अंबिकापुर, 20 नवंबर। जनजातीय गौरव दिवस 2025 के अवसर पर छत्तीसगढ़ के जिला सरगुजा मुख्यालय के अंबिकापुर का पीजी कॉलेज मैदान गुरुवार को ऐतिहासिक क्षणों का साक्षी बना, जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जनजातीय परंपराओं, वीरों नमन किया और समाज प्रमुखों को
सम्मानित किया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि राष्ट्रपति मुर्मु ने कार्यक्रम में जनजातीय समाज प्रमुखों, पीवीटीजी समुदायों, स्वतंत्रता संग्राम के जननायकों के परिजनों और समाज उत्थान में योगदान देने वाले लोगों से भेंट कर उनका सम्मान किया। उन्होंने सोनाखान के जननायक शहीद वीर नारायण सिंह,
परलकोट क्रांति के शहीद गेंदसिंह, झंडा सत्याग्रह के सुकदेव पातर, भूमकाल क्रांति के जननायक बन्टू धुरवा, जंगल सत्याग्रह के शहीद रामधीन गोंड़ जैसे वीरों के परिजनों से मुलाकात कर उनका मनोबल बढ़ाया।
कार्यक्रम का सबसे भावुक क्षण तब आया जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पण्डो जनजाति के 81 वर्षीय बसन्त पण्डो से मुलाकात की। उन्होंने बिरहोर, अबुझमाड़िया, बैगा, पहाड़ी कोरवा, उरांव, नगेशिया, खैरवार, कंवर, नागवंशी, मुरिया, गोंड़, चेरवा सहित विभिन्न जनजातियों के प्रतिनिधियों से सौजन्य भेंट की। उन्होंने सभी का हाल-चाल पूछा और समूह चित्र के माध्यम से इस ऐतिहासिक पल को संजोया।
राष्ट्रपति ने 81 वर्षीय बसन्त पण्डो से मुलाकात की और प्रेमपूर्वक उनका हाल-चाल जाना और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। इस मुलाकात के दौरान बसन्त पण्डो ने एक ऐतिहासिक प्रसंग साझा किया। उन्होंने बताया कि वर्ष 1952 में जब भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद अंबिकापुर आए थे, तब वे मात्र आठ वर्ष के थे। उसी दौरान डॉ. प्रसाद ने उन्हें गोद लिया और उनका नामकरण किया था। इसी घटना के बाद पण्डो जनजाति को ‘राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र’ कहलाने का गौरव प्राप्त हुआ। राष्ट्रपति मुर्मु ने बसन्त पण्डो को कहा कि आप मेरे भी पुत्र की तरह हैं।
कार्यक्रम में राज्यपाल रमेन डेका, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सहित केंद्रीय व राज्य मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों की बड़ी उपस्थिति रही, लेकिन सबसे अधिक ध्यान खींचा पण्डो जनजाति के बसन्त पण्डो ने, जिनसे राष्ट्रपति मुर्मु की भावनात्मक मुलाक़ात कार्यक्रम की विशेष पहचान बन गई।
