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ऑपरेशन फ्लड के विभिन्न चरणों की बदौलत भारत में पिछले 50 वर्षों के दौरान दुग्ध उत्पादन में वृद्धि

Date : 23-May-2023

भारत में 1950-51 के दौरान दुग्ध उत्पादन में 1.36 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि होती थी, जो कि जनसंख्या वृद्धि दर से बहुत कम थी। इस दौरान देश में दूध की उपलब्धता में 15 प्रतिशत की गिरावट आई  और इस कमी को आयात के जरिए पूरा किया गया। देश में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए 1970 में ऑपरेशन फ्लड को शुरू किया गया था और इसके परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन में तेज वृद्धि हुई। 2005 के बाद से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि नीति आयोग के मुताबिक, देश में 2005 के बाद से दुग्ध उत्पादन के वृद्धि दर में तेजी आई है। विदेशी नस्लों और देशी नस्लों पर जोर देने से दुग्ध उत्पादन में 5.3 फीसदी वार्षिक वृद्धि हुई है। 1990 के दशक के मध्य तक अमेरिका दुग्ध उत्पादन में सभी देशों में शीर्ष पर था। वहीं दूसरी ओर 25 सालों में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादित दूध से 2 गुना से अधिक दूध का उत्पादन कर रहा है। इस तरह पिछले 25 वर्षों में विश्व दुग्ध उत्पादन में, भारत का हिस्सा लगभग दोगुना हो गया है और देश में अब विश्व दूध उत्पादन का करीब एक चौथाई दुग्ध उत्पादन होता है। इसमें डेयरी क्षेत्र में विकास का अहम योगदान है। देश में डेयरी क्षेत्र योगदान, कृषि क्षेत्र में उत्पन्न कुल आय का एक चौथाई हिस्सा रहा है और यह हिस्सा लगातार उभर रहा है।
भारत में श्वेत क्रांति की सफलता भारत के डेयरी विकास में एक नए चरण की शुरुआत भारत के डेयरी विकास में नए चरण की शुरुआत होने से पहले ही विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनकर उभरा है। एफएओ के अनुसार, भारतीय गाय की दूध की उपज विश्व औसत का केवल दो तिहाई है। यह विकसित देशों में दूध की उपज की तुलना में बहुत कम है। दुनिया में प्रति गाय औसत दूध उत्पादन 7.2 किलोग्राम है और भारत का औसत 4.87 किलोग्राम है। भले ही भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है लेकिन दूध की उपज अभी भी काफी कम है। भारत सरकार के अनुमान औसत देश में प्रतिदिन गायों के लिए 5.15 किग्रा और भैंसों के लिए 5.9 किग्रा दूध का उत्पादन होता है।
भविष्य में दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि करने पर जोर भारत में श्वेत क्रांति की सफलता में योगदान देने वाले प्रमुख कारक हैं। इनमें विशेष रूप से दुग्ध प्रसंस्करण में निवेश, गायों में कृत्रिम गर्भाधान और दुग्ध विपणन शामिल है। पिछले 50 वर्षों के दौरान दुग्ध उत्पादन में अधिकांश वृद्धि का कारण, भारत में मादा गोजातीय की संख्या 1972 में 122.7 मिलियन थी जो कि 2019 में बढ़कर 246.7 मिलियन हो गई है। इसके अलावा पिछले 20 वर्षों में दूध के सेवन से देश के पोषण स्तर में भी अधिक सुधार हुआ है।
डेयरी क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों एक तरफ जहां डेयरी क्षेत्र की सफलता है वहीं डेयरी क्षेत्र को कुछ अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल देश में दुधारू पशुओं की कम उत्पादकता, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि शामिल है। इन चुनौतियों के बावजूद देश के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई है। फिलहाल देश में डेयरी निर्यात, एपीडा द्वारा रिपोर्ट किए गए भारत के कृषि निर्यात का केवल 2.6 प्रतिशत है। जो कि फसल के मूल्य में दूध उत्पादन के 24% हिस्से से बहुत कम है।
पिछली सदी के सत्तर के दशक में ऑपरेशन फ्लड शुरू होने के बाद भारत के डेयरी उद्योग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसके पहले तक भारत में जनसंख्या के अनुपात में दुग्ध उत्पादन पर्याप्त नहीं था। इसकी वजह से 1955-56 में देश में प्रति व्यक्ति सिर्फ 110 ग्राम ही था, जो 1973-74 में यह घटकर महज 110 ग्राम ही रह गया। इसकी वजह से 1960 के दशक के मध्य तक हरित क्रांति आने के बावजूद दुग्ध उत्पादन और दूध की उपलब्धता में भारी कमी थी।
भारत में 1950-51 के दौरान दुग्ध उत्पादन की वृद्धि दर महज 1.36 प्रतिशत प्रति वर्ष थी, जो जनसंख्या की वृद्धि दर की तुलना में बेहद कम थी। इस दौरान दूध की उपलब्धता में 15 प्रतिशत की गिरावट आई, जिसकी कमी को आयात से पूरा किया गया। देश में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए 1970 में ऑपरेशन फ्लड को शुरू किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादन में तेज वृद्धि हुई।

2005 के बाद से दुग्ध उत्पादन में वृद्धि
नीति आयोग के मुताबिक, देश में 2005 के बाद से दुग्ध उत्पादन की वृद्धि दर में तेजी आई है। विदेशी नस्लों और देशी नस्लों पर जोर देने से दुग्ध उत्पादन में 5.3 फीसदी वार्षिक वृद्धि हुई है। 1990 के दशक के मध्य तक दुग्ध उत्पादन में अमेरिका दुनिया में शीर्ष पर था। लेकिन बाद के 25 सालों में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका से दोगुना से अधिक दुग्ध उत्पादन कर रहा है। इस तरह पिछले 25 वर्षों में दुग्ध उत्पादन की दुनिया में, भारत की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गयी है। अब भारत विश्व दूध उत्पादन का करीब एक चौथाई दुग्ध उत्पादन कर रहा है। देश के कृषि क्षेत्र की कुल आय में डेयरी का योगदान करीब चौथाई रहा है, जिसमें अब बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।

भारत में श्वेत क्रांति की सफलता
भारत में श्वेत क्रांति की सफलता में योगदान देने में जिन कारकों की बड़ी भूमिका है, उनमें विशेष रूप से दुग्ध प्रसंस्करण में निवेश, गायों का कृत्रिम गर्भाधान और दुग्ध विपणन शामिल है। 50 वर्षों के दौरान दुग्ध उत्पादन की अधिकतर बढ़त का कारण, भारत में गाय-भैंसों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़त भी रही है। साल 1972 में जहां इनकी संख्या 12 करोड़ 27 लाख थी, जो 2019 में बढ़कर दो गुने से भी ज्यादा यानी 24 करोड़ 67 लाख से ज्यादा हो गई है। दुग्ध उत्पादन और उसकी उपलब्धता बढ़ने से पिछले 20 वर्षों में से देश का पोषण स्तर भी सुधरा है।

डेयरी विकास में नए चरण की शुरुआत
भारत के डेयरी विकास में नए चरण की शुरुआत होने से पहले ही विश्व में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनकर उभरा है। एफएओ के अनुसार, तुलनात्मक रूप से भारतीय गाय कई देशों की गायों की तुलना में सिर्फ दो तिहाई दूध ही देती है। दुनिया में प्रति गाय औसत दूध उत्पादन 7.2 किलोग्राम है, जबकि भारत का औसत 4.87 किलोग्राम है। भले ही भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है लेकिन दूध की उपज अभी भी काफी कम है। भारत सरकार के अनुमान के अनुसार औसतन देश में प्रतिदिन एक गाय औसतन 5.15 किग्रा और भैंस औसतन 5.9 किग्रा ही दूध देती है।

दुग्ध उत्पादकता में वृद्धि करने पर जोर
भारत के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के लिए पशु नस्लों की गुणवत्ता और उन्नत प्रजनन पद्धतियों की आवश्यकता है। जैसे एआई, बेहतर भोजन, और पशुओं का बेहतर रखरखाव और स्वास्थ्य देखभाल जरुरी है। ऑपरेशन फ्लड के विभिन्न चरणों की बदौलत भारत अब अधिक दूध का उत्पादन कर रहा है। देश में अब अनुशंसित आहार प्रति व्यक्ति प्रति दिन 377 ग्राम से अधिक है। भले ही भारत दुनिया का एक चौथाई दूध उत्पादित करता है, लेकिन दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में उभरा है, लेकिन डेयरी उत्पादों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। वर्ष 2021 में दुनियाभर में करीब 63 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जिसमें भारत की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से ही कम यानी 0.62 प्रतिशत ही था, जो करीब 39 करोड़ 20 लाख डॉलर था। देश ने अगले 25 साल, यानी अमृत काल के दौरान, डेयरी उद्योग का सबसे बड़ा निर्यातक बनने का लक्ष्य रखा है।

डेयरी क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियों
डेयरी क्षेत्र को कुछ अहम चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल देश में दुधारू पशुओं की कम उत्पादकता, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि शामिल है। इन चुनैतियों के बावजूद देश के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई है। फिलहाल देश में डेयरी निर्यात, एपीडा द्वारा रिपोर्ट किए गए भारत के कृषि निर्यात का केवल 2.6 प्रतिशत है। जो फसल के मूल्य में दूध उत्पादन के 24% हिस्से से बहुत कम है।

 
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