मंदिर श्रृंखला - देवबलौदा शिव मंदिर | The Voice TV

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मंदिर श्रृंखला - देवबलौदा शिव मंदिर

Date : 15-May-2023

भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के देवबलोदा नामक गाँव की गोद में बसा हुआ है जो राजधानी रायपुर से लगभग 22 किमी दूर स्थित है। रायपुर-दुर्ग महामार्ग पर, भिलाई-3 चरोदा की रेल पटरी के किनारे बसे इस सुन्दर गाँव में स्थित यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी पुरातनता, इतिहास एवं उत्कृष्ट कारीगरी के साथ साथ रहस्यमयी किवदंतियों के लिए भी अत्यंत लोकप्रिय है। अब यह भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग के अंतर्गत एक संरक्षित क्षेत्र भी है।

देवबलोदा शिव मंदिर का इतिहास

भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग द्वारा स्थापित सूचना पटल के अनुसार नागर शैली में निर्मित इस शिव मंदिर का निर्माण 13-14सदी में कलचुरी राजवंश के राजाओं ने करवाया था। इस मंदिर को छमासी मंदिर भी कहते हैं।

देवबलोदा शिव मंदिर से जुड़ी किवदंतियां

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवानिवृत गंगाधर नागदेवे बताते हैं कि मंदिर के बारे में मान्यता यह भी है कि जब शिल्पकार मंदिर को बना रहा था तब वह इतना लीन हो चुका था कि उसे अपने कपड़े तक की होश नहीं थी। दिन रात काम करते-करते वह निर्वस्त्र अवस्था में पहुंच चुका था। उस शिल्पकार के लिए एक दिन पत्नी की जगह बहन भोजन लेकर आई। जब शिल्पी ने अपनी बहन को सामने देखा तो दोनों ही शर्मिंदा हो गए। शिल्पी ने खुद को छुपाने मंदिर के ऊपर से ही कुंड में छलांग लगा दी। बहन ने देखा कि भाई कुंड में कूद गया तो इस गम में उसने भी बगल के तालाब में कूद कर प्राण त्याग दिए। आज भी कुंड और तालाब दोनों मौजूद है, और तालाब का नाम भी करसा तालाब पड़ गया क्योंकि जब वह अपने भाई के लिए भोजन लेकर आई थी, तो भोजन के साथ सिर पर पानी का कलश भी था। तालाब के बीचो बीच कलशनुमा पत्थर आज भी मौजूद है।

छः मासी रात में बने शिव मंदिर है अधूरा

मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी यह भी है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था। उस दौरान छह महीने तक लगातार रात ही थी। इसलिए इसे 6 मासी मंदिर के रूप में जाना जाता है :मासी मंदिर की कहानी यह भी है। छह मासी रात बीत जाने के बाद दिन हो गया। जिसके कारण इसके ऊपर गुंबद के निर्माण को अधूरा छोड़ दिया गया,,, राजा ने इस मंदिर को छह मासी रात में पूर्ण करने की जिम्मेदारी शिल्पकार को दी थी। मंदिर के अंदर करीब तीन फीट नीचे गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग और मंदिर के बाहर बने कुंड को लेकर प्रचलित लोक कथाओं के बीच यह मंदिर अपने आप में खास है। बताया जाता है कि मंदिर को बनाने वाला शिल्पी इसे अधूरा छोड़कर ही चला गया था, इसलिए इसका गुंबद ही नहीं बन पाया। दूसरे कुंए के अंदर एक गुप्त सुरंग है। जो सीधे आरंग में निकलता है। इसी गुप्त सुरंग से शिल्पकार मन्दिर अधूरा छोड़ आरंग पहुंच गया था। आरंग पहुंचने के बाद श्राप वश शिल्पकार पत्थर का हो गया जो आज भी आरंग में देखा जा सकता है।

मंदिर के चारों तरफ अद्भुत की गई है कारीगिरी

इस मंदिर के चारों तरफ अद्भुत कारीगिरी की गई है. मंदिर के चारों तरफ देवी देवताओं के प्रतिबिंब बनाए गए हैं, जिसे देख कर ऐसा लगता है कि 12वीं-13वीं शताब्दी के बीच लोग कैसे रहते थे. भगवान भोलेनाथ त्रिशूल लेकर नाचते हुए, दो बैलों को लड़ते हुए, नृत्य करते हुए न जाने कई ऐसी कलाकृतियां की गई है. इसे देखकर लगता है कि उस समय जब लोग यहां रहते थे यह सब चीज यहां होता होगा.

कभी नहीं सूखता मंदिर परिसर में बने कुंड का पानी

मंदिर प्रांगण के अंदर एक कुंड बना हुआ है. बताया जाता है कि इस कुंड का पानी कभी नहीं सूखता और पानी कहां से आता है इसका स्रोत भी किसी को नहीं पता. ऐसा लोगों की मान्यता है कि कुंड के अंदर एक सुरंग है जो कि छत्तीसगढ़ के आरंग जिले में निकलता है. हालांकि यह सिर्फ मान्यता है इसका अब तक वैज्ञानिक या क्या पुरातात्विक प्रमाण नहीं मिले हैं. कुंड के अंदर कई सालों से बहुत बड़ी-बड़ी मछलियां, कछुआ देखे जा सकते हैं. बताया जाता है कि कुंड के अंदर एक ऐसी मछली है जो सोने की नथनी पहनी हुई है और कई सालों में कभी-कभार ही दिखाई पड़ती है.

मंदिर परिसर में है नाग नागिन का जोड़ा

बताया जाता है कि इस मंदिर प्रांगण में एक नाग-नागिन का जोड़ा भी है जो कई सालों में दिखाई पड़ता है. कई बार तो लोग इन्हें भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग में लिपटे हुए भी देखा गया है. लोगों का मानना है कि आज भी है नाग-नागिन का जोड़ा इस मंदिर में विचरण करते हैं. हालांकि अब तक यह नाग-नागिन के जोड़े से कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.

महाशिवरात्रि में यहाँ लगता है विशाल मेला

हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला भी लगता है. इस मेले को देवबलोदा का मेला भी कहा जाता है. दरअसल, उस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और रात से ही भगवान भोलेनाथ की शिवलिंग की पूजा करने के लिए कतार में खड़े होते हैं. यह मेला 2 दिनों तक चलता है. पूरे गांव में मेला लगने से गांव की रौनक बनी रहती है.

 
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