गुरु ग्रंथ साहिब के प्रणेता: गुरु अर्जन देव | The Voice TV

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गुरु ग्रंथ साहिब के प्रणेता: गुरु अर्जन देव

Date : 23-May-2023

 सिक्खों के पंचम गुरु अर्जन देव, जो यह मानते थे कि हम सब इंसान उसी एक खुदा यानी पिता के बालक हैं और वही हमारा गुरु है। वे फिर कहते हैं कि - ना को बैरी नाहीं बेगाना ,सकल संग हमको बन आई यानी यहां वे विश्व बंधुत्व की बात करते हैं।

गुरु अर्जन देव जी ने अपने जीवन- काल में जो दो महत्वपूर्ण उपहार मानवता को दिए, उसका कोई सानी नहीं । एक है गुरु ग्रंथ साहिब ,जिसमें उनके पूर्व के चार गुरुओं के साथ ही उनकी अपनी वाणी का भी संग्रह है। इसके अलावा तत्कालीन एवं उनसे पूर्व के भक्त कवियों, भाटों की रचनाएं भी शामिल हैं । देश के अलग-अलग हिस्सों एवं जातियों के भक्तों के इस संग्रह में जहां उत्तर प्रदेश से कबीर, रविदास, रामानंद, सैन, भीखन, महाराष्ट्र से नामदेव, त्रिलोचन राजस्थान से धन्ना भगत, अवध से सूरदास तथा बंगाल की धरती से गीत गोविंद के रचयिता जयदेव के भी दो पदों का समावेश है। इसमें उन सभी ऐसे भक्तों, संतों की वाणी है जो सभी मनुष्यों को एक मानते हुए उस एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते थे।

इसी आदि गुरु ग्रंथ साहिब में फिर दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपने पिता नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर की रचनाओं को शामिल किया और फिर उस का वर्तमान स्वरूप बना तथा सिखों को यह आदेश दिया कि गुरु मान्यो ग्रंथ यानी उनके बाद यह ग्रंथ ही जीवन जीने का मकसद भी बनेगा और हमेशा सच्चा पथ प्रदर्शक बना रहेगा ।

हिन्दी के महान साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है- गुरु ग्रंथ साहिब जी में समस्त मानवता के लिए दिव्य सन्देश है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के संकलनकर्ता श्री गुरु अर्जन देव जी ने बाणियों का संग्रह करते हुए किसी विशिष्ट भाषा का प्रयोग न कर, इन्हें भाषावाद से ऊपर रखा।

वैसे तो देश-विदेश के सैंकड़ों विद्वानों ने गुरु ग्रंथ साहिब के सम्बंध में अपने महत्वपूर्ण विचार समय-समय पर व्यक्त किये हैं , लेकिन मैं फ़िलहाल बंगाल की रग-रग में रचे-बसे कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर की एक ख़ास बात का उल्लेख करना चाहूंगा। दरअसल, रवींद्रनाथ ठाकुर अपने पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर के साथ कई बार अमृतसर स्वर्ण मन्दिर जाते थे और गुरुवाणी-कीर्तन सुनकर बेहद प्रभावित थे। उन्होंने जब गुरु नानक देवजी द्वारा जगन्नाथ पुरी में उच्चारित की गई वो आरती सुनी तो इतने अभिभूत हो गये थे कि उन्होंने बाद में बलराज साहनी से भी इसका जिक्र करते हुए कहा था कि राष्ट्र-गीत नहीं,अगर कोई विश्व-गीत हो सकता है तो यही है। वो आरती इस प्रकार है:

गगन में थाल, रवि चंद दीपक बने तारका मंडल जनक मोती

धूप, मलयानलो, पवन चवरो करे, सगल बनराई फुलंत जोती। ...


इसके अलावा उन्होंने जो दूसरा महत्वपूर्ण उपहार दिया वह है अमृतसर में दरबार साहिब जो स्वर्ण मंदिर के नाम से विश्व विख्यात है ,जिसका नींव पत्थर उन्होंने तत्कालीन सूफी संत मियां मीर जी से रखवाया था। इस मंदिर के चारों ओर चार दरवाजे हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि इसमें चारों वर्णों और हर दिशाओं से सभी धर्मों को मानने वालों का प्रवेश अबाध है ।

हम हमेशा देखते हैं कि कोई भी राजसत्ता सत्य और न्याय के रास्ते पर चलने वाले हर उस शख्स की विरोधी हो जाती है, जो कभी उसकी निर्दयी सत्ता को ललकारता है या उसके लिए कभी खतरा बन सकता है। जिस समय गुरु अर्जुन देव गुरु गद्दी पर विराजमान थे, उस समय देश पर मुगलिया सल्तनत के जहांगीर का शासन था। जहांगीर को जब यह लगा कि जनता गुरुजी की मुरीद बन रही है और अत्याचार का विरोध करने का उनमें जज्बा पैदा हो सकता है तो जहांगीर ने गुरु जी को कठोर यातनाएं देकर प्राण दंड देने की सजा सुना दी थी । गुरु अर्जुन देव जी को पांच दिनों तक कठोर यातनाएं दी जाती रहीं और फिर ज्येष्ठ की आग बरसाने वाली भरी दुपहरी में गर्म लोहे के तवे पर बिठा दिया गया, जिसके नीचे तीव्र अग्नि प्रज्वलित कर दी गई । इतना ही नहीं उन पर गर्म रेत भी लगातार डाली जाती रही। लेकिन धन्य है गुरु अर्जुन देव और उनकी प्रभु भक्ति की शक्ति वे अडोल रहते हुए गुरुवाणी का पाठ करते रहे और इस तरह मानवता के लिए उनकी शहादत लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुई, जहां आज गुरुद्वारा डेरा साहिब सुशोभित है ।

दरअसल गुरु ग्रंथ साहिब का संदेश ही है कि सभी उसी एक ईश्वर की संतान हैं और सारे विश्व के कल्याण के लिए हर रोज गुरुद्वारों में अरदास की समाप्ति पर कहा जाता है:

नानक नाम चढ़दी कला,तेरे भाणे सरबत दा भला।

 

 
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