"धर्म की राह पर: एक गणिका की शिक्षाप्रद गाथा" | The Voice TV

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"धर्म की राह पर: एक गणिका की शिक्षाप्रद गाथा"

Date : 03-May-2025

भगवान् तथागत का यह उपदेश "आत्मकल्याण के अधिकारी पापी, पुण्यात्मा सब हैं। अपने उद्धार की बात प्रत्येक  प्राणी सोच सकता है।" जब गणिका आम्रपाली के कानों पड़ा तो उसके मन में आशा का संचार हुआ। उसी समय उसने सुना "यान प्रस्तुत है देवि!" श्रृंगारदासी ने वैशाली की सर्वसुंदरी गणिका का ध्यान आकृष्ट किया। वह रथ पर बैठकर भगवान बुद्ध के दर्शन करने के लिए चल पड़ी। शास्ता उसी के उद्यान में भिक्षुओं के साथ विहार कर रहे थे।

 

"जिस यान पर बैठकर मैं राग-रंग और आमोद-प्रमोद आदि में समय का दुरुपयोग करती थी, उसी पर बैठ कर शास्ता से धर्मकथा सुनने के लिए जा रही हूँ। कितना महान सौभाग्य है मेरा।" श्वेतपरिधान धारिणी आम्रपाली के मन में अनेक सात्विक भावों का उदय हो रहा था। उसके शरीर पर एक भी अलंकार नहीं था।

 

रथ वेग के साथ चला जा रहा था। राजपथ की शून्य निर्जनता ही असंख्य हृदयों पर शासन करने वाली आम्रपाली की संगिनी थी। उद्यान के निकट पहुँचकर उसने रथ रोकने का आदेश दिया। वह उतर पड़ी। नंगे पाँव पैदल चलकर उसने शास्ता का अभिवादन किया। फिर यथास्थान बैठ गयी। भगवान बुद्ध ने उसे धर्मकथा से समुत्तेजित किया। उसका जीवन बदल गया। वह मूर्तिमती विरति सी दीख पड़ी।

 

आम्रपाली ने विनम्र शब्दों में निवेदन किया "भगवन्। भिक्षुओं सचेत कल मेरा निमंत्रण स्वीकार करें।"

आम्रपाली के निवेदन को भगवान ने स्वीकार कर लिया। आम्रपाली अपने प्रासाद की ओर लौट रही थी। उसने देखा कि अनेक रथ नगर से उद्यान की ओर जा रहे हैं। उन पर लिच्छवि युवक लाल पीले, नीले, हरे और श्वेत परिधान से समलंकृत हो कर तथागत को स्वागत करने जा रहे हैं। अत्यंत प्रसन्नमुद्रा में आम्रपाली को देखकर किसी ने पूछा "इतनी प्रसन्न क्यों है आम्रपाली?"

 

लिच्छिवियों ने राजपथ पर रथ रोक लिये।

"भद्रो! मुझे आत्मकल्याण का पथ मिल गया है। तथागत ने कल के भोजन का मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। वे कल मेरे यहाँ भिक्षा ग्रहण करेंगे।" गणिका ने यह कहते हुए हृदय के समस्त भाव उड़ेल दिये थे।

 

"ऐसा कदाचित नहीं हो सकता। शास्ता हमारा निमंत्रण स्वीकार करेंगे। हम बड़े से बड़ा मूल्य चुकाकर वह क्षण खरीदना चाहते हैं। मिल सकेगा आम्रपाली?" युवकों ने उसका मन धन से जीतना चाहा।

 

"नहीं, भद्रो ! अब ऐसा नहीं हो सकता। धन तो मैंने जीवनभर कमाया, आत्मकल्याण का मूल्य धन से नहीं लग सकता।"

 

रथ अपनी-अपनी दिशाओं की ओर चल पड़े।

लिच्छवियों ने भगवान बुद्ध का दर्शन किया। भगवान को कल के पिण्डाचार का निमंत्रण दिया, तथागत ने अस्वीकार कर दिया।

 

"आज मैं कृतकृत्य हो गयी। भगवान और भिक्षु संघ ने मेरे हाथ का परोसा भोजन स्वीकार कर मेरा अनित्य जगत् के प्रपंच से उद्धार कर दिया है।" आम्रपाली ने भगवान बुद्ध के भोजनोपरांत उनके आसन के नीचे बैठकर संतोष की साँस ली।

 

"सम्यक् सम्बुद्ध ने मेरे आम्रपाली-वन में विहार किया है, मैं इस वन को भिक्षु संघ के हाथों में सौंपना चाहती हूँ।"

 

तथागत ने आम्रपाली के इस निवेदन पर मौन स्वीकृति प्रदान कर दी। भगवान बुद्ध ने उसे धार्मिक कथा से समुत्तेजित किया। आम्रपाली धन्य हो गयी। उसका रोम-रोम पुलकित था। उसका कल्याण हो गया।

 
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