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सभी एकादशी में सर्वश्रेष्ठ है - निर्जला एकादशी

Date : 27-May-2023

 सभी एकादशियों में ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को श्रेष्ठ और कठिन माना गया है. इसे भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.इस वर्ष निर्जला एकदशी 31 मई को मनाया जायेगा.   

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है. एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा को समर्पित है. पूरे साल में कुल 24 और अधिकमास होने पर 26 एकादशी पड़ती है. इन सभी एकादशियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और सभी का अपना विशेष महत्व होता है. इनमें एक एकादशी ऐसी होती है, जिसे श्रेष्ठ और कठिन व्रतों में एक माना गया है. इसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है.

निर्जला एकादशी को भीम एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. मान्यता है कि ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी 24 एकादशी व्रत के पुण्यफल के समान ही पुण्य प्राप्त होता है. अगर आप सभी एकादशी का व्रत रखने में सक्षम नहीं है तो केवल निर्जला एकादशी का व्रत भी रख सकते हैं. इससे भी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है

निर्जला एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें. सबसे पहले पूजाघर में घी का दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की पूजा के लिए सबसे पहले गंगाजल से अभिषेक करें. फिर चंदन और हल्दी से तिलक करें. अब फूल, पीले वस्त्र, पीला जनेऊ, अक्षत, नैवेद्य, तुलसीदल आदि अर्पित करें और सात्विक चीजों का भोग लगाएं. धूप-दीप जलाकर निर्जला एकादशी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें. इसके बाद आखिर में आरती करें. इस बात का ध्यान रखें कि भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी की पूजा भी जरूर करें और इस दिन अन्न-जल दोनों का त्याग करें.

निर्जला एकादशी की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में एक बार पांडव पुत्र महाबली भीम के महल में वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी आए हुए थे. भीम ने देवव्यास जी से पूछा- “हे मुनिश्रेष्ठ! आप तो सर्वज्ञ हैं और सबकुछ जानते हैं कि मेरे परिवार में युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुंती, द्रोपदी सभी एकादशी का व्रत रखते हैं और मुझे भी व्रत रखने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं हर महीने एकादशी का व्रत रखने में असमर्थ हूं क्योंकि मुझे अत्यधित भूख लगती है. इसलिये आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मुझे एकादशी के व्रत के समान फल की प्राप्ति हो”

वेदव्यास जी ने कहा- स्वर्गलोक की प्राप्ति और नरक से मुक्ति के लिए एकादशी का व्रत जरूर रखना चाहिए।

व्यास जी की बातों को सुनकर भीमसेन बोल उठे, हे महाबुद्धिमान पितामह मेरे सभी भाई द्रौपदी सहित एकादशी का व्रत करते हैं। लेकिन मेरे पेट में भूख नामक अग्नि हमेशा जलती रहती है जिससे मैं भूखा नहीं रह सकता है। जब तक मैं जी भरकर भोजन ना कर लूं यह अग्नि शांत नहीं होती। इस पर व्यास जी ने कहा कि अगर तुम्हें स्वर्ग की अभिलाषा है तो तुम्हें एकादशी का व्रत करना ही चाहिए। भीम के ऐसा कहने पर व्यास जी ने कहा कि फिर तुम पूरे साल की एकादशी का फल देने वाली निर्जला एकादशी का व्रत जरूर करो। इसलिए इस एकदशी को भीमसन एकादशी व्रत भी कहा जाता है 

व्यास जी ने कहा कि भगवान विष्णु ने कहा है जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत का नियम पूर्वक पालन करता है वह करोड़ों स्वर्ण मुद्रा दान करने का पुण्य प्राप्त कर लेता है। इस एकादशी के दिन किए गए जप, तप, दान का पुण्य अक्षय होता है। यानी वह अनेक जन्मों तक लाभ देता है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करते हैं उनके सामने मृत्यु के सामने यम के दूत नहीं आते बल्कि भगवान विष्णु के दूत जो पीतांबर धारण किए होते हैं। वह विमान में बैठाकर अपने साथ ले जाते हैं। पद्म पुराण में कहा गया है कि निर्जला एकादशी व्रत की कथा को कहने और सुनने से भी ग्रहण के दौरान किए गए दान के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है।

 
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