गोपाल कृष्ण गोखले भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं प्रसिद्ध समाज सुधारक थे। कृष्ण गोखले जी को वित्तीय मामलों की अपार समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का "ग्लेडस्टोन" कहा जाता है। इनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी ने राजनीति के बारे में उनसे बहुत कुछ सीखा और इसीलिए वह राष्ट्रपिता के राजनीतिक गुरु कहलाए।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में 9 मई 1866 को जन्मे गोखले अपनी शिक्षा दीक्षा के दौरान अत्यंत मेधावी छात्र थे। गोखले का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था और उनके पिता कृष्ण राव पेशे से क्लर्क थे। पढ़ाई में सराहनीय प्रदर्शन के लिए जब उन्हें सरकार की ओर से 20 रुपए की छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हुई तो उन्हें शिक्षकों और सहपाठियों की काफी सराहना मिली।
सार्वजनिक कार्य
न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे के संपर्क में आने से गोपाल कृष्ण सार्वजनिक कार्यों में रुचि लेने लगे। उन दिनों पूना की 'सार्वजनिक सभा' एक प्रमुख राजनीतिक संस्था थी। गोखले ने उसके मंत्री के रूप में कार्य किया। इससे उनके सार्वजनिक कार्यों का विस्तार हुआ। कांग्रेस की स्थापना के बाद वे उस संस्था से जुड़ गए। कांग्रेस का 1905 का बनारस अधिवेशन गोखले की ही अध्यक्षता में हुआ था। उन दिनों देश की राजनीति में दो विचारधाराओं का प्राधान्य था। लोकमान्य तिलक तथा लाला लाजपत राय जैसे नेता गरम विचारों के थे। सवैधानिक रीति से देश को स्वशासन की ओर ले जाने में विश्वास रखने वाले गोखले नरम विचारों के माने जाते थे। आपका क्रांति में नहीं, सुधारों में विश्वास था
राजनीति में प्रवेश
वर्ष 1886 में वह फर्ग्यूसन कालेज में अंग्रेज़ी के प्राध्यापक के रूप में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी में सम्मिलित हुए थे। गोखले जी ने दो बार शादी की थी। गोखले का राजनीति में पहली बार प्रवेश 1888 ई. में इलाहाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में हुआ था। वर्ष 1889 में गोखले प्रसिद्ध समाज सुधारक महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य के रूप में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने। 1896 में वेल्बी कमीशन के समज्ञा गवाही देने के लिए वह इंग्लैण्ड भी गए थे। गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। वह शुरुआत से ही उदारवादी विचारधारों वाले व्यक्ति रहे है। जिस कारण वह भारत का स्वशासन चाहते थे और साम्राज्य वाद का अंत। गोपाल कृष्ण गोखले का ज्ञान क्षेत्र केवल अंग्रेजी और राजनीति तक ही सीमित नहीं था बल्कि वह अर्थशास्त्र और गणित के भी बहुत बड़े ज्ञाता थे। उन्हे वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ थी जिस कारण उन्हे भारत का ‘ग्लेडस्टोन" कहा जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस शुरू से ही गठबंधनी स्वभाव की पार्टी रही है, जिस कारण इसमे नरम दल, गरम दल, वाम पंथी, चरम पंथी और आदि दलो की प्रधानता थी, गोखले भी इन्ही में से एक नरमपंथी के सबसे प्रसिद्ध नेता थे। गोखले जी को वर्ष 1899 में बॉम्बे विधान परिषद के लिए चुना गया था। जिसके बाद वह 20 दिसंबर 1901 को भारत के गवर्नर-जनरल की इम्पीरियल काउंसिल के लिए भी चुने गए थे। वर्ष 1902 में गोखले को ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउन्सिल" का सदस्य चुना गया था। वर्ष 1905 में गोखले जी के उन्न्त उदारवादी विचारो को देखते हुये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उन्हें अपना अध्यक्ष बना दिया था। वर्ष 1905 में गोखले जी ने ब्रिटिश भारत की कुरीतियों को दूर करने के लिए “भारत सेवक समाज” (सरवेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी) की स्थापना की थी। गोपाल कृष्ण गोखले ने भारतीय समाज को जागरूक करने के लिए वर्ष 1911 में एक प्रसिद्ध अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र “द हितवाद” की भी शुरुआत की थी। वर्ष 1915 में महात्मा गांधी अफ्रीका से लौटे तो उनका भारत में मार्ग दर्शन करने का कार्य गोखले जी ने ही किया था, जिस कारण महात्मा गांधी ने गोखले जी को ही अपना गुरु और मार्गदर्शक कहा था।
गोखले उदारवादी होने के साथ-साथ सच्चे राष्ट्रवादी भी थे। वे अंग्रेज़ों के प्रति भक्ति को ही राष्ट्रभक्ति समझते थे। गोखले यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि अंग्रेज़ी साम्राज्य के बाहर भारत कुछ प्रगति कर सकता है। अंग्रेज़ी साम्राज्य को चुनौती देने के दुष्परिणामों की कल्पना करके ही वे अंग्रेज़ी साम्राज्य के भारी समर्थक बन गये। लॉर्ड हार्डिंग से गोखले ने कहा था कि "यदि अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गये, तब उनके पहुँचने से पूर्व भारतीय नेता उनको लौट आने के लिए तार द्वारा आमंत्रित करेंगें।" गरम दल के लोगों ने उन्हें 'दुर्बल हृदय का उदारवादी एवं छिपा हुआ राजद्रोही कहा। उन्होंने 1909 ई. के मार्ले-मिण्टो सुधार के निर्माण में सहयोग किया। 1912-1915 ई. तक गोखले ' भारतीय लोक सेवा आयोग' के अध्यक्ष रहे।
वह जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना। यह बात अलग है कि बाद में जिन्ना देश के बंटवारे का कारण बने और गोखले द्वारा दी गई शिक्षा का पालन नहीं किया।
गोखले पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उन्होंने इस कॉलेज में अध्यापन का कार्य करने के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां भी जारी रखीं।
गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और सर्वेंट्स सोसायटी ऑफ इंडिया के सम्मानित सदस्य भी थे। ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी गोखले की देशभक्ति आध्यात्मिकता पूर्ण थी। भारत भूमि को गुलामी से आजाद कराने के लिए जन्मे इस वीर सपूत का 19 फरवरी 1915 को निधन हो गया।