शिक्षाप्रद कहानी:- उपकार का दंड
Date : 11-Jan-2025
भक्त भानुदास सदैव हरिभजन में मग्न रहते थे | जब तक माता-पिता जीवित रहे, भानुदास की पत्नी तथा उसके बाल - बच्चों का पालन पोषण करते रहे, पर उनके मरने के बाद वे भूखों मरने लगे |
पास-पड़ोस के सज्जनों को क्या आई | सौ रूपये चंदा करके उन्हें कपड़े खरीद दिये और बाजार के व्यापारियों को राजी करके उन्हें जीवन-यापन करने के लिए कुछ काम करने की सलाह दी | व्यवसायिओं ने भानुदास को व्यापार का क्रम और भाषा भी पढ़ा दी | भानुदास व्यापार में जरा भी असत्य का सहारा लेना अनुचित मानते थे | ग्राहक के आते ही वे उसे माल, उसका सार, उसका ठीक-ठीक मूल्य बताकर यह भी कह देते-“इसमें मुझको इतना मुनाफा है |” इस कारण उसकी अच्छी साख बाजार में जम गयी |
भानुदास का व्यापार दिनोंदिन बढ़ने लगा और बाजार के अन्य व्यवसायिओं का काम ठप्प पड़ने लगा | व्यापारी भानुदास से जलने लगे | समझदार व्यापारी उसकी सच्चाई की प्रशंसा भी करते और उसकी उन्नति का मूल उसी को मानते | पर दुराग्रही व्यापारियों का रोष दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा |
एक दिन एकादशी के निमित्त नगर में प्रसिद्ध कीर्तनकार का कीर्तन रखा गया था | भक्त भानुदास ने उस दिन जल्दी से दुकान बंद की और पास-पड़ोस के व्यापारियों से प्रार्थना की कि मैं कीर्तन में जाता हूँ, कृपा कर आप लोग दुकान का ध्यान रखिये |
उन्होंने रोष में कहा-“हम नहीं जानते, तुम जानो, तुम्हारा काम |”
भानुदास ने इसकी चिंता नहीं की | माल लादने का घोड़ा वहीं दुकान पर बांधकर सीधे मंदिर में कीर्तन में जाकर बैठ गया |
व्यापारियों ने बदला लेने का अच्छा अवसर जान उसके घोड़े को खोलकर छोड़ दिया और दुकान का सामान निकालकर पास ही एक गड्ढे में भर दिया और उसे ऊपर से ढक दिया |
फिर शोर मचा दिया कि चोरों ने भानुदास का सामान चुरा लिया |
घोड़ा कुछ दूर गया तो उन्हीं प्रभु को चिंता हुई, जिनके भजन में भानुदास रातभर लीन रहे | भगवान् ने घोड़े का ध्यान रखा, घोड़ा वहीं रहा | भानुदास से इस प्रकार छल करके पड़ोस के व्यापारी रात को अपनी-अपनी दुकानें बंद कर घर को जा रहे थे कि चारों का एक गिरोह हथियारों से लैस होकर आ घमका | उन्होंने व्यापारियों को खूब पीटा, उनके घोड़े छीन लिए और उनकी दुकानों का सामान लूटकर वे लोग भाग खड़े हुए | व्यापारियों ने अपनी करनी का फल पाया | कुंआ खोदने वाले के लिए खायी तैयार थी |
कीर्तन समाप्त होने पर कुछ रात शेष रहते ही भानुदास अपनी दुकान देखने आये | रास्ते में एक अपरिचित को भागते हुए घोड़े को पकड़कर अपने हवाले करते देख भानुदास को बड़ा आश्चर्य हुआ और उससे भी अधिक आश्चर्य तब हुआ जब उसने व्यापारियों को रोते-बिलखते हुए देखा | व्यापारियों ने गड्ढे से भानुदास का सारा माल निकाल कर उसको समर्पित कर दिया और अपनी दुर्बुद्धि के लिए उससे क्षमा मांगने लगे | भानुदास भगवान् की लीला देखकर चकित रह गया |