कश्मीर के हिन्दू राजाओं में ललितादित्य, अवन्तिवर्मन जैसे अनेक राजा हुए हैं, जिनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण, उत्तर-पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। साहित्यकारों और संस्कृत आचार्यों की लंबी परंपरा यहां देखने को मिलती है । प्रसिद्ध वैयाकरणिक रम्मत, मुक्तकण, शिवस्वामिन और कवि आनंदवर्धन, रत्नाकर, भीम भट्ट, दामोदर गुप्त, क्षीर स्वामी, रत्नाकर, वल्लभ देव, मम्मट, क्षेमेन्द्र, सोमदेव, मिल्हण, जयद्रथ हों या कल्हण जैसे संस्कृत के अपार विद्वानों की एक लम्बी परम्परा भारत को इसी कश्मीर की देन है । कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की एक सांस्कृतिक, भौगोलिक और अति प्राचीन हिन्दू विरासत है, जिसे कि आगे नष्ट करने के अनेक प्रयास हुए।
इसके साथ ही कहना होगा कि बीच में कई मुस्लिम शासकों के बाद भी महाराजा रणबीर सिंह, राजा रंजीत देव, डोगरा शासक राजा मालदेव से लेकर यहां के अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह 1925 से 1947 तक का हिन्दू साम्राज्य देखने को मिला। लेकिन इसके बाद भी यहां बसे हिन्दुओं पर इस्लाम का अत्याचार अभी भी बीच-बीच में उभर कर सामने आ ही रहा था । स्वतंत्र भारत में जम्मू-कश्मीर से बहु संख्या में हिन्दुओं विशेषकर पंडितों का पलायन, उन पर हुए क्रूर अत्याचार से इतिहास भरा पड़ा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा यहां से धारा 370 हटाने तक की स्थिति में जो कुछ भी हुआ है, उसके अनेक दस्तावेज आज पब्लिक डोमेन में मौजूद हैं।
फिर भी कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर की शताब्दियों तक की कहानी यही कहती है कि अनेक संघर्षों और इतिहास से पूरी तरह से हिन्दू सांस्कृतिक शब्दावली एवं परम्परा मिटाने के सदियों चले आतातायी प्रयासों के बाद भी हर बार यही देखने में आया कि हिन्दू सनातन संस्कृति यहां भस्म में से भी पुन:-पुन: उठ खड़ी हुई है । जिस पर कि अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट ने एक नई मुहर लगा दी है। वस्तुत: कश्मीरी हिंदुओं की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए न्यायालय ने प्रशासन को अतिक्रमण और भू-माफिया से यहां के सभी मंदिरों और तीर्थस्थलों की रक्षा करने का आदेश दिया है। इस निर्णय का उद्देश्य इन पवित्र स्थलों को संरक्षित करना है, जो 1990 के दशक में कश्मीरी पंडित समुदाय के पलायन के बाद से असुरक्षित हैं।
न्यायालय में विरासत संरक्षण के लिए एक मार्मिक लड़ाई देखी गई। न्यायालय ने आज जम्मू-कश्मीर प्रवासी अचल संपत्ति (संरक्षण, सुरक्षा और संकट बिक्री पर रोक) अधिनियम 1997 के तहत आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है। दरअसल, इस मामले में याचिका कर्ता कश्मीरी पंडितों ने तीर्थ स्थलों की स्थिति के बारे में चिंता व्यक्त की थी। जवाब में, उच्च न्यायालय ने इन ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा के लिए राज्य की जिम्मेदारी पर जोर दिया। यहां तक कि हिंदू श्मशान घाट पर अतिक्रमण पर भी न्यायालय ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है और हर अतिक्रमण को हटाने का निर्देश दिया है।
इस संबंध में सामने आए एक डेटा के अनुसार, कश्मीरी पंडितों के लगभग 900 परिवार वर्तमान में कश्मीर में रहते हैं । यहां 3000 के करीब मंदिर, तीर्थ स्थल, 600 श्मशान घाट और लगभग इतने ही पवित्र झरने हैं, जिनमें से 105 का रखरखाव ठीक से किया जाता है और बाकी पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। ऐसे में अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख के हाई कोर्ट से आए हिन्दू पक्ष के निर्णय के बाद यहां उम्मीद की गहरी आस जाग उठी है । सिर्फ जम्मू-कश्मीर में निवासरत हिन्दुओं को ही नहीं, देश के प्रत्येक हिन्दू को लगता है कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर में मंदिरों की पुनर्प्रतिष्ठा का नया दौर देखने को मिलेगा।
लेखक:- डॉ. मयंक चतुर्वेदी