शिक्षाप्रद कहानी:- नारद का अभिमान ! Date : 18-Jan-2025 एक बार नारद जी के मन में यह अभिमान उभर आया कि उनके समान संगीतज्ञ इस संसार में दूसरा कोई नहीं है | एक दिन भ्रमण करते हुए उन्होंने मार्ग में कुछ स्त्री-पुरुषों को देखा जो घायल पड़े हुए थे और उसके विशेष अंग कटे हुए थे | नारद ने उनसे इस स्थिति का कारण पूछा तो वे बोले-“हम सभी राग-रागनियां हैं | पहले हम अंग-प्रत्यंगों से परिपूर्ण थे, परंतु आजकल नारद नामक एक संगीतानभिज्ञता व्यक्ति दिन-रात रागनियों का अलाप करता चलता है, जिससे हम लोगों का अंग भंग हो गया है | यदि आप विष्णु लोक जा रहे हैं तो कृपया हमारी दुरवस्था का निवेदन भगवान् विष्णु से करें और उनसे प्रार्थना करें कि हम लोगों को इस कष्ट से शीघ्र मुक्ति प्रदान करने की कृपा करें |” नारद जी ने जब अपनी संगीतानभिज्ञता की बात सुनी तो वे बड़े दुःखी हुए | वे भगवदधाम ही जा रहे थे और जब वे वहां पहुंचे तो प्रभु ने उनका उदास मुख मंडल देखकर उनकी इस खिन्नता और उदासी का कारण पूछा | नारदजी ने अपनी व्यथा कथा सुना दी और कहा-“अब आप ही निर्णय कीजिये |” भगवान बोले- “मैं भी इस कला का मर्मज्ञ कहाँ हूँ | यह तो भगवान शंकर के वश की बात है| अत: राग-रागनियों के कष्ट दूर करने के लिए आपको शंकर जी से प्रार्थना करनी होगी |“ नारद जी शंकर जी के पास पहुँचे और सारी कथा सुनाई | शंकर जी बोले-“मैं यदि ठीक ढंग से राग-रागनियों का अलाप करूँ तो नि:संदेह वे सभी अंगों से पूर्ण हो जाएंगे, पर मेरे संगीत का स्रोत कोई उत्तम अधिकारी को मिलना चाहिए |” अब नारद जी को यह जानकर और भी क्लेश हुआ कि मैं संगीत सुनने का अधिकारी भी नहीं हूँ |” जी हाँ उन्होंने भगवान् शंकर से ही कोई संगीत सुनने के अधिकारी का चयन करने की प्रार्थना की | उन्होंने भगवान् नारायण का नाम प्रस्तावित किया | प्रभु से प्रार्थना की गयी और वे मान गए | संगीत समारोह प्रारंभ हुआ |सभी देव, गन्धर्व तथा राग-रागनियाँ वहां उपस्थित हुए | महादेव जी के सब संगीतज्ञों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया, किन्तु राग अलापते ही राग रागनियों के अंग पूरे हो गए थे | नारद जी का भ्रम भंग हुआ | नारद जी साधु हृदय, परम महात्मा तो थे ही, अहंकार भी दूर हो चुका था | अब राग-रागनियों को पूर्णांग देखकर वे बड़े प्रसन्न हुए |