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संघ के प्रथम व द्वितीय सर संचालक के रेत बने चित्र मौन रहकर भी दे रहे हैं चरित्र से व्यक्ति निर्माण का संदेश

Date : 28-Nov-2025

देहरादून, 28 नवंबर । महाभारत काल में आचार्य द्रोण की शैक्षिक राजधानी रही द्रोणनगरी देहरादून में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का 71वां राष्ट्रीय अधिवेशन भारत के शैक्षिक विकास की गाथा ही नहीं लिख रहा है बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सौ वर्ष की कहानी को भी बयां कर रहा है। आरएसएस के शताब्दी वर्ष में पंच परिवर्तन को लेकर पूरे देश में अलख जगाई जा रही है। अभाविप के अधिवेशन में रेत से संघ के प्रथम सर संघचालक डॉ हेडगेवार व द्वितीय सर संघचालक गुरुजी का चित्र उकेरे गए हैं। यह चित्र भले ही मौन हैं, लेकिन मौन रहकर भी आरएसएस की सौ साल की यात्रा कहानी बयां रहे हैं।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू हो चुका है। भगवान बिरसा मुंडा नगर के मुख्य सभागार के मंच के ठीक सामने आएसएस के प्रथम सर संघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और द्वितीय सर संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर के रेत से सुंदर और आकर्षक चित्र उकेरे गए हैं। रेत में अद्भूत कलाकारी देखते ही बनती है। राष्ट्रीय कला मंच ने यह चित्र तैयार किए हैं। इन्हें देखने के लिए छात्र-छात्राओं की भीड़ उमड़ रही है और जिन्हें पता नहीं है वे पूछ रहे हैं कि ये किनके चित्र है। जानकार विद्यार्थी इसकी उन्हें पूरी जानकारी दे रहे हैं।

परतंत्र भारत में राष्ट्र की आत्मा और मूल संस्कृति का अंग्रेजों के साथ ही अन्य विचार धाराओं ने शोषण किया, इसे नष्ट करने के भरसक प्रयास किए। इसके भयावह परिणामों की चिंता से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उदय हुआ। संस्कृति और राष्ट्र के पुनर्निर्माण के उद्देश्य के साथ डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार ने 1925 में संघ की स्थापना की और यह यात्रा आज 100 वर्ष पूर्ण कर चुकी है।

अधिवेशन में संघ की यात्रा का भी वृतांत छुपा हुआ है। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी यहां छात्रों का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। संघ ‘चरित्र निर्माण से व्यक्ति निर्माण’ के सिद्धांत पर आगे बढ़ता है। शाखाओं के माध्यम से देशभक्त और समर्पित युवाओं के निर्माण का कार्य शुरू हुआ। सौ साल की यात्रा में संघ परिवार ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र, शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शताब्दी वर्ष में केवल अपनी यात्रा का उत्सव नहीं मना रहा, बल्कि भारत के पुनर्निर्माण की दिशा में एक विचार-यात्रा प्रारंभ कर रहा है।

इस यात्रा का केंद्र है पंच परिवर्तन, एक ऐसी रूपरेखा जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र तीनों स्तरों पर सकारात्मक परिवर्तन की मांग करती है। पंच परिवर्तन-सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व आधारित जीवन शैली और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक निर्माण भारतीय समाज के नवजागरण की आधारशिला के रूप में उभरते हैं। अधिवेशन में यह चित्र न सिर्फ प्रेरणा दे रहे हैं बल्कि समाज का पाथेय बनकर भी मार्ग दर्शन कर रहे हैं।

 
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