विशेष रूप से शुद्ध किया गया मन ही सबसे अच्छा और बड़ा तीर्थ हैं, इसके अलावा कहीं कोई तीर्थ करने की जरुरत नहीं।

·         हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान है ,जो शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि से बिल्कुल अलग है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरुप है

·         जब मन में सच जानने की जिज्ञासा पैदा हो जाए ,तो दुनिया की चीज़े अर्थहीन लगती हैं।

 

 

 

 
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