" मिट्टी के घड़े " | The Voice TV

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तुम खुद अपने भाग्य के निर्माता हो - स्वामी विवेकानंद

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" मिट्टी के घड़े "

Date : 01-Jun-2023

वैशाख  की पूर्णिमा पर मिट्टी का  नया घड़ा  घर में लाना  शुभ ,  शुचिता युक्त नव्य जीवन का आरंभ होता है ।  

नये  मृदभांड  के  शीतल जल की कल्पना ‌मात्र  से आनंदित होकर कुम्हार टोला की ओर प्रस्थान किया। 
प्रजापतियों ने अँदर से घड़े ला ला कर  ओसारे में सजाना आरंभ कर दिया था । दूर तक मिटटी से बने मृदभांड - सुराही, घड़े , दीपक , खिलौनों की दुनिया सी बस गई थी।  मिट्टी के घड़े एक तरफ जमाये गए थे।
नये घड़े हैं ये , चमक रहे हैं।
मानव देह रूपी घड़े  भी प्रजापति के चाक पर चढ़े ही रहते हैं -जन्म दर जन्म...। कुम्हार का चाक भी अनवरत घूमता ही रहता है। 
दोनों घड़ों में कितना साम्य है । दोनों ही कूढ़ मगज हैं , यदि चाह लें ठस ही नहीं सकता कुछ भी मिजाज में ।

मिट्टी का घड़ा जिद्दी इतना कि ओंधा रखा हो तो  ,पूरा मानसून गरज-तरज कर चला जाए और मेघ जल से रिक्त होकर श्वेत पड़ जाएँ  तब भी घड़े  में  एक बूंद पानी नहीं मिलेगा और  कच्चा इतना कि  हल्की सी ठोकर से भी टुकड़े- टुकड़े हो जाए , आदमी भी ऐसा ही स्वभाव रखता है।

कुम्हारन लाल-सुनहरे रंगों से रंगे घड़ों को सँभाल कर एक के ऊपर एक  जमा रही है।  उन घड़ों के मजमे में  छन छन करती  और चाँदी की करधन से झुक -झुक जाती कुम्हारन  खुद एक नया चमचमाता घड़ा ही तो है।
 
ये  नये घड़े हैं , चमक रहे हैं ,जैसे आपस में बतरस का आनंद ले रहे हों।
 
यदि यूँ ही रखें  रह जाएं और सौ वर्ष  निकल जाएं तो ?  हजार वर्ष निकल जाएँ  तो....? तब भी धूल-धूप और हवाओं से रंग बदल जाएगा पर रहेंगे   यूँ ही जस के तस..जैसे  पुरातत्व की खुदाई से हड़प्पा कालीन घड़े रखे हुए मिले हैं।
इनकी अभिव्यक्ति की सामर्थ्य असीमित है। इतना बोलते हैं ये कि  पूरी जीवन- यात्रा का आँखों देखा और इतिहास सब सुना देते हैं, विज्ञान  सिद्ध करता रह जाता है। 
हँसते हैं , आश्चर्य करते हैं, आह भरते हैं और इतना बोलते हैं कि मुँह खुला का खुला रह जाता है-- हाँ सच है, हरियाणा की राखीगढ़ी में हड़प्पा कालीन खुदाई में जो प्रेमी-युगल का जोड़ा ---कंकाल मिला उसके आसपास भी यही मिट्टी के घड़े ओंधे सीधे साथ निभाते मिले । प्रेमी ने अपना चेहरा  अंतिम सांस तक  संगिनी की ओर रखा है । मिट्टी के घड़े गवाह हैं तब भी प्रेम ही अंतिम सत्य शिव और सुंदर  था।

शिशु का जन्म होता है तो नया घड़ा पानी भर कर रखा जाता है और चिता की परिक्रमा भी घड़े में पानी भर कर की जाती है ।
जन्म से मृत्यु तक आजीवन मिट्टी के घड़े का साथ इसीलिए तो है कि वो तन और मन से भी हमसे मिलते जुलते हैं। 

संसार में पहले घड़े का जन्म कब हुआ होगा ?
 
लेखिका -शशि खरे 

 

 
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