वर्तमान भारत में मूल्य आधारित शिक्षा का उद्देश्य एवं प्रभाव
Date : 07-Oct-2024
भारतीय संस्कृति मूल्य प्रधान संस्कृति है। मूल्यों की शास्वत्ता के कारण भारतीय संस्कृति कालजई, सनातन ,वैश्विक संस्कृति कहलाई है । मूल्य, आध्यात्मिकता के कारण इस आर्य संस्कृति से प्राचीन काल में सारा विश्व सरावोर -आप्लावित रहा है। इन्हीं मानवीय मूल्यों के कारण भारतीय संस्कृति को 'आर्य' संस्कृति के नाम से भी विश्व ने पुकारा था। भारतीय संस्कृति ऋषि प्राणीत देव संस्कृति है। इसमें दैवीय (दिव्य) तत्व है। भारतीय संस्कृति ज्ञानमयी ,त्यागमयी ,योगमयी संस्कृति है। इसके कण -कण में दिव्यत्व, सनातन मूल्य भरे हुए हैं। इसीलिए इसे पारस- अमृत- कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई । मनुस्मृति में मनु महाराज दस गुणौ की चर्चा करते हैं एवं इन्हें धारण करने वाला ही धार्मिक ,मानव ,भारतीय -हिंदू कहलाने का अधिकारी है -
संपूर्ण विश्व भारत की एक झलक पाने के लिए ललायित रहता था। भारतीय संस्कृति सर्वसमावेशी ,समन्वयवादी, आध्यात्मिक संस्कृति है । इसमें वैश्विक मूल्य/ Global thought "वसुधैव कुटुंबकम" , तेन त्यक्तेन भुंजिथा,सर्वे भवंतु सुखिन:- सर्वे संतु निरामया -सर्वे भद्राणि पश्यंतु , अतिथि देवो भव ,मातृवत पर्दारेषु -पर दृव्देषू लोस्टवत, सियाराम मय सब जग जानी , ईशावास्य मिद्ं सर्वम् ,हरि व्यापक सर्वत्र समाना जैसे दिव्य विचार, गुण, तत्व ,मूल्य समाहित हैं।
भारत का विचार विराट है ,दिव्य है, वैश्विक Global है। इसमें संकुचन का लेस मात्र भी स्थान नहीं है। यहां विविधता के साथ समन्वय व सम्मान है। यहां विविधता के बाद भी एक आंतरिक एकता Internal Iintegration है। तभी तो यहां अनेक प्रकार के त्यौहार, उत्सव, पर्व ,वेश-भूषा, भोजन ,पकवान, फल ,फसलें ,अनाज, परंपराएं ,प्रथाएं ,भाषाएं, बोलियां ,कहावतें, रंग -रूप ,रीति- रिवाज ,पन्थ हैं। किंतु एक तत्व धर्म व ईश्वर विश्वास अर्थात संस्कृति- संस्कार सबको एक सूत्र में बांधे हुए हैं । सब की तत्व दृष्टि एक है, जो कण -कण में एक ही तत्व परमात्मा 'राम' का साक्षात्कार करती है। उसका मानना है की संपूर्ण चराचर में एक ही ब्रह्म/ दिव्य चेतना Divine energy व्याप्त है। दूसरा तो जगत में कुछ है ही नहीं ।
भारत वासियों के आदर्श प्रभु श्रीराम हैं, जो शबरी (भीलनी) की कुटिया में जाकर माता सवारी के झूठे बेर खाते हैं । उसे दिव्य ज्ञान नवधा भक्ति देते हैं। निषाद राज को गले लगाते, केवट की नाव चढ़ते हैं, अहिल्या को तारते हैं। मांस खाने वाले जटायु (गिद्धराज ) को गोदी में लेकर रोते हैं व उनका अंतिम संस्कार -तर्पण करते हैं । राम एक आदर्श राजा ,पुत्र, पति, भाई, नायक की भूमिका अदा करते हैं । इसीलिए प्रत्येक भारतवासी गांव से लेकर नगर तक, प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयन तक राम-राम ही बोलते, जपते, कार्य- व्यवहार में सुनाई ,दिखाई देता है। राम यहां कण -कण में प्रत्येक कार्य व्यवहार में समाए हुए हैं । जिन भारतीयों का आदर्श ही श्रीराम है तो इनका आचरण,लक्ष्य तो श्रेष्ठ होना ही था न। क्योंकि राम भारत की मिट्टी के कण -कण में समाए हुए हैं। राम हमारी आत्मा, मन, प्राण में बसते हैं। भारत का आदर्श ही राम है, भारत का मंत्र ही राम है। श्रेष्ठ राज्य का आदर्श मॉडल भी "राम राज्य" Good governance हैं, फिर ऐसा भारत श्रेष्ठ क्यों न हो।
वर्तमान भारत की तस्वीर देखकर बड़ा दुख होता है। जिस भारत में राम-कृष्ण जैसे महापुरुष पैदा हुए हो, वहां पर समाज में नैतिक मूल्यों का पतन देखकर बड़ा ही दुख होता है। यह कैसी विडंबना है ,यह कैसी घड़ी आन पड़ी है। दुनिया का इससे बड़ा आश्चर्य कोई और नहीं हो सकता की -उस प्राचीन गौरवशाली अतीत वाले राष्ट्र भारत में समाज व शिक्षा में नैतिक मूल्यों का इतना हास- गिरावट हो गई है। कलि का प्रभाव व विगत 2000 वर्षों के आक्रमणों ने भारतीय समाज में जड़ता, अंधकार, तमश छा गया। 190 वर्षों के अंग्रेजी शासन ने भारतीय समाज के ताने-बाने, शिक्षा व्यवस्था ,उद्योग ,कृषि सबको प्रभावित किया । सबसे ज्यादा अंग्रेजों ने यदि किसी व्यवस्था पर आघात किया तो वह थी भारत की शिक्षा व्यवस्था, यहां की गुरुकुल पद्धति (प्रणाली) । अंग्रेज इस बात को समझ गए थे कि -यह कैसा भारत है कि यहां बिना बुलाए एक किसी तिथि के आने पर सारे भारतवासी माघ मेले( कुंभ) प्रयागराज में एकत्र हो आते हैं। गंगा मैया में स्नान करते हैं, कथा सुनते हैं व दान -पुण्य करते हैं। एक तिथि आने पर यह गुरु पूर्णिमा पर्व ,रक्षाबंधन, महालक्ष्मी ,आंवला नवमी, एकादशी ,तीजा, दीपावली, फाग- होली, बसंत पंचमी, नवरात्रि ,शिवरात्रि ,गणेश उत्सव, दुर्गा उत्सव इत्यादि मानाते हैं। इन्हें कौन प्रेरित करता है? पता चला कि वह गांव में रहने वाला गरीब ब्राह्मण पंचांग बनाता है एवं इस पंचांग से यह भारतवासी अपना जीवन जीते हैं। इनकी गुरुकुल प्रणाली इन्हें यह भारतीयता के संस्कार देती है । उनकी शिक्षा व्यवस्था , परंपराएं ,प्रथाएं इन्हें यह सब करने हेतु प्रेरित करती हैं। इस बात को अंग्रेजों ने शोध रिसर्च करके जाना अतः चालक/ धूर्त अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाए रखने हेतु ,भारत की इस व्यवस्था "गुरुकुल शिक्षा प्रणाली "को नष्ट करने की योजना बनाई। मैकाले ने यह कार्य भारतीयों को अपनी जड़ों से दूर करने हेतु बड़ी ही कुटिलता से किया और भारतीयों पर "अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली" थोप दी।
अंग्रेज़ मैकाले ने भारत की जड़ , रीढ़ पर प्रहार किया। किसी पेड़ को नष्ट करना हो तो टहनियां काटने से कुछ होने वाला नहीं,सीधा जड़ को काट दो पेड़ स्वयं ही सूख जाएगा। मैकाले ने यही कार्य किया उसने "भारतीय शिक्षा प्रणाली"- "भारतीय ज्ञान परंपरा" को नष्ट करने हेतु बड़ा कुटिल षड्यंत्र किया । भारत की शिक्षा व्यवस्था में गांव-गांव में गुरुकुल थे । इन गुरुकुलों को बंद किया गया। इनमें पढ़ाने वाले आचार्य /पंडितों को दाने-दाने को मोहताज कर दिया ।उनके पेट पर चोट की, जब पेट भूखा हो तब व्यक्ति ना पढ़ सकता है ना ही पढ़ा सकता है। किसी समय भारत में 6 लाख गुरुकुल हुआ करते थे। भारत में नालंदा, तक्षशिला,उदंतपुरी ,संदीपनी जैसे विश्व विद्यालय थे । यहां आचार्यों में चाणक्य, राघवाचार्य, माधवाचार्य,रामानंद, विद्यानंद, समर्थ गुरु रामदास, ब्रह्मागुप्त, कुमार गुप्त, पाणिनि, पतंजलि ,दयानंद, श्रद्धानंद, विरजा नन्द, विवेकानंद जैसे मनीषी ,प्रकांड विद्वान, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, प्रतिभाएं हुआ करती थी । जिनके ज्ञान के प्रभाव से विद्यार्थी तेजस्वी ,विद्वान ,प्रतिभाशाली बनकर निकला करते थे। सारे विश्व में भारत की प्रतिभाओं का डंका बजा करता था।
भारतीय प्रतिभा निर्माण की फैक्ट्री पर अंग्रेजों ने डांका डाला। भारत की पुरातन- सनातन व्यवस्था पर प्रहार किया। जीवन को रोटी, कपड़ा, मकान से भी अधिक महत्वपूर्ण शिक्षा है। इसके अभाव में व्यक्ति का जीवन अज्ञान- अंधकार में ही भटकता रह जाता है। जीवन के उस महत्वपूर्ण तत्व फैक्टर को अंग्रेजों ने कुटिलता पूर्वक नष्ट किया। इस अंग्रेजी शिक्षा मैकाले का षड्यंत्र सफल हुआ। आज भारत की जो नई पीढ़ी पढ़कर निकल रही है ,वह अंग्रेजी परस्त, पश्चिमी संस्कृति की अनुयाई ,भारत विरोधी मानसिकता से ग्रस्त है । जिसे भारत बोध ही नहीं है। यही मैकाले पुत्र निठल्ले ,संस्कारहीन, वेस्टर्न कल्चर के फॉलोअर्स जब आंदोलन करते हैं कॉलेजो में तो सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। यही हैप्पी बर्थडे, अंग्रेजी न्यू ईयर ,वैलेंटाइन डे इत्यादि मनाते हैं। मैकाले शिक्षा प्रणाली से निकलने वाले युवा, विद्यार्थी संवेदना शून्य, संस्कारहीन, राष्ट्रभक्ति से हीन दिखाई देते हैं। इन्हें समाज की पीड़ा, दुख -दर्द का एहसास ही नहीं होता है। यही विद्यार्थी जब अफसर बनते हैं, तब घूसखोरी ,भ्रष्टाचार के दृश्य दिखाई देते हैं।