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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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शिक्षाप्रद कहानी:- सत्संग का लाभ

Date : 07-Sep-2024

राजगृह नगर में रौहिनेय नाम का एक चोर रहता था | उसके पिता ने मरते समय उसे उपदेश देते हुए कहा – “यदि तुम्हें अपने व्यवसाय में सफल होना हैं तो कहीं कथा- कीर्तन और साधुओं के उपदेश में मत जाना, ऐसे स्थान पर यदि जाना ही पड़ जाये, तो अपने कान बंद रखना |”

संयोग की बात है कि एक बार रौहिनेय किसी काम से एक मार्ग से जा रहा था | उसने देखा कि मार्ग में बहुत से लोग एकत्रित खड़े हैं | समीप पहुँचने पर विदित हुआ कि श्रमण महावीर स्वामी उपदेश कर रहे हैं |

रौहिनेय ने चौंक कर अपने दोनों कानों में अंगुलियाँ डाल लीं |

किन्तु उसी समय उसके पैर में कांटा चुभ गया | विवश होकर एक हाथ से उसने काँटा निकालने का यत्न किया और दूसरे हाथ से एक कान को बंद किये हुए ही रखा | जितने समय में उसका  काँटा किसी प्रकार निकला, उतने समय में तीर्थकर के उपदेश का यह अंश उसके कान में पहुँच गया- “देवताओं के शरीर की छाया नहीं पड़ती और उनके चरण पृथ्वी का स्पर्श न करके चार अंगुल ऊपर ही रहते हैं |”

रौहिनेय उस स्थान से यथाशीघ्र दूर निकल गया | अपना चोरी का काम करता रहा और एक दिन वह चोरी के अपराध में बंदी बना लिया गया | राजकर्मचारी उसके विषय में जान गए थे | और बहुत दिनों से उसकी खोज हो रही थी, किन्तु उसको पकड़ लेने पर भी यह रौहिनेय ही है या कोई अन्य व्यक्ति, यह निश्चय करना सरल कार्य नहीं था | रौहिनेय को उनमें से कोई पहचानता नहीं था और उसे मारने-पीटने तथा अनन्य प्रकार से प्रताड़ित करने पर भी रौहिनेय अपना परिचय नहीं दे रहा था |

अन्य कोई उपाय न देखकर राजकर्मचारियों ने उस चोर को कोई ऐसी औषधि दे दी, जिससे वह मूर्छित हो गया | मूर्छित दशा में ही उसे वे लोग एक सुसज्जित उपवन में रख आये |

जब रौहिनेय की मूर्छा दूर हुई तो वह अपने चारों ओर का दृश्य देखकर आश्चर्य करने लगा | उस उपवन में मणि जटित मंडप थे | अद्भुत वृक्ष थे और बहुमूल्य वस्त्राभरणों से स्त्रियाँ वहां गाती बाजती और नाचती दिखाई दीं | उन युवती स्त्रियों ने उस चोर को नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “देव: कितने सौभाग्य की बात है कि आप स्वर्ग पधारे | कृपा करके आप बतलाएं कि मृत्युलोक में कहाँ, किस नाम से जाने जाते थे? आप तो जानते ही हैं कि देवलोक में छल करना या झूठ बोलना वर्जित है | यहां असत्य का आश्रय लेने वाला तत्काल नीचे गिरा दिया जाता है |”

“मैं स्वर्ग आ गया हूँ ? ये स्वर्ग कि देवियाँ हैं ?” यह जानकर रौहिनेय चौंका | वह अपना परिचय देने ही वाला था कि उसे उस दिन के तीर्थकर के मुख से सुने हुए वचनों का स्मरण हो आया | वह देख रहा था कि उन स्त्रियों के शरीर की छाया पड़ रही थी और वे भूमि पर ही खड़ी थीं | उसने स्पष्ट कहा- “ राजकर्मचारियों से कह दे कि मैं ही रौहिनेय हूँ | किन्तु उनसे यह भी कह देना कि जिनके एक वाक्य सुनने से मुझे इतना लाभ हुआ है, अब मैं उन तीर्थकर के चरणों में ही अपना जीवन अर्पित कर देना चाहता हूँ |” रौहिनेय के विचारों का राजा ने सम्मान किया | उसे क्षमा मिल गयी और उस चोर ने चोरी छोड़कर दीक्षा ग्रहण कर ली |

 
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