गुरु नानक मक्का की यात्रा कर रहे थे एक दिन एक सज्जन ने उनसे पूछा, “हिन्दू और मुसलमान में कौन बड़ा है?" नानकदेव ने उत्तर दिया, "प्रश्न बड़ा ही जटिल है। वास्तव में बड़ा वह व्यक्ति है, जो सदा भलाई करता रहता है और परमात्मा में रमता है।
'बाबा आँखें हाजियों शुभ, अमला बाझों दोवे रोई' बिना अच्छे और नेक कर्म के दोनों को रोना पड़ेगा।"
उस व्यक्ति ने पुनः प्रश्न किया, "आप किस जाति-सम्प्रदाय को सुशोभित करते हैं?"
नानकजी ने उत्तर दिया, "मैं सन्तों के सम्प्रदाय का हूँ। मेरी जाति वही है, जो वायु और अग्नि की है; मैं वृक्षों और पृथ्वी की तरह ही अपना जीवन यापन करता हूँ और उन्हीं की तरह काटे जाने अथवा खोदे जाने के लिए तैयार हूँ; नदी की तरह मुझे इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं कि कोई मेरी तरफ फूल फेंकता है या गन्दगी; चन्दन की तरह मैं उसी को जीवित समझता हूँ, जिससे सुगन्ध निस्सरित होती हो।"